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प्रेम एक मानवीय गुण है जो जीवन को सार्थकता देता है, बगैर प्रेम के कटु जीवन विष की तरह बन जाता हैं, मानव का यह प्रेम विविध रूप में छलकता है यथा परिवार प्रेम, जातीय प्रेम, दोस्तों से प्रेम इन सबसे बढ़कर प्रेम का जो स्वरूप हैं वह है देश प्रेम अथवा स्वदेश प्रेम. मानव ही नहीं पशु और पक्षी अपनी जननी जन्मभूमि से अगाध प्रेम करते हैं. फिर भला मानव इससे अछूता कैसे रह सकता हैं.
प्रत्येक भारतीय अपनी जन्मभूमि को माँ कहकर सम्बोधित करता हैं, उसके मन के ये भाव देशप्रेम की तीव्र अभिव्यंजना करते हैं. यह प्रेम स्वाभाविक है क्योंकि हम जिस मिट्टी में पले बढ़े हमने अपने विकास किया तथा जीवन की आवश्यक सुविधाओं को इसने प्रदान किया, अतः हमारा दिल स्वतः ही इस भूमि से प्रेम करने लगता हैं. प्रत्येक नागरिक का यह प्रथम कर्तव्य है कि वे अपने देश के प्रति उनके प्रतीक चिन्हों, संकेतों एवं अन्य लोगों से प्रेम करे तथा घुलमिलकर रहे.
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