पर्यटन आर्थिक व सामाजिक उन्नति का साधन है
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पर्यटन आदिकाल से ही मनुष्यों का स्वभाव रहा है । घूमना-फिरना भी मनुष्य के जीवन को आनंद से भर देता है इसका पता लोगों ने बहुत पहले ही लगा लिया था । पहले लोग पैदल चलकर या समुद्र मार्ग से लंबी-लंबी दूरियाँ तय कर अपने भ्रमण के शौक को पूरा करते थे ।
कुछ लोग ऊँटों, घोड़ों आदि पर चढ़कर समूह यात्रा करते थे हालांकि ऐसी कई यात्राएँ व्यापार के उद्देश्य से भी की जाती थीं । परंतु ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो यात्रा तो व्यापार शिक्षा प्राप्ति या राजा के दूत बनकर करते थे परंतु उनकी यात्रा ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण बन जाती थी । ये लोग दूसरे देश की संस्कृति का अध्ययन कर अपने अनुभवों को ग्रंथ रूप में लिख देते थे ।
सेल्युकस के दूत मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्यकालीन भारत का बड़ा अच्छा वर्णन किया है । इसी तरह हवेनसांग, क्रिस्टोफर कोलंबस आदि व्यक्तियों की यात्राएँ भी इतिहास में बड़ी प्रसिद्ध रही हैं | जहाँ तक भारत के लोगों की बात है, हमारे यहाँ धार्मिक दृष्टि से की गई यात्राओं की बड़ी महत्ता रही है । यहाँ के लोग धर्मस्थानों की यात्रा को बहुत महत्व देते रहते हैं। आदि शंकराचार्य अल्प आयु में ही पूरे देश का भ्रमण कर देश के चार कोनों में चार धर्मपीठों की स्थापना की ।
इन धर्मपीठों की व्यवस्था आज भी कायम है । सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने विभिन्न दूत एशियाई देशों में भेजे । उनका यह धार्मिक अभियान इतिहास में काफी सफल माना गया । परंतु मध्य युग में स्थिति में काफी बदलाव आ गया ।
भारतीय लोगों में यह भ्रांत धारणा उत्पन्न हो गई कि समुद्र लाँघकर की गई यात्रा से धर्म भ्रष्ट हो जाता है । अत: किसी भी भारतीय की समुद्रपारीय यात्रा का वर्णन नहीं मिलता है । फिर भी अंतर्देशीय यात्रा के उदाहरणों की कोई कमी नहीं रही है ।
कुछ लोग ऊँटों, घोड़ों आदि पर चढ़कर समूह यात्रा करते थे हालांकि ऐसी कई यात्राएँ व्यापार के उद्देश्य से भी की जाती थीं । परंतु ऐसे लोगों की भी कमी नहीं थी जो यात्रा तो व्यापार शिक्षा प्राप्ति या राजा के दूत बनकर करते थे परंतु उनकी यात्रा ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण बन जाती थी । ये लोग दूसरे देश की संस्कृति का अध्ययन कर अपने अनुभवों को ग्रंथ रूप में लिख देते थे ।
सेल्युकस के दूत मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक इंडिका में मौर्यकालीन भारत का बड़ा अच्छा वर्णन किया है । इसी तरह हवेनसांग, क्रिस्टोफर कोलंबस आदि व्यक्तियों की यात्राएँ भी इतिहास में बड़ी प्रसिद्ध रही हैं | जहाँ तक भारत के लोगों की बात है, हमारे यहाँ धार्मिक दृष्टि से की गई यात्राओं की बड़ी महत्ता रही है । यहाँ के लोग धर्मस्थानों की यात्रा को बहुत महत्व देते रहते हैं। आदि शंकराचार्य अल्प आयु में ही पूरे देश का भ्रमण कर देश के चार कोनों में चार धर्मपीठों की स्थापना की ।
इन धर्मपीठों की व्यवस्था आज भी कायम है । सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अपने विभिन्न दूत एशियाई देशों में भेजे । उनका यह धार्मिक अभियान इतिहास में काफी सफल माना गया । परंतु मध्य युग में स्थिति में काफी बदलाव आ गया ।
भारतीय लोगों में यह भ्रांत धारणा उत्पन्न हो गई कि समुद्र लाँघकर की गई यात्रा से धर्म भ्रष्ट हो जाता है । अत: किसी भी भारतीय की समुद्रपारीय यात्रा का वर्णन नहीं मिलता है । फिर भी अंतर्देशीय यात्रा के उदाहरणों की कोई कमी नहीं रही है ।
adityabibhassahu:
thank you
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