Hindi, asked by thakurajayzb7051, 11 months ago

Paragraph on friendship in sanskrit with meaning in hindi

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Answered by ambnisha82pef5u4
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Sanskrit-
अधनस्य कुतो मित्रम् , अमित्रस्य कुतः सुखम् ||
नास्त्युद यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||
एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||
श्रुतवानप मूर्खोऽसौ यो धर्मविमुखो- जनः ||
चन्द्रचन् नयोर्मध्य शीतला साधुसंगतिः- ||
उदारचरिता तु वसुधैव कुटुम्बकम्- |
परोपकारः पुण्याय पापाय परपीडनम् ||
दानेन पाणिर्न तु कंकणेन ,परोपकारैर न तु चन्दनेन ||

HINDI-
आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |
मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |
जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है |
जो व्यक्ति धर्म ( कर्तव्य ) से विमुख होता है वह ( व्यक्ति ) बलवान् हो कर भी असमर्थ , धनवान् हो कर भी निर्धन तथा ज्ञानी हो कर भी मूर्ख होता है |अच्छे मित्रों का साथ बुद्धि की जड़ता को हर लेता है ,वाणी में सत्य का संचार करता है, मान और उन्नति को बढ़ाता है और पाप से मुक्त करता है | चित्त को प्रसन्न करता है और ( हमारी )कीर्ति को सभी दिशाओं में फैलाता है |(आप ही ) कहें कि सत्संगतिः मनुष्यों का कौन सा भला नहीं करती |यह मेरा है ,यह उसका है ; ऐसी सोच संकुचित चित्त वोले व्यक्तियों- की होती है;इसके विपरीत उदारचरित वाले लोगों के लिए तो यह सम्पूर्ण धरती ही एक परिवार जैसी होती है |महर्षि वेदव्यास जी ने अठारह पुराणों में दो विशिष्ट बातें कही हैं | पहली –परोपकार करना पुण्य होता है और दूसरी — पाप का अर्थ होता है दूसरों को दुःख देना |

कानों की शोभा कुण्डलों से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है | हाथ दान करने से सुशोभित होते हैं न कि कंकणों से | दयालु / सज्जन व्यक्तियों- का शरीर चन्दन से नहीं बल्कि दूसरों का हित करने से शोभा पाता है |


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