Environmental Sciences, asked by ravindernarwal224, 8 months ago

पर्यावरणीय नीति शास्त्र क्या है? हमारे पर्यावरण के लिए नितिशास्त्र के नियमो की आवश्यकता क्यों है?​

Answers

Answered by Anonymous
88

Answer:

पर्यावरण नीति शास्त्र

Explanation:

पर्यावरण की रक्षा करना हर मानव का परम कर्तव्य है।हमें बिना कारण केवल अपने स्वार्थ के लिए जीव जंतुओं की हत्या और पेड़ो को काटने जैसे काम नहीं करने चाहिए।

प्रकृति हमारी मित्र है हमें भी प्रकृति का मित्र बनकर ही रहना चाहिए।

पर्यावरण नीति शास्त्र यह 8 बुनियादी सिद्धांत प्रदान करता है :-

1)पृथ्वी पर मानव और गैर-मानव जीवन, दोनों का अन्तर्निहित मूल्य होता है.

2)जीवन रूपों की समृद्धता और विविधता इन मूल्यों की प्राप्ति में योगदान करती है और यह खुद भी एक मूल्य होती है.

3)महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति के अतिरिक्त मनुष्यों के पास इस समृद्धता और विविधता को कम करने का कोई अधिकार नहीं है.

4)सभी जीवन रूपों और संस्कृतियों का विकास वस्तुतः कम जनसंख्या के साथ संगत होता है.

5)मानव द्वारा गैर-मानव विश्व (non-human world) में अत्यधिक हस्तक्षेप किया जाता है और इससे स्थिति तेजी से खराब होती जा रही है. इसलिए नीतियों में संशोधन किया जाना चाहिए.

6)वैचारिक परिवर्तन इस रूप में होना चाहिए जो मुख्य रूप से बढ़ते हुए उच्च जीवन स्तर के विपरीत जीवन की गुणवत्ता का समर्थन करता हो.

Answered by manojkl86051
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Explanation:

पर्यावरणीय नीति पर्यावरणीय दर्शन का वह खंड है जो नीतिशास्त्र की पारंपरिक सीमाओं को मनुष्यों के दायरे से बढ़ा कर अन्य जीव जंतुओं को भी शामिल करता है। इसका प्रभाव अन्य विषयों जैसे भूगोल और पारिस्थितिकी, अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र, समाजशास्त्र कानून, इत्यादि विषयों पर भी पड़ता है।

हम लोग पर्यावरण से सम्बंधित कई नैतिक निर्णय लेते हैं। उदाहरण के लिए:

क्या हमें मानव उपभोग के लिए जंगलों को काटते रहना चाहिए?

क्या हमें प्रचार करना जारी रखना चाहिए?

क्या हमें पैट्रोल से चलने वाले वाहन बनाते रहना चाहिए?

भविष्य की पीढ़ियों के लिए हमें कौन से पर्यावरणीय दायित्व निभाने की जरूरत है?[1][2]

क्या यह इंसानों के लिए सही है कि वे मानवता की सुविधा के लिए एक प्रजाति के विलुप्त होने का जानबूझकर कारण बन जाए?

पर्यावरणीय मूल्यों के सैद्धान्तिक क्षेत्र की शुरुआत रेचल कार्सन जैसे वैज्ञानिकों के कार्य की प्रतिक्रया स्वरुप हुईऔर 1970 में प्रथम पृथ्वी दिवस बनाने जैसी घटनाओं के परिणाम स्वरुप हुई.इन मौकों पर वैज्ञानिकों ने दार्शनिकों से आग्रह किया की वे पर्यावरणीय समस्याओं के दार्शनिक पहलुओं पर भी विचार करें. दो वैज्ञानिक लेखों, लिन व्हाइट का,"दा हिस्टॉरिकल रूट्स ऑफ़ ऑवर इकोलौजीकल क्राइसिस" (मार्च 1967)[3] और गैर्रेट हार्डिन का "दा ट्रैजडी ऑफ़ कामन्ज़"(दिसम्बर 1968) ने बड़ा महत्त्वपूर्ण प्रभाव डाला.[4] इसके अतिरिक्त गैर्रेट हार्डिन का बाद में प्रकाशित लेख "एक्सप्लोरिंग न्यू एथिक्स फॉर सर्वाइवल", और अल्डो लिओपोल्ड की एक किताब अ सैंड कंट्री ऑल्मनैक के एक निबंध "दा लैंड एथिक" ने बड़ा प्रभाव डाला.इस निबंध में लिओपोल्ड ने स्पष्टतया यह दावा पेश किया है कि पारिस्थितिकीय संकट की जड़ें दार्शनिक थी (1949).[5]

इस क्षेत्र की पहली शैक्षिक पत्रिका 1970 के उत्तरार्ध में उत्तरी अमेरिका से और 1980 के प्रारम्भ में-1979 में अमेरिका से निकलने वाली पत्रिका पर्यावरणीय नैतिकता और कनाडा से 1983 में निकलने वाली पत्रिका थी।The Trumpeter: Journal of Ecosophy इस प्रकार की पहली ब्रिटिश पत्रिका,इन्वाइरन्मेन्टल वैल्यूज़, 1992 में लौंच की गयी।

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