Hindi, asked by vpsinghbareilly50, 7 months ago

पर्यटन का महत्व पर निबंध लिखिए​

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Answered by mishrasameerji786
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मानव स्वभाव से ही जिज्ञासु होता है। देश-विदेश की यात्रा की ललक के पीछे भी मनुष्य की जिज्ञासु प्रवृत्ति ही काम करती आई है। यदि मनुष्य चाहता तो वह घर बैठे ही पुस्तकों द्वारा यह जानकारी प्राप्त कर लेता। किंतु पुस्तकों से प्राप्त जानकारी का आनंद कछ ऐसा ही है जैसे किसी चित्र को देखकर हिमालय के सघन देवदार के वनों और हिमाच्छादित शिखरों के सौंदर्य, रूप गंध का अनुभव करना। महापंडित राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में, ‘‘घुमक्कड़ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ विभूति है इसलिए कि उसी ने आज की दुनिया को बनाया है। अगर घुमक्कड़ों के काफिले न आते-जाते तो सुस्त मानव-जातियाँ सो जातीं और पशु स्तर से ऊपर नहीं उठ पातीं।”आज पर्यटन के पीछे भी मनुष्य की उसी पुरानी घुमक्कड़ प्रवृत्ति का प्रभाव है। आदिम घुमक्कड़ और आज के पर्यटक में इतना अंतर अवश्य है कि आज पर्यटन उतना कष्ट साध्य नहीं है, जितनी प्राचीन काल की घुमक्कड़ी थी। ज्ञान-विज्ञान के आविष्कारों, अन्वेषणों की जादुई शक्ति के प्रभाव से सुलभ साधनों के कारण पर्यटन अत्यंत सुलभ बन गया है।

आज पर्यटन एक राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय उद्योग के रूप में विकसित हो चुका है। इस उद्योग के प्रसार के लिए देश-विदेश में पर्यटन मंत्रालय बनाए गए हैं। विश्वभर में पर्यटकों की सुविधा के लिए बड़े-बड़े पर्यटन स्थल विकसित किए जा रहे हैं। पर्यटन को प्रोत्साहित करने के लिए कई प्रकार के आयोजन भी किए जाते हैं; जैसे- विदेशों में किसी देश के स्थान विशेष की कलाएँ, कलात्मक दृश्य, सांस्कतिक संस्थाओं की प्रदर्शनियाँ आदि। आनंद की प्राप्ति, जिज्ञासा की शांति, बढ़ती आय; इनके अतिरिक्त पर्यटन के और भी कई प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ हैं।

पर्यटन के माध्यम से अंतर्राष्ट्रीयता की समझ जन्म लेती है: विकसित होती है। प्रेम और मानवीय भाईचारा बढ़ता है। सभ्यता-संस्कृतियों का परिचय मिलता है। पर्यटन से व्यक्ति अपने खोल से बाहर निकलना सीखता है। पर्यटन उस एकरसता से उत्पन्न ऊब का भी परिहार करता है जो एक ही स्थान पर एक जैसे ही वातावरण में लगातार रहने से उत्पन्न हो जाती है। इसलिए पर्यटन की प्यास रखनेवालों को महापंडित राहुल सांकृत्यायन की तरह महाकवि इकबाल के इस । ‘शेर’ को अपना पथ प्रदर्शक बनाना चाहिए, इकबाल लिखते हैं –

‘सैर कर दुनिया की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ,

जिंदगानी गर रही तो नौजवानी फिर कहाँ।’

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