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Mera Bachpan Essay in Hindi 300 Words.
मेरा बचपन सपनों का घर था जहां मैं रोज दादा-दादी के कहानी सुनकर उन कहानियों में ऐसे खो जाता था मानो उन कहानियों का असली पात्र में ही हूं. बचपन के वह दोस्त जिनके साथ रोज सुबह-शाम खेलते, गांव की गलियों के चक्कर काटते और खेतों में जाकर पंछी उड़ाते.
मेरा बचपन गांव में ही बीता है इसलिए मुझे बचपन की और भी ज्यादा याद आती है बचपन में हम भैंस के ऊपर बैठकर खेत चले जाते थे तो बकरी के बच्चों के पीछे दौड़ लगाते थे. बचपन में सावन का महीना आने पर हम पेड़ पर झूला डाल कर झूला झूलते थे और ठंडी ठंडी हवा का आनंद लेते थे.
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बचपन के वह दिन बहुत ही खुशियों से भरे हुए थे तब ना तो किसी की चिंता थी ना ही किसी से कोई मतलब बस अपने में ही खोए रहते थे. बचपन में बिना बुलाए किसी की भी शादी में शामिल हो जाते थे और खूब आनंद से खाना खाते और मौज उड़ाते थे.
बचपन में शोर मचा कर पूरे विद्यालय में हंगामा करते थे. हम बचपन में कबड्डी, खो-खो, गिल्ली डंडा, छुपन- छुपाई और तेज दौड़ लगाना खेलते थे. रोज किसी ना किसी को परेशान करके भागना बहुत अच्छा लगता था.
बचपन में हम सब सुबह शाम सिर्फ मस्ती ही करते थे. बचपन में पूरा घर हंसी ठिठोली से गूंजता रहता था. बचपन का हर दिन उत्सव होता था. बच्चों को देख कर बचपन की बहुत सी यादें अब भी ताजा हो जाती है. अभी तेज दौड़ लगाने का मन करता है और बारिश भी तालाब में जाकर छप-छप करना किसे अच्छा नहीं लगता.
ऐसा था मेरा बचपन कभी मां का दुलार मिलता तो कभी पिताजी की डांट पड़ती थी लेकिन फिर भी कुछ ही पलों में सब कुछ भुला कर फिर से शैतानियां करने लग जाते थे.
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मेरा बचपन
Mera Bachpan
बचपन जीवन का सुनहरा हिस्सा होता है। इस समय एक बच्चे को अधिक से अधिक ख्याल तथा प्रेम मिलता है। वह ईश्वर के बहुत नजदीक होता है। वह मासूम तथा शुद्ध होता है। वह भविष्य की चिंताओं से पूर्ण रूप से मुक्त होता है। उसकी सभी इच्छाएँ बिना देरी के पूर्ण हो जाती हैं। वह जीवन की बुराइयों से कोसों दूर होता है। उसके मन में किसी के प्रति कोई बुरा विचार नहीं होता। वह सभी प्रकार की आज़ादियों का आनंद उठाता है। वह अपने परिवार के सदस्यों में आकर्षण का केंद्र होता है।
मेरा बचपन मुझे कभी नहीं भूल सकता। मुझे अपने पुराने अच्छे दिनों को याद करना बहुत पसंद है। बचपन में सभी मुझे बहुत अधिक प्रेम करते थे। मैं सभी काम अपनी मर्जी से करता था। कोई मुझसे कुछ काम करने को नहीं कहता था। मेरे मां-बाप मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ते थे। जब भी मैं कहीं जाता था तो हमेशा कोई न कोई मेरे साथ होता था। मेरी दादी-मां रात को मुझे परियों की कहानियां सुनाया करती थीं।
बचपन में मेरी हर इच्छा फटाफट पूरी कर दी जाती थी। मेरे पिता जी मेरे लिए नए-नए खिलौने लाया करते थे।
मेरी माता सदा यह ध्यान रखती थीं कि मेरे कपड़े अच्छे से पहने हैं या नहीं। हर दोतीन महीनों के पश्चात् मेरी माता मुझे नए कपड़े लेकर देती थी। मेरे बड़े भाई-बहन हमेशा मेरा ध्यान रखते थे। वे बाज़ार से मेरे लिए मिठाइयां लाया करते थे। मेरा जन्म दिन उनके लिए मस्ती तथा हर्ष भरा दिन होता था।
बचपन में मैं थोड़ा शरारती था। कई बार मैं पड़ोस के बच्चों से झगड़ा करता था। मैं उन्हें अपने खिलौने छेड़ने नहीं देता था। जब मेरे बड़े भाई-बहन पढ़ने में व्यस्त होते थे, मैं उनके कमरे में चला जाता था। उनकी किताबें तथा कापियां खराब कर देता था। पर वे कभी मुझसे नाराज़ नहीं हए। मझे आज भी याद है कि कैसे मैंने अपने घर का टैलीविज़न खराब कर दिया था?
अफसोस! मेरा बचपन अब जा चुका है। केवल उस समय की यादें ही बची हैं। यह यादें मुझे आनंद एवं दर्द देती हैं जब भी मैं इन्हें याद करता हूँ।
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