पर्यावरणीय प्रदूषण से आप क्या समझते हैं? इसे समाप्त करने के अपने सुझाव दीजिए।
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भारत सरकार ने जल प्रदूषण की समस्या को हल करने के लिए कुछ प्रयास किए हैं, जिनमें प्रमुख रूप से वातावरण नियोजन एवं समन्वय की राष्ट्रीय समिति का गठन है, जो वर्तमान जल-प्रदूषण की समस्या को गंभीरता तथा भविष्य में स्थापित होने वाली औद्योगिक इकाइयों की स्थिति का निर्धारण करेगी। प्रदूषण नियंत्रण की इन आवश्यकताओं के मद्देनजर भारत सरकार ने सन् 1974 में जल प्रदूषण नियंत्रण एवं निवारण अधिनियम के अंतर्गत केंद्रीय जल प्रदूषण मंडल का गठन किया।प्रदूषण एवं उद्योग दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। जहां उद्योग होगा, वहां प्रदूषण तो होगा ही। उद्योगों की स्थापना स्वयं में एक महत्वपूर्ण कार्य होता है। प्रत्येक देश में उद्योग अर्थव्यवस्था के मूल आधार होते हैं। यह जीवन की सुख-सुविधाओं, रहन-सहन, शिक्षा- चिकित्सा से सीधे जुड़ा हुआ है। इन सुविधाओं की खातिर मनुष्य नित नए वैज्ञानिक आविष्कारों एवं नए उद्योग-धंधों को बढ़ाने में जुटा हुआ है। औद्योगीकरण ऐसा ही एक चरण है, जिससे देश को आत्मनिर्भरता मिलती है और व्यक्तियों में समृद्धि की भावना को जागृत करती है। भारत इसका अपवाद नहीं है। सैकड़ों वर्षों की गुलामी ने हमें कुछ नहीं दिया। कुशल कारीगरों की मेहनत ने भी अपने देश को उन्नति के चरण पर नहीं पहुंचाया। सन् 1947 में आजाद देश ने इस दिशा में सोचा और अपने देश की क्रमबद्ध प्रगति के लिए चरणबद्ध पंचवर्षीय योजनाएं बनाई। द्वितीय पंचवर्षीय योजना (1956-61) में देश में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हुआ, जो निरंतर बढ़ता ही रहा (आर्थिक मंदी के कारण इसमें शिथिलता भी आई)। एक सर्वेक्षण के अनुसार सत्रह समूहों में विभाजित हजारों बड़े उद्योग (सही संख्या उपलब्ध नहीं) और 31 लाख लघु एवं मध्यम उद्योग वर्तमान में देश में कार्यरत हैं।
संसार में उद्योगों की प्रगति के साथ ही प्रदूषण की भी प्रगति हुई, जो वास्तव में सामान्य प्रदूषण से भी भयावह एवं जानलेवा है।