पर्यावरण सुरक्षा के लिए किए गए प्रयासों का उल्लेख रियो प्लस 20 2012 ke sandarb me kigye
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Explanation:
पहला पृथ्वी सम्मेलन जून 1992 में हुआ था, और अब दुसरा पृथ्वी सम्मेलन जून 2012 में हुआ है। इन दोनों के बीच 20 साल का एक लंबा अंतराल रहा, पर जो मुद्दे पहले पृथ्वी सम्मेलन में उठाये गये थे वे बीस साल बाद और वयस्क होने के बजाय अभी शैश्वावस्था में ही हैं। 20 साल के सफर की व्याख्या कर रही हैं सुनीता नारायण।
रियो+20 में ऐसी बातों पर बहस करके समय बर्बाद करने की जरूरत नहीं है जिसे हम पूरा ही नहीं कर सकते। दुनिया के देश और दुनिया के लोग बदलाव चाहते हैं और हमें लगता है कि अगर दुनिया के देश और दुनिया के लोग सचमुच बदलाव चाहते हैं तो वे बदलाव जरूर लाएंगे। इस महासम्मेलन को भी इसी सोच को आगे बढ़ाने में मदद करनी चाहिए।
वह जून 1992 का महीना था। रियो दी जेनेरियो में दुनिया का पहला ऐसा महासम्मेलन होने जा रहा था जो कि विकास और पर्यावरण पर था। रियो की गलियों में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी। गलियों में उमड़ी वह भीड़ अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश सीनियर का विरोध कर रही थी। बुश का यह विरोध इसलिए हो रहा था क्योंकि सम्मेलन में आने से पहले जार्ज बुश एक स्थानीय शापिंग मॉल में गये थे और वहां उन्होंने कहा था कि आप लोग जमकर उपभोग करिए। आपके उपभोग करने से उनके देश को अपने वित्तीय संकट से निपटने में मदद मिलेगी।
बुश के इस बयान के विरोध में जो लोग सड़कों पर उतरे थे वे जानते थे कि अमेरिका एक ऐसी जीवनशैली जीता है जिसमें किसी के लिए कोई समझौता नहीं होता। विरोध की आवाज बता रही थी कि अब इस जीवनशैली को ही दुनिया से दूर करने की जरूरत है। दुनिया आज जैसे व्यापार कर रही है वह सीधे तौर पर पर्यावरण को खत्म करता है। लोग चाहते थे कि बजाय सलाह देने के जार्ज बुश उस समझौते पर हस्ताक्षर कर दें जिसके बाद अमेरिका भी उत्सर्जन मानकों को मान ले और कार्बन उत्सर्जन में कमी ले जाए।
अमेरिका ने अब तक ऐसा नहीं किया है। लेकिन उस वक्त पहली बार यह हुआ था कि भूगोल की भौगोलिक चिंता में लगभग पूरा भूमंडल शामिल हुआ था। 1992 में रियो सम्मेलन से पहले पर्यावरण स्थानीय या फिर राष्ट्रीय चिंता का विषय था। लेकिन जिस तरह से दुनिया के भूमंडलीकरण की शुरूआत हो गई थी और अर्थशास्त्र का भूगोल बदल गया था उसे देखते हुए दुनिया के देशों ने पर्यावरण को साझा चिंता बनाने की पहल की थी। दुनिया का कोई भी औद्योगिक देश कार्बन उत्सर्जन करे, नुकसान तो धरती को ही होगा जिसमें सारे देश बसते हैं। इसलिए इस साल 1992 में व्यापार के वैश्विक नियमों के साथ ही पर्यावरण के लिए भी कुछ वैश्विक नियम बनाये गये। इन नियमों पर अमल करने के लिए वैश्विक सहयोग की भी बात की गई। इसीलिए रियो के इस सम्मेलन को पर्यावरण पर दुनिया की साझी चिंता का पहला सम्मेलन कहा जाता है।
इसी के साथ 1992 के रियो सम्मेलन में पहली बार दुनिया के दो ध्रुवों उत्तर और दक्षिण की गैर बराबरी भी सामने आई। यह बात भी उभरकर सामने आई कि दक्षिण और उत्तर के देश पर्यावरण के प्रबंधन पर अपनी अलग-अलग सोच रखते हैं। विकासशील देश चाहते थे कि उनको वह पूंजी और तकनीकि मिले ताकि वे पर्यावरण बचाने के साथ-साथ अपने विकास को भी बनाये रख सकें। पर्यावरण की चिंताओं के बीच भी वे विकास को पर्यावरण के आगे कुर्बान करने के लिए तैयार नहीं थे। हालांकि यह कहते हुए भी विकासशील देश यह चाहते थे पर्यावरण प्रदूषण को दूर करने में वे पूरी तरह से दुनिया के साथ हैं और वे कभी नहीं चाहेंगे कि धरती पर प्रदूषण का खतरा बढ़े।
अब बीस साल बाद, दुनिया के नेता एक बार फिर उसी शहर रियो में मिल रहे हैं, जहां आज से बीस साल पहले शुरूआत हुई थी। लेकिन इस बार रियो में पर्यावरण को लेकर वैसा उत्साह नहीं आ रहा है जैसा आज से बीस साल पहले दिखाई दे रहा था। ऐसा लगता है कि दुनिया के तमाम देश अपनी आर्थिक चिंताओं में पर्यावरण की चिंता को भूल चुके हैं। वह संकल्प भी अब कहीं दिखाई नहीं दे रहा है जिसमें भूमंडल को साझी विरासत मानकर इसे बचाने की कोशिश करने की बातें कही गई थीं।
Answer:
पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण, संरक्षण एवं सतत विकास को बढ़ावा देने के लिये पर्यावरण की प्रगति आदि के नियंत्रण के लिये हमारे देश की सरकार की भूमिका काफी आलोचनात्मक है। विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों पर कार्य करने के लिये संयुक्त राष्ट्र द्वारा राष्ट्रीय तथा अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर, राष्ट्रीय सरकारों तथा सिविल सोसाइटी द्वारा कई पर्यावरण संबंधी संस्थाएँ एवं संगठन स्थापित किए गए हैं। कोई भी पर्यावरणीय संगठन एक ऐसा संगठन होता है जो पर्यावरण को किसी प्रकार के दुरुपयोग तथा अवक्रमण के खिलाफ सुरक्षित करता है साथ ही ये संगठन पर्यावरण की देखभाल तथा विश्लेषण भी करते हैं एवं इन लक्ष्यों को पाने के लिये प्रकोष्ठ भी बनाते हैं। पर्यावरणीय संगठन सरकारी संगठन हो सकते हैं, गैर सरकारी संगठन हो सकते हैं या एक चैरिटी अथवा ट्रस्ट भी हो सकते हैं। पर्यावरणीय संगठन वैश्विक, राष्ट्रीय या स्थानीय हो सकते हैं। यह पाठ अग्रणीय पर्यावरणीय संगठनों के बारे में सूचना प्रदान करता है। ये संगठन सरकारी हों या सरकार के बाहर के राष्ट्रीय तथा वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के संरक्षण तथा विकास के लिये कार्य करते हैं।
उद्देश्य
इस पाठ के अध्ययन के समापन के पश्चात आपः
i. भारत में पर्यावरणीय प्रशासन से संबंधित विभिन्न मंत्रालयों तथा संस्थाओं की सूची बना सकेंगे ;
ii. पर्यावरणीय प्रबंधन के क्षेत्र में वैश्विक संस्थाओं की जिम्मेदारी तथा उनकी भूमिका का वर्णन कर सकेंगे;
iii. पर्यावरणीय संरक्षण एवं सतत विकास में लगे महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय गैर सरकारी संस्थाओं (एनजीओ) की भूमिका तथा गतिविधियों का वर्णन कर पाएँगे ;
iv. पर्यावरण के लिये संयुक्त राष्ट्र के निकायों की भूमिका का वर्णन कर सकेंगे।