पर्यावरण प्रदूषण पर निबंध
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पर्यावरण प्रदूषण द्वारा वायु, जल और मिट्टी के अंदर निहित तत्वों का अनुपात असंतुलित हो जाता है. उदहारण के लिए – हवा में मानव के लिए उपयोगी प्राणवायु विद्दमान है. अगर हवा में आवश्यक तत्वों का संतुलन बिगड़ जाए, तो मानव जीवन को खतरा उत्पन्न हो जाता है. पर्यावरण प्रदूषण के लिए आज के विज्ञान की भौतिकवादी भूमिका मुख्य रूप से जिम्मेदार है. मनुष्य अपने ऐशो-आराम के लिए विज्ञान के माध्यम से प्रकृति का दोहन कर रहा है. कहा गया है प्रकृति हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति तो कर सकती है लेकिन लालच का नहीं.
मृदा प्रदूषण
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उपज बढ़ाने के लिए खेतों में प्राकृतिक खादों के बदले रासायनिक खादों के प्रयोग एवं फसलों पर कीटनाशक दवाओं के छिड़काव से मिट्टी की स्वाभाविक उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है. बढ़ती जनसँख्या के भोजन की पूर्ति की चुनौती खेतों के दोहन को बढ़ावा देता है. इससे बचने के लिए प्राकृतिक एवं रासायनिक खादों के प्रयोग में संतुलन स्थापित करना होगा तथा कीटनाशक दवाओं से भी बचना होगा. तभी मृदा प्रदूषण पर नियन्त्रण रखा जा सकता है.
जल प्रदूषण
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कहा गया है की जल ही जीवन है. लेकिन आज बड़े-बड़े शहरों की नालियों का पानी एवं कल-कारखानों से निकले कचरे तथा विषैले रासायनिक द्रवों को सीधे नदियों एवं झीलों में प्रवाहित कर देने से इनका जल प्रदूषित हो गया है. गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां भी आज जल प्रदूषण से वंचित नहीं है. ऐसे में प्रदूषित जल के सेवन से जल जनित रोग- टी.बी., मलेरिया, टाइफाइड और हैजा आदि फैलने लगते हैं.
वायु प्रदूषण
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वायु के बिना एक क्षण भी जीवित रहना असंभव है. आज यह प्राण तत्व भी दूषित हो चला है. कल-कारखानों की बड़ी-बड़ी चिमनियों, मोटरगाड़ियों, वयुयानों एवं रेल के इंजनों से निकलने वाले धुल-धुएं वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं. बड़े-बड़े महानगर इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जहाँ का पर्यावरण वाहनों द्वारा विषैला होता जा रहा है. शहरों में Particulate Matter २.५ की मात्रा बढ़ने से सांस और चर्म रोग का खतरा बढ़ जाता है. प्रदूषित वायु में सांस लेने से फेफड़े एवं गले से संबंधित कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं.
ध्वनि प्रदूषण
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ध्वनि प्रदूषण की समस्या विश्व्यापी है, अतएव इसके समाधान के लिए विश्व स्तरीय प्रयास होने चाहिए. पर्यावरण प्रदूषण के महाविनाश से चिंतातुर विश्व के 175 देशों के प्रतिनिधि ब्राजील में एस ज्वलंत समस्या पर विचार हेतु एकत्रित हुए. इस महासम्मेलन में भारत के परामर्श से ‘पृथ्वी कोष’ की स्थापना पर आम सहमति हुई. अत: इसे समस्या के समाधान की दिशा में एक अच्छी शुरूआत मानी जा सकती है.
पर्यावरण प्रदूषण पर काबू पाने के लिए विकसित और विकासशील राष्ट्रों को आणविक विस्फोटों एवं रासायनिक अस्त्रों के खतरनाक प्रयोगों पर प्रतिबन्ध लगाने होंगे. कल-कारखानों एवं शहरों के गंदे जल का परिशोधन करके नदियों में गिरना होगा. इसके अतिरिक्त हरे वनों की कटाई पर अविलंब कानूनी रोक लगानी होगी, क्योंकि पृथ्वी पर सिर्फ हरियाली बढ़ाकर ही पर्यावरण के दो-तिहाई प्रदूषण पर नियन्त्रण पाया जा सकता है.
Hope it's helpful ✌☺
मृदा प्रदूषण
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उपज बढ़ाने के लिए खेतों में प्राकृतिक खादों के बदले रासायनिक खादों के प्रयोग एवं फसलों पर कीटनाशक दवाओं के छिड़काव से मिट्टी की स्वाभाविक उर्वरा शक्ति क्षीण होती जा रही है. बढ़ती जनसँख्या के भोजन की पूर्ति की चुनौती खेतों के दोहन को बढ़ावा देता है. इससे बचने के लिए प्राकृतिक एवं रासायनिक खादों के प्रयोग में संतुलन स्थापित करना होगा तथा कीटनाशक दवाओं से भी बचना होगा. तभी मृदा प्रदूषण पर नियन्त्रण रखा जा सकता है.
जल प्रदूषण
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कहा गया है की जल ही जीवन है. लेकिन आज बड़े-बड़े शहरों की नालियों का पानी एवं कल-कारखानों से निकले कचरे तथा विषैले रासायनिक द्रवों को सीधे नदियों एवं झीलों में प्रवाहित कर देने से इनका जल प्रदूषित हो गया है. गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियां भी आज जल प्रदूषण से वंचित नहीं है. ऐसे में प्रदूषित जल के सेवन से जल जनित रोग- टी.बी., मलेरिया, टाइफाइड और हैजा आदि फैलने लगते हैं.
वायु प्रदूषण
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वायु के बिना एक क्षण भी जीवित रहना असंभव है. आज यह प्राण तत्व भी दूषित हो चला है. कल-कारखानों की बड़ी-बड़ी चिमनियों, मोटरगाड़ियों, वयुयानों एवं रेल के इंजनों से निकलने वाले धुल-धुएं वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं. बड़े-बड़े महानगर इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जहाँ का पर्यावरण वाहनों द्वारा विषैला होता जा रहा है. शहरों में Particulate Matter २.५ की मात्रा बढ़ने से सांस और चर्म रोग का खतरा बढ़ जाता है. प्रदूषित वायु में सांस लेने से फेफड़े एवं गले से संबंधित कई प्रकार के रोग उत्पन्न होते हैं.
ध्वनि प्रदूषण
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ध्वनि प्रदूषण की समस्या विश्व्यापी है, अतएव इसके समाधान के लिए विश्व स्तरीय प्रयास होने चाहिए. पर्यावरण प्रदूषण के महाविनाश से चिंतातुर विश्व के 175 देशों के प्रतिनिधि ब्राजील में एस ज्वलंत समस्या पर विचार हेतु एकत्रित हुए. इस महासम्मेलन में भारत के परामर्श से ‘पृथ्वी कोष’ की स्थापना पर आम सहमति हुई. अत: इसे समस्या के समाधान की दिशा में एक अच्छी शुरूआत मानी जा सकती है.
पर्यावरण प्रदूषण पर काबू पाने के लिए विकसित और विकासशील राष्ट्रों को आणविक विस्फोटों एवं रासायनिक अस्त्रों के खतरनाक प्रयोगों पर प्रतिबन्ध लगाने होंगे. कल-कारखानों एवं शहरों के गंदे जल का परिशोधन करके नदियों में गिरना होगा. इसके अतिरिक्त हरे वनों की कटाई पर अविलंब कानूनी रोक लगानी होगी, क्योंकि पृथ्वी पर सिर्फ हरियाली बढ़ाकर ही पर्यावरण के दो-तिहाई प्रदूषण पर नियन्त्रण पाया जा सकता है.
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