Paragraph in hindi on aryabhatta
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आर्यभट प्राचीन भारत के एक महान खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे। उन्होंने 23 वर्ष की आयु में आर्यभटयम ग्रंथ की रचना की जिसमें उन्होंने गणित और खगोलविद का संग्रह किया। गणित और विज्ञानं के क्षेत्र में आज भी उनके काम विद्वानों के लिए प्रेरणा का श्रोत हैं।
आर्यभट (Aryabhatta) की जन्म तिथि 13 अप्रैल 476 पूर्व ई: और निधन 550 पू :ई: माना जाता है। आर्यभट ने ब्रह्मंड के रहस्यों को दुनिया के सामने रखा उन्होंने बताया के हमारी धरती सूर्य के चारों तरफ़ परिक्रमा करती है और चांद धरती का एकमात्र उपग्रह है।
आर्यभट (Aryabhatta) के द्वारा की गयी ज़ीरो की ख़ोज ने समस्त संसार को एक नयी दिशा दी और इतिहास में इनका नाम अमर हो गया। इसीलिए आर्यभट को उनकी महान कार्यों के लिए पूरे संसार में जाना जाता है। उन्होंने अपने अविष्कारों से संसार को नया जन्म दिया। इसके इलावा भारत सरकार ने आर्यभट की याद में अपने पहले उपग्रह का नाम भी आर्यभट रखा था। आर्यभट ने साबित किया के एक वर्ष में 365 दिन होते हैं । उनके द्वारा किए गए महान अविष्कारों के लिए उन्हें सदा के लिए याद रखा जाएगा ।
आर्यभट ने गणित के नये-नये नियम खोजे। ऐसा प्रतित होता है कि वे शून्य का चिन्ह जानते थे। पाई का मान उन्होंने 3.1622 निकाला जो आधुनिक मान के बराबर ही है। आर्यभट ने बडी संख्याओं को संक्षेप में लिखने के लिए अक्षरांक विधी की खोज की, जैसे की 1 के लिए ’अ’, और 100 के लिए ’इ’ 10000 के लिए ’उ’ 10 अरब के लिए ’ए’ इत्यादि।
आर्यभट ने आकाश में खगोलिया पिण्ड की स्थिति के बारे में भी ज्ञान दिया। उन्होंने पृथ्वी के परिधी 24835 मिल बताई, जो आधुनिक मान 24902 मिल के मुकाबले बेहतरीन संभावित मान है।
आर्यभट का विश्वास था कि आकाशीय पिण्डों के आभासी घुर्णन धरती के अक्षीय घुर्णन के कारण संभव है। यह सौरमण्डल की प्रकृति या स्वभाव की महत्वपूर्ण अवधारणा है। परन्तू इस विचार को त्रुटिपूर्ण मानकर बाद के विचारकों ने इसे छोड दिया था।
आर्यभट सूर्य, पृथ्वी की त्रिज्या के संबंध में खगोलिया गृहों की त्रिज्या देते है। उनका मत है कि चन्द्रमां तथा अन्य गृह सूर्य से परावर्तित प्रकाश द्वारा चमकते है। आश्चर्यजनक रूप से वह यह विश्वास करते हैं कि ग्रहों की कथाएं अण्डाकार है।
आर्य भट ने सूर्य गृहण तथा चन्द्र गृहण के सही कारणों की व्याख्या की है , जबकि उनसे पहले तक लोग इन्हें गृहणों का कारण राक्षस राहु और केतू को मानते थे।
आर्यभट ने ज्योतिष के क्षेत्र में भी सबसे पहले क्रांतिकारी विचार लाये । आर्यभट पहले भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पृथ्वी अपनी दुरी पर घुमती है और नक्षत्रों का गोलक स्थित है। पौराणिक मान्यता के नुसार इसके विपरित थी। इसलिए बाद के वराहमिहिर, ब्रम्हगुप्त आदि ज्योतिषीयों ने इनकी इस सही मान्यता को भी स्वीकार नहीं किया।
आर्यभट विश्व की सृष्टि और इसके प्रलय चक्र में विश्वास नहीं करते थे। उन्होंने काल को अनादि तथा अनन्त माना है। वे निश्चित ही एक क्रांतिकारी विचारक थे। श्रुति, स्मृति और पुराणों की परंपरा के विरोध में सही विचार प्रस्तुत करके उन्होंने बडे साहस का परिचय दिया था। और भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान की स्वस्थ परंपरा स्थापित की।
आर्यभट ने अपने ग्रंथ में किसी ज्योतिषी, गणितज्ञ, या शासक का वर्णन नही किया। उनका आर्यभटीय नामक ग्रंथ भारतीय गणित और ज्योतिष का एक विशुद्ध वैज्ञानिक ग्रंथ है। उनके सम्मान में भारत ने अपने प्रथम कृत्रिम उपग्रह का नाम आर्यभट रखा।
खगोल विज्ञान, खगोल भौतिकी और वायुमण्डलीय विज्ञान में अनुसंधान के लिए नैनिताल के निकट एक स्थान का नाम आर्यभट प्रक्षेपण विज्ञान अनुसंधान संस्थान रखा गया। और दूसरो के वैज्ञानिक द्वारा सन् 2009 में खोजी गई एक बेक्टिरिया की प्रजाति का नाम उनके नाम पर बेसीलस रखा गया।