Hindi, asked by ananya620, 4 months ago

paragraph on" parali ke kaaran badhta pradooshan " (in hindi)​

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Answered by TanushreeSardar
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जागरण संवाददाता, सिरसा :

राजकीय नेशनल कालेज में कृषि विज्ञान द्वारा दैनिक जागरण व मनोविज्ञान विषय परिषद के सहयोग से पराली नहीं जलाएंगे पर्यावरण को बचाएंगे अभियान के तहत कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के तहत पर्यावरण संरक्षण को लेकर निबंध, पोस्टर मेकिग व स्लोगन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। प्रतियोगिता का शुभारंभ कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि विज्ञान डा. देवेंद्र जाखड़, डा. सुनील बैनीवाल व मनोविज्ञान विषय परिषद के प्रभारी डा. गुरनाम सिंह ने किया। विजेता प्रतिभागियों को पुरस्कार देकर सम्मानित किया। निबंध प्रतियोगिता में हरजीत कौर प्रथम पराली नहीं जलाएंगे, पर्यावरण को बचाएंगे अभियान के तहत हुई पोस्टर मेकिग प्रतियोगिता में बीएससी द्वितीय वर्ष की मोनिका प्रथम, एमए फाइनल की अर्शदीप व रीना रानी द्वितीय, बीएससी की कनिष्का तृतीय रही। निबंध प्रतियोगिता में एमए प्रथम वर्ष हरजीत प्रथम, एकता रानी द्वितीय व गुरशरण कौर तृतीय रही। स्लोगन प्रतियोगिता में एमए द्वितीय वर्ष की आरती व मोनू प्रथम, बीएससी की नरेंद्र कुमार द्वितीय व एमए प्रथम वर्ष के संजू व माया तृतीय रही। निर्णायक मंडल में पूजा अरोड़ा, पूजा शर्मा, वंदना खोथ, डा. अन्नुदीप व डा. जगदीप सिंह शामिल रहे। पर्यावरण को बचाने के लिए सभी का सहयोग जरूरी कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा. देवेंद्र जाखड़ ने कहा कि पर्यावरण को बचाने के लिए सभी का सहयोग जरूरी है। इसके लिए विद्यार्थी पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूक करें। उन्होंने कहा कि धान की कटाई होने के बाद किसान अकसर अपने खेतों में पराली जला देते हैं। लेकिन पराली से फैलने वाला धुआं प्रदूषण बढ़ाने के साथ-साथ लोगों की जिदगी के लिए भी भारी पड़ सकता है। पराली जलाने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे लोगों के स्वास्थ्य के प्रभावित होने का सबसे अधिक खतरा पैदा हो गया है। भूमि में मिलाने से बढ़ती है उपजाऊ शक्ति कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिक डा. सुनील बैनीवाल ने कहा कि फसली अवशेष को भूमि में मिलाने से भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। किसान कृषि यंत्रों से भूमि में पराली मिला सकते हैं। इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति के साथ उत्पादन भी बढ़ेगा। धान की प्रति एकड़ भूमि पर करीब 25 क्विटल तक पराली से पशु चारा बनाया जा सकता है। जिसको हरे चारे में मिलाकर पशुओं को खिलाया जा सकता है। जिससे पर्यावरण प्रदूषण भी नहीं होगा। प्रदूषण से बढ़ रहा है स्मॉग मनोविज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. रविद्र पुरी ने कहा कि पिछले दिनों से स्मॉग का असर बढ़ रहा है। इसका कारण बढ़ता प्रदूषण है। इस प्रदूषित प्रदूषण के कारण सांस लेना मुश्किल हो गया है। इससे कई तरह की बीमारियां फैलने का डर बना हुआ है। पर्यावरण प्रदूषण को बचाने के लिए सभी आगे आए। अपने घरों के आस पास कूड़ा-कर्कट न जलाएं। कूड़ा कर्कट को भूमि में मिला दें। इससे भूमि की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी। विद्यार्थी अपने घरों पर अभिभावकों को पराली जलाने से होने वाले नुकसान के बारे में जागरूक करें। उन्होंने कहा कि कृषि विभाग व दैनिक जागरूक की ओर जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। यह काफी सराहनीय है।

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