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सामान्य सी लगने वाली इन दो पंक्तियों में ज्ञानी संत और साधक ने जीवन और समय के महत्त्व का – सार तत्व भर दिया है । आज का काम कल पर नहीं छोड़ना चाहिए । प्रश्न उठता है कि क्यों नहीं छोड़ना चाहिए ? उत्तर यह है कि पता नहीं अगला पल प्रलय का ही पल हो ।
यदि ऐसा हुआ तो वह अधूरा या सोचा गया काम कर पाने का अवसर ही न मिल पाएगा । फिर कब करोगे ? कहा जा सकता है कि यदि कोई काम नहीं भी हो पाया, तो उससे क्या बनता-बिगड़ता है ? बस यही यह बात, वह मुद्दा या नुकता है कि जिसे ज्ञानी संत ने हमें समझाना और स्पष्ट करना चाहा है । कहा जा सकता है कि भारतीय पुर्नजन्म और मुक्ति के सिद्धान्त का समूचा तत्त्व वास्तव में इस कथन में समाया हुआ है ।
भारत में माना जाता है कि मरते समय यदि व्यक्ति का मान और आत्मा किसी प्रकार की इच्छाएं लिए रहते हैं, तभी दुबारा और किसी भी योनि में जन्म हुआ करता है । यदि मृत्यु के समय मन में कोई इच्छा नहीं रहती, अपने लिए कर्मों को पूर्ण मानकर सन्तुष्ट और तृप्त रहा रहता है तो जन्म मरण के बन्धनों से मुक्त हो जाया करता है ।