पर्यावरण व जलसुरक्षा महत्त्व
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यह गौर करने वाली बात है कि जल संरक्षण का सवाल पर्यावरण के व्यापक संरक्षण के सवाल से ही जुड़ा है। हम जल के अलावा पर्यावरण के बाकी घटकों की उपेक्षा कर जल-संरक्षण पर कोई विचार-विमर्श नहीं कर सकते। शायद इसलिए आज यह समझने की आवश्यकता अधिक है कि पर्यावरण संरक्षण कोई एकांगी नहीं, बल्कि बहुआयामी विचार है। आखिर हमारे पर्यावरण में जल प्राकृतिक तौर पर जल चक्र की प्रक्रिया से उपलब्ध होता है। जल चक्र जलीय परिसंचरण द्वारा निर्मित एक चक्र होता है जिसके अंतर्गत जल महासागर से वायुमंडल में, वायुमंडल से भूमि (भूतल) पर और भूमि से पुनः महासागर में पहुँच जाता है।
महासागर से वाष्पीकरण द्वारा जलवाष्प के रूप में जल वायुमंडल में ऊपर उठता है। जहाँ जलवाष्प के संघनन से बादल बनते हैं तथा वर्षण द्वारा जलवर्षा अथवा हिमवर्षा के रूप में जल नीचे भूतल पर आता है और निदयों से होता हुआ पुनः महासागर में पहुँच जाता है। इस प्रकार एक जल-चक्र पूरा हो जाता है। अगर गौर से देखें तो जल चक्र की इस प्रक्रिया में पर्यावरण के अन्य घटक भी शामिल होते हैं। अगर ग्लोबल वार्मिंग के चलते महासागरों के तापमान में तेजी से उतार-चढ़ाव आएगा तो यह स्पष्ट है कि जल के वाष्पन की स्वाभाविक प्रक्रिया पर उसका प्रभाव पड़ेगा। अगर धरती पर उपलब्ध जल कम होगा तो वनों के अस्तित्व के लिये यह स्वयं में खतरा होगा। कुल मिलाकर पर्यावरणीय प्रक्रियाओं में असंतुलन होने से ही उपलब्ध जल संसाधनों पर प्रभाव पड़ता है। अगर पर्यावरण का हर घटक संतुलन की प्रक्रिया में रहे तो जल प्रदूषण भी स्वयं नियंत्रित हो जाएगा।