Hindi, asked by shanayap1890, 1 year ago

Paragraph on madhur vachan hai aushadhi in hindi

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Answered by RITEESHVNSP
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मंहगाई  जिसमें रोज मर्रा खाने पीने की चीजें  आटा, चावल -दाल, घी -तेल- चीनी   , बढ़ते पेट्रोल डीजल के दाम ,  रसोई गैस की आसमान छूती कीमतें , बिजली के   बढ़ते बिल , पानी के बढ़ते  बिल  ,  दवाई व अस्पताल का बढ़ता खर्च , स्कूल की बढ़ती फीस व बढती बेरोजगारी , लोगों की घटी क्रय शक्ति ने आम आदमी की कमर को तोड़  कर रख  दिया हें /

 

  नेता  जी जहां  आम आदमी के नाम पर घोटालों से अपनी जेब भर रहें हें वही आम आदमी की जेब में आज  बचत के नाम पर फूटी कोडी भी नहीं हें / क्या ये ही जनकल्याण की सरकार हें ? क्या ये हाथ गरीब के साथ हें ? क्या अंग्रेजों से ऐसे ही  स्वराज की  कल्पना थी ? क्या सरकार अब आम आदमी के नाम पर  जनकल्याण  का ढोंग कर , अपनी हिसाब किताब की बही को व्यापारिक रूप से चलायेगी ? जिसमें कोई भी जन कल्याण का काम केवल लाभ देख कर किया जाएगा ?

 

देश के   प्रथम प्रधान मंत्री नेहरु से लेकर लालबहादुर शास्त्री , इंदिरा  , मोरारजी , चरणसिंह  ,  विश्वप्रताप सिंह , नरसिम्हाराव , देवगोडा , गुजराल, राजीव गांधी , चंद्रशेखर  व अटलबिहारी तक के प्रधान मंत्री  हमेशा ही     आम आदमी की रोज मर्रा  की  खाने – पीने के चीजों के    दामों को  नियंत्रित  रखा /  ज़रा सी बढ़ोतरी होने पर   स्पस्टीकरण दिया

 

कर लगाते समय जरूरी चीजों को छोड़ हमेसा ही लग्जरी वस्तुओं पर टेक्स   लगाया  पर आज सरकार जनकल्याण को भूल  रोज काम आने वाली चीजों से टेक्स वसूल  कर देश की जनता का आम आदमी के नाम पर शोषण कर रही हें / ये कैसे  अर्थशास्त्री हें जो केवल आम आदमी के पीछे  ही देश की सारी अर्थव्यवस्था को चलाना चाहते हें /

 

ऐसा लगता ह़े सरकार आम आदमी को ये अहसास दिलाना चाहती हें कि वो आम आदमी की सरकार हें  / इसी लिए आटे डाल का भाव याद  दिलाती हें साथ में गेस का भी जिस पर वह रोटी पकाता हें / आज देश  चलाने वाले व ऊँचे पदों पर बैठे नेता  या तो सरकारी पदों से आये हें या विदेशों से मेनेजमेंट के गुर सीखे हें जिसका इस्तेमाल वे आज लोकतंत्र में कर रहें हें /

 

नेता का  सार्वजनिक जीवन   में   अफसरसाही सा व्यव्हार करते नजर आ रहें हें / बढ़ती महंगाई  , परेशान जनता पर   नेता  कटु  शब्दों का  बाण चला रहें हें  आइये इसकी बानगी देखें –

 

   प्रधानमंत्री जी – ”   पैसे पेड़ पर नहीं लगते ! , नौकरी पर सबसे पहले मुसलमानों का हक़ हें /  जनता के मन में सवाल हें कि बांग्लादेसी मुस्लिम जो देश में अवेध रूप से घुसपैठ कर यहाँ के नागरिकों की सारी सुविधा ले रहें हें क्या वो भी इसके हकदार हें / क्या ये  हिन्दू . इसाई . पारसी जेन , सिख व भारतीय मुस्लिम  के  प्रति  अन्याय नहीं  होगा कि विदेशी नागरिक  भी ऐसी ही सुविधा का हकदार हो जाए ?

 

कुछ नेता सवाल दागते हें  – यदि लोग सरकार व  महंगाई से नाराज  हें तो  हमें वोट देकर क��यों  जीता  रहें  हें ?

 

एक नेता तो   पूरनी लाओ नयी ले जाओ  की तरफ दारी से करते दीखते हें – कहते हें पुरानी में मजा नहीं रहता ? विधेश से पढ़कर आये एक नेता जी तो शोचालय को मंदिर से ज्यादा पवित्र बता  रहें हें  आखिर  सेकुलर जो ठहरे !

 

मंदिर की तुलना शोचालय से की तो सेकुलर समाज ने  नादान समझ कर  बात को आया गया कर दिया  यदि इसी   किसी ओर  पूजा घर  की ऐसी तुलना  की होती तो नेता जी को दिन में तारे नजर आ जाते  / इस मायने में तो मंदिर वाले असली सेकुलर  कहलाने के     हकदार हें / अभी हाल ही में पूर्व न्यायमूर्ति व  उत्तराखंड के  मुख्यमंत्री ने महंगाई जनता में कोई मुद्दा ही नहीं हें कहकर आम आदमी से जुदा होने का पुख्ता सबूत दे दिया /

 

आम आदमी होने के नाते  सभी नेताओं से अनुरोध हें कि  महंगाई  व  परेसान जनता से  कटु शब्द बोल कर कटे पर नमक  छिडक ने का काम न करें /

 

याद होना चाहिए –

“मधुर वचन है औषधि, कटु वचन है  तीर| श्रवण  द्वार हौ संचरे, साले सकल सरीर||”

मधुर वचन  औषधि  समान के हैं, जो रोग का निवारण करते हैं. कटु वचन तीर की भांति ह्रदय को आघात  पहुंचाते हैं.  बोले गए कटु शब्द कान रूपी द्वार से शरीर रूपी घर में  प्रवेश करके सारे शरीर को प्रभावित करते हैं.नेता जी आप तो शब्दों से खेलते हें  इसी लिए –

 

“ऐसी बानी बोलिए मन का आप  खोय| औरन को सीतल करे आपुह सीतल  होय||”

 

यदि नेता जी जनता पर मीठे शब्दों से महगाई की चोट पर मरहम  लगाए तो जनता उन्हें फिर सर आँखों पर हाथो हाथ ले सकती हें /ये सही ही हें –

“तुलसी मीठे वचन ते, सुख उपजे चहुँ  ओर|

वशीकरण यह मंत्र है, तजिये वचन  कठोर||”

 

अर्थात सभी से मीठा बोलिए, इससे सुख  मिलाता है. मधुर वचन ही वशीकरण मंत्र है. कठोर वचनों को त्यागिये. नेता जी आपने कोवे व कोयल के बारे में सूना ही हें –

 

कागा काको धन हरे, कोयल काको देय| मीठे  वचन सुनाय के, जग अपनो कर लेय||   यदि नेता जी गुड न दे पर  कम से कम गुड देने वाली बात तो जनता से कर ही सकते हें /बाक़ी आप पर  हें आखिर आप जनता के पांच वर्ष तक भाग्य विधाता  जो  ठहरे !  दुर्बल  आम आदमी को सताने से हाय लग सकती हें –

   दुर्बल      को    न सताइए      जाकी मोटी  हाय

मुई खाल की स्वांस सों लोह भस्म हो जाए

Answered by PRACHET8143
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( HOPE THIS HELPS YOU )

THANK YOU

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