Environmental Sciences, asked by mehtabalam46, 1 year ago

पर्यावरण विनाश और वन्य जीवन क्षति के बारे में जानकारी​

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Answered by Anonymous
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Explanation:

पर्यावरण के सम्बन्ध में वनों और पेड़ों का बहुत महत्त्व है। प्राचीनकाल से ही भारत में वृक्षों की अत्यधिक उपयोगिता को स्वीकार कर और मानवीय भावनाओं के वशीभूत होकर उन्हें ईश्वर का अवतार माना गया है। वृक्षों की पूजा करना यह कर्तव्य हमें उत्तराधिकार में मिला है। अपने घर के दरवाजे पर अपने आंगन में, अपने लाॅन, बुर्ज एवं टेरेस हर जगह हम हरियाली देखना पसन्द करते हैं। सहज ही हमने तुलसी के चौरे को अपने घरों के आंगन में स्थापित नहीं कर दिया है। सबके पीछे वैज्ञानिक सत्य है। मत्स्यपुराण में भी कहा गया है कि.......‘‘दश कूपसमावापी दशवापीसमो हृदः दश हृद समः पुत्रो दशपुत्र समो वृक्ष’’ (एक पुत्र दस तालाबों के बराबर होता है और एक वृक्ष दस पुत्रों के बराबर)। वास्तव में प्रकृति हमारी संरक्षक है, पोषक है। स्वस्थ विकास वहीं है जिसमें हम प्रकृति की मूल सम्पदा को बचाये रखते हुए भी उसके ब्याज से काम चलाते रहे हैं और उसे अपनी भावी पीढ़ियों के लिये संजोकर, बचाकर रखें। वनों के प्रति सजग न रहना और भावी पीढ़ियों की चिन्ता न करना उनके प्रति अनाचार है, अन्याय है और यह हिंसा भी है।

यह अन्याय हिंसा अब बढ़ती जा रही है। हमारे देश में विश्व की कुल मानव आबादी का 15 प्रतिशत और मवेशी संख्या का 14 प्रतिशत है जबकि मात्र 2 प्रतिशत है। भारत में मात्र 19.5 प्रतिशत हिस्से में वन हैं जबकि किसी भी देश के लिये 33 प्रतिशत हिस्से में वन अनिवार्य है। हमारे यहाँ वनों का ह्रास तेजी से होता जा रहा है। एक पेड़ से इतनी शीतल छाया मिलती है जितनी पाँच एयर कंडीशनर 20 घंटे लगातार चलकर देते हैं। 93 घन मी. में लगा वन 8 डेसीबल ध्वनि प्रदूषण को दूर करता है। एक हेक्टेयर में लगा वन 20 कारों द्वारा उत्पन्न कार्बनडाईआक्साइड एवं धुआँ को शोषित करता है। अखिल भारतीय विज्ञान कांग्रेस की वाराणसी में आयोजित गोष्ठी में एक वृक्ष जिसकी आयु पचास साल हो उसके द्वारा प्राप्त प्रत्यक्ष आय-लाभ यथा-फल, फूल, काष्ठ, ईंधन के अतिरिक्त उसका अप्रत्यक्ष मूल्य 15.70 लाख रुपए आंका गया था जो इस प्रकार है.... छाया के रूप में पचास हजार, पशु प्रोटीन के रूप में बीस हजार, ऑक्सीजन एवं भूमि सुरक्षा के रूप में ढाई-ढाई लाख रुपये, एवं जल चक्र व वायु शुद्धीकरण के रूप में पाँच-पाँच लाख रुपये आंके गये।

वन राष्ट्रीय एवं वैश्विक पर्यावरण तथा प्राकृतिक संतुलन के प्रमुख अंग हैं लेकिन देशों में वनों पर बड़ी बेरहमी से आक्रमण हुआ है। हरे आवरण के इस तरह नष्ट हो जाने से भू-संरक्षण और बाढ़ की घटनायें बहुत बढ़ गयी हैं जिसके फलस्वरूप मात्र भारतवर्ष में हर वर्ष 1000 करोड़ रुपए से अधिक की हानि होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की 1981 की रिपोर्ट के अनुसार वानिकी के नये कार्यक्रमों के बावजूद एशियाई क्षेत्र में वन आवरण को पूर्व स्थिति में आने के लक्ष्य न्यून हैं।

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