Paragraph on मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना in hindi
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हम सब एक हैं
Hum Sub ek hain
निबंध नंबर : 01
विभिन्नता में एकता • धार्मिक एकता • क्षेत्रीयता • सांप्रदायिकता बाधक • हमारा कर्तव्य
भारत एक विशाल देश है। इसमें अनेक धर्मों, संप्रदायों, वर्गों, जातियों, उपजातियों, संस्कृतियों के लोग रहते | हैं। इसी कारण भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है। भारत के विषय में प्रसिद्ध कहावत है- कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी। इतनी अनेकताएँ होने पर भी भारत एक सूत्र में बँधा हुआ है। हम भारतीय कितने हजारों सालों से एक परिवार की तरह ही रहते आए हैं। हमारे पुराण, उपनिषद, रामायण तथा महाभारत जैसे सम्मानित ग्रंथ हैं। प्रत्येक भाषा में इसकी कथाएँ उपलब्ध हैं। भाषा की दीवार होते हुए भी भारत एक है और सभी भारतीय एक ही धर्म के अनुयायी हैं। भारत में धर्म, भाषा, प्रांत, रंग, रूप, खान-पान, रहन-सहन,आचार-विचार यहाँ तक कि जलवायु में भी विभिन्नता है। देश में बाहरी और ऊपरी एकता होते हुए भी मानो भीतर सभी अपने-अपने स्वार्थ का झंडा लिए खड़े हों। कई बार ये स्थिति बड़ी खतरनाक भी साबित होती है।
राजनैतिक दृष्टि से अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक का बँटवारा राष्ट्रीय एकता में बाधक सिद्ध हुआ है। राजनैतिक दल और राजनैतिक नेता साधारण जनता को वर्गों में बाँट उनकी धार्मिक और जातिगत भावना से खिलवाड़ कर रहे हैं। ये सब वोट बैंक बनाने का धंधा है। इसी के विषय में कवि परवेज़ ने बहुत खूब कहा है-
जितने हिस्सों मे जब चाहा, उसने हमको बाँटा है।
उसको है मालूम, हमारी सोचों में सन्नाटा है।
तुम उससे न जाने क्या उम्मीद लगाए बैठे हो।
जिस दिमाग में चौबीस घंटे सिर्फ लाभ या घाटा है।
राष्ट्रीय एकता को और अधिक सुदृढ़ बनाने के लिए देश के नेताओं को कानूनी तौर पर कदम उठाने चाहिए। एक तो स्वयं स्वार्थ की नीति छोड़कर देशहित की बातें करनी चाहिए। सारे देश में एक जैसा ही कानून हो। अंतर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहन देना चाहिए। सरकारी नौकरियों में दूसरे प्रांतों में स्थानांतरण से आपसी मेलजोल और जानकारी बढ़ती है। देश को सूत्र में बाँधे रखने के लिए सबको मिलकर रहना होगा। देश में एकता रहेगी तभी देश तरक्की कर | सकता है, आगे बढ़ सकता है। इसके लिए प्रत्येक नागरिक की भागीदारी आवश्यक है।
निबंध नंबर : 02
मज़हब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना
Majhab nahi Sikhata Aaps main Bair Rkhna
संसार में अनेकों धर्म (मज़हब), संप्रदाय (फ़िरके) और पंथ प्रचलित हैं किन्तु कोई भी धर्म एक-दूसरे से ईर्ष्या, द्वेष या वैर भाव रखने का उपदेश नहीं देता। प्रत्येक धर्म आपसी भाईचारे और मेल-मिलाप बनाये रखने का उपदेश देता है। धर्म या मजहब कोई कच्चा धागा नहीं है जो तनिक से झटके से टूट जाए बल्कि यह तो इतना पवित्र और महान् है कि इसके स्पर्श मात्र से अपवित्र भी पवित्र बन जाता है। धर्म मनुष्य को ईश्वर तक पहुंचने का मार्ग बताता है और ईश्वर एक है इस तथ्य से कौन इन्कार कर सकता है। मार्ग अलग-अलग हो सकते हैं, उनके नाम भी भिन्न हो सकते हैं किन्तु मंजिल तो सब की एक ही है। कबीर जी ने ठीक ही कहा है-
हिन्दू-तुरक की एक राह है, सतगुरु इहै बताई।
कहँहि कबीर सुनह हो संतो, राम न कहेउ खुदाई।।
खेद की बात है कि बीसवीं शताब्दी की समाप्ति पर भी कुछ राजनीतिज्ञ अपने ‘ के लिए धर्म की आड़ में साम्प्रदायिक भेदभाव उत्पन्न करने के यत्न कर रहे हैं।सन् 1857 के स्वतन्त्रता संग्राम की असफलता के कारण अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति के अनुसार हिन्दू-मुसलमानों में फूट डालने के लिए साम्प्रदायिकता का विष फैलाना शुरू कर दिया था। उसी विष के परिणामस्वरूप देश में हिन्दू-मुस्लिम दंगे फसाद | हुए और उर्दू के जिस प्रसिद्ध कवि इकबाल ने ‘सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा’ तथा मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना, हिंदी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा’ जैसे गीत लिखे उसी इकबाल ने मुसलमानों को एकअलग कौम कह कर उनके अलग देश पाकिस्तान का नारा लगाया। देश का विभाजन हुआ। हजारों लाखों परिवार घर से बे-घर हुए। हजारों लाखों को जानें गईं किन्तु हमें फिर भी होश नहीं आया। स्वतन्त्रता प्राप्ति के लगभग 58 वर्ष बाद तक भी हम मन्दिर-मस्जिद के झगड़े में उलझे हैं। जमाना कहां से कहां चला गया। दुनिया चांद पर जाने की तैयारी कर रही है। हम सैंकड़ों साल पीछे की ओर लौट रहे हैं। अंग्रेज़ के फैलाये इस विष को हमारे राजनीतिज्ञ और अधिक। प्रखर बनाने में जुटे हैं। वे नहीं जानते कि साम्प्रदायिकता भड़का कर वे देश को कितनी बड़ी हानि पहुंचा रहे हैं। कोई भी मज़हब, धर्म किसी को उल्टी राह पर चलने के लिए। नहीं कहता। सभी धर्म आप प्रेम प्यार, भाईचारे का संदेश देते हैं। सभी धर्म ‘सरबत का। भला’ चाहते हैं। अतः धर्म और मज़हब के नाम पर वैर भावना भड़कने वालों से होशियार। रह कर हमें साम्प्रदायिक सद्भावना जागृत करनी चाहिए तभी हमारे देश में सुख शान्ति होगी तभी हम उन्नति और विकास के मार्ग पर चलते हुए दुनिया से टक्कर ले सक”। हमें सब को इस शुभ कार्य में अपना योगदान देना चाहिए- कवि दिनकर जी की बात हमें याद रखनी चाहिए-
‘मन्दिर और मस्जिद पर एक तार बान्धो रे।‘
भारत एक विशाल देश है। इसमें अनेक धर्मों, संप्रदायों, वर्गों, जातियों, उपजातियों, संस्कृतियों के लोग रहते | हैं। इसी कारण भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है। भारत के विषय में प्रसिद्ध कहावत है- कोस-कोस पर पानी बदले, चार कोस पर वाणी। इतनी अनेकताएँ होने पर भी भारत एक सूत्र में बँधा हुआ है। हम भारतीय कितने हजारों सालों से एक परिवार की तरह ही रहते आए हैं। हमारे पुराण, उपनिषद, रामायण तथा महाभारत जैसे सम्मानित ग्रंथ हैं। प्रत्येक भाषा में इसकी कथाएँ उपलब्ध हैं। भाषा की दीवार होते हुए भी भारत एक है और सभी भारतीय एक ही धर्म के अनुयायी हैं। भारत में धर्म, भाषा, प्रांत, रंग, रूप, खान-पान, रहन-सहन,आचार-विचार यहाँ तक कि जलवायु में भी विभिन्नता है। देश में बाहरी और ऊपरी एकता होते हुए भी मानो भीतर सभी अपने-अपने स्वार्थ का झंडा लिए खड़े हों। कई बार ये स्थिति बड़ी खतरनाक भी साबित होती है।
राजनैतिक दृष्टि से अल्पसंख्यक तथा बहुसंख्यक का बँटवारा राष्ट्रीय एकता में बाधक सिद्ध हुआ है। राजनैतिक दल और राजनैतिक नेता साधारण जनता को वर्गों में बाँट उनकी धार्मिक और जातिगत भावना से खिलवाड़ कर रहे हैं। ये सब वोट बैंक बनाने का धंधा है।