paragraph on environment in Hindi
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पर्यावरण हमारी पृथ्वी पर जीवन का आधार है, जो न केवल मानव अपितु विभिन्न प्रकार के जीव-जन्तुओं एवं वनस्पति के उद्भव, विकास एवं अस्तित्व का आधार है ।
सभ्यता के विकास से वर्तमान युग तक मानव ने जो प्रगति की है उसमें पर्यावरण की महती भूमिका है और यह कहना अतिशयोक्ति न होगा कि मानव सभ्यता एवं संस्कृति का विकास मानव-पर्यावरण समानुकूलन एवं सामंजस्य का परिणाम है । यही कारण है कि अनेक प्राचीन सभ्यतायें प्रतिकूल पर्यावरण के कारण गर्त में समा गईं तथा अनेक जीवों तथा पादप-समूहों की प्रजातियाँ विलुप्त हो गई और अनेक पर यह संकट गहराता जा रहा है ।
पर्यावरण से तात्पर्य है वह वातावरण जिससे संपूर्ण जगत् या ब्रह्माण्ड या जीव जगत् घिरा हुआ है, दूसरे शब्दों में संपूर्ण पृथ्वी का जीवन एक आवरण से आवृत्त है जो इसे परिचालित भी करता है और स्वयं भी प्रभावित होता है । पर्यावरण अंग्रेजी के शब्द ‘एनवायरमेन्ट’ का अनुवाद है जो दो शब्द अर्थात् ‘एनवायरन’ और ‘मेन्ट’ से मिलकर बना है जिसका अर्थ आवृत्त करना है अर्थात् जो चारों ओर से घेरे हुए है वह पर्यावरण है ।
शाब्दिक दृष्टि से इसका अर्थ ‘सराउन्डिंग्स’ है जिसका तात्पर्य है ‘चारों ओर से घेरे हुए’ । यहाँ प्रश्न होता है कि किसे घेरे हुए तथा किस चीज द्वारा घेरे हुए । संपूर्ण पृथ्वी वायु मण्डल से आवृत्त है, इसी प्रकार धरातलीय जीव स्थल, जल, वायु एवं इनके विभिन्न घटकों के आवृत्त हैं ।
संपूर्ण जीव मण्डल जैविक एवं अजैविक घटकों द्वारा आवृत है । संपूर्ण जीव मण्डल बृहत रूप में स्थल मण्डल, जल मण्डल और वायु मण्डल से संबंधित है और यही भौगोलिक पर्यावरण का मूल है । पर्यावरण किसी एक तत्व का नाम नहीं अपितु अनेक तत्वों का सामूहिक नाम है जो संपूर्ण जीव जगत् को नियंत्रित करते हैं तथा एक दूसरे से अंतर संबंधित हैं और जिनका प्रभाव सामूहिक रूप से होता है ।
इसी कारण कुछ विद्वानों ने इसे ‘मिल्यु’ से संबोधित किया है जिसका अर्थ है चारों ओर के वातावरण का समूह । सामूहिक रूप से ही पर्यावरण के अनेक तत्व क्रियाशील होकर क्षेत्र विशेष के पारिस्थितिक तंत्र का निर्माण करते हैं ।
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इसी कारण कुछ विद्वानों ने पर्यावरण हेतु ‘हेबीटाट’ शब्द का प्रयोग किया है जिसका अर्थ है ‘आवास’ । आवास से तात्पर्य है भौतिक एवं रासायनिक परिस्थितियों (जैसे- स्थान, अध:स्तर, जलवायु आदि) का एक विशिष्ट समुच्चय जो किसी विशिष्ट प्रजाति के समूह (वृहत् अथवा सूक्ष्म) की आवास-परिस्थितियों का बोध कराता है ।
प्रत्येक क्षेत्र विशेष की भौतिक प्रकृति में विशेष पादप समूहों एवं जीव-जंतुओं का विकास होता है जो वहाँ की परिस्थितियों के अनुकूल होता है, यहाँ तक कि मानव के व्यवसाय, यथा- कृषि, पशुचारण, उद्योग आदि के विकास में भी इसकी महती भूमिका होती है ।
इसी से संपूर्ण जीव मण्डल में विभिन्न दशाओं के अनुसार ‘जीवोम’ अथवा ‘बायोम’ का विकास होता है । वर्तमान में ‘पर्यावरण’ शब्द को सर्वमान्य स्वीकार किया गया है । पर्यावरण शब्द को विश्वकोष में परिभाषित करते हुए लिखा गया है- ”पर्यावरण के अंतर्गत उन सभी दशाओं, संगठन एवं प्रभावों को सम्मिलित किया जाता है जो किसी जीव अथवा प्रजाति के उद्भव, विकास एवं मृत्यु को प्रभावित करती हैं ।”
स्पष्ट है कि पर्यावरण के अंतर्गत विभिन्न तत्वों को सम्मिलित किया जाता है । ये सभी तत्व निरंतर क्रिया-प्रतिक्रिया करते रहते हैं । इसी के फलस्वरूप क्षेत्र में जीवन विकसित होता जाता है अन्यथा समाप्त हो जाता है ।
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पर्यावरण शब्द का निर्माण दो शब्दों परि और आवरण से मिलकर बना है, जिसमें परि का मतलब है हमारे आसपास अर्थात जो हमारे चारों ओर है, और 'आवरण' जो हमें चारों ओर से घेरे हुए है। पर्यावरण उन सभी भौतिक, रासायनिक एवं जैविक कारकों की कुल इकाई है जो किसी जीवधारी अथवा पारितंत्रीय आबादी को प्रभावित करते हैं तथा उनके रूप, जीवन और जीविता को तय करते हैं।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित यह दिवस पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनैतिक और सामाजिक जागृति लाने के लिए मनाया जाता है। इसकी शुरुआत 1972 में 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन से हुई। 5 जून 1973 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
पर्यावरण के जैविक संघटकों में सूक्ष्म जीवाणु से लेकर कीड़े-मकोड़े, सभी जीव-जंतु और पेड़-पौधों के अलावा उनसे जुड़ी सारी जैव क्रियाएं और प्रक्रियाएं भी शामिल हैं। जबकि पर्यावरण के अजैविक संघटकों में निर्जीव तत्व और उनसे जुड़ी प्रक्रियाएं आती हैं, जैसे: पर्वत, चट्टानें, नदी, हवा और जलवायु के तत्व इत्यादि।
सामान्य अर्थों में यह हमारे जीवन को प्रभावित करने वाले सभी जैविक और अजैविक तत्वों, तथ्यों, प्रक्रियाओं और घटनाओं से मिलकर बनी इकाई है। यह हमारे चारों ओर व्याप्त है और हमारे जीवन की प्रत्येक घटना इसी पर निर्भर करती और संपादित होती हैं। मनुष्यों द्वारा की जाने वाली समस्त क्रियाएं पर्यावरण को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। इस प्रकार किसी जीव और पर्यावरण के बीच का संबंध भी होता है, जो कि अन्योन्याश्रित है।
मानव हस्तक्षेप के आधार पर पर्यावरण को दो भागों में बांटा जा सकता है, जिसमें पहला है प्राकृतिक या नैसर्गिक पर्यावरण और मानव निर्मित पर्यावरण। यह विभाजन प्राकृतिक प्रक्रियाओं और दशाओं में मानव हस्तक्षेप की मात्रा की अधिकता और न्यूनता के अनुसार है।
पर्यावरणीय समस्याएं जैसे प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन इत्यादि मनुष्य को अपनी जीवनशैली के बारे में पुनर्विचार के लिये प्रेरित कर रही हैं और अब पर्यावरण संरक्षण और पर्यावरण प्रबंधन की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता और सुधी पाठकों को जागरूक करने की।