Hindi, asked by nerajjain9119, 1 year ago

Paragraph on traffic jam a problem in hindi

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Answered by Anonymous
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दिल्ली दिलवालों का शहर मानी जाती है। यहाँ रहकर लोगों के सपने साकार होते हैं। भारत के कोने-कोने से लोग यहाँ आकर रहते हैं। परन्तु इस दिल में ट्रैफिक का साया गहराने लगा है। जहाँ देखो वहाँ जाम लगा रहता है। लोग घंटो इस जाम में फंसे रहते हैं। इस प्रकार इसकी रफ्तार बहुत धीमी पड़ गई है। हर बार प्रश्न उठता है कि इस ट्रैफिक के जिम्मेदार कौन? परन्तु इस प्रश्न का उत्तर खोजने जाएँ, तो हम ही इसके सबसे बड़े गुनाहगार दिखाई देते हैं। सरकार को इसके लिए दोष देना पूर्णत सही नहीं होगा। आज गाड़ी रखना लोगों को हैसियत की पहचान लगता है। समाज का हर तबका इसे रखना अपनी शान समझता है। एक गाड़ी से लोगों का दिल नहीं भरता, तो वह दो-दो तीन गड़ियाँ रखने लगे हैं। घर में रहने वाले चार लोग होगें परन्तु सबके पास अपनी गाड़ी होगी। इसका दुष्परिणाम गाड़ी की संख्या में बढ़ोतरी। मेट्रो के आरंभ में संभावना की गई थी कि ट्रैफिक कम होगा परन्तु इससे कुछ खास परिणाम नहीं निकले। सरकार जितने प्रयास करे कम करने की परन्तु वाहनों की संख्या में हो रही बढ़ोतरी को वह कम नहीं कर सकती है। इसके लिए तो हमें ही प्रयास करने पड़ेंगे।
Answered by vachhaniruddra
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Answer:

हवा में ज़हर

ज़्यादातर गाड़ियों से निकलनेवाले धुएँ में नाइट्रोजन ऑक्साइड और कैंसर पैदा करनेवाले कुछ पदार्थ होते हैं। कई गाड़ियाँ, खासकर वे जो डीज़ल इंजन से चलती हैं, धुएँ के साथ बड़ी तादाद में छोटे-छोटे कण हवा में छोड़ती हैं। ये लोगों की सेहत के लिए बहुत बड़ा खतरा बने हुए हैं। अंदाज़ा लगाया गया है कि हर साल, करीब 30 लाख लोग प्रदूषित हवा से मर रहे हैं जो ज़्यादातर, गाड़ियों से निकलती है। एक रिपोर्ट कहती है कि यूरोपीय देशों के बच्चों को फेफड़े के जितने संक्रमण होते हैं, उनमें से 10 प्रतिशत, प्रदूषित हवा में मौजूद बेहद छोटे-छोटे कणों की वजह से होते हैं और जिन इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या ज़्यादा है वहाँ पर संक्रमण का प्रतिशत और भी ज़्यादा है।

पृथ्वी के वातावरण को होनेवाले खतरे के बारे में भी ज़रा सोचिए। गाड़ियों से निकलनेवाले नाइट्रोजन ऑक्साइड और सल्फर डाइऑक्साइड अम्ल वर्षा का एक कारण हैं। अम्ल वर्षा से झीलों और नदियों का पानी खराब होता है, उनमें मौजूद प्राणियों को खतरा होता है और तरह-तरह के पेड़-पौधों को भी नुकसान होता है। इतना ही नहीं, गाड़ियों से बड़ी मात्रा में निकलनेवाला कार्बन डाइऑक्साइड, हालात को और भी बदतर बना रहा है। यही वह गैस है जो पृथ्वी के तापमान को बढ़ाने के लिए सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है। इससे पृथ्वी ग्रह के लिए और भी कई खतरे पैदा हो रहे हैं।

ज़्यादा दुर्घटनाएँ

जैसे-जैसे गाड़ियों की आवाजाही बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे लोगों की जान को खतरा भी बढ़ता जा रहा है। हर साल, करीब 10 लाख से ज़्यादा लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं और यह संख्या तेज़ी से बढ़ती जा रही है। कुछ इलाकों के मुकाबले दूसरे इलाकों में दुर्घटनाएँ ज़्यादा हो रही हैं। मिसाल के लिए, यूरोपियन कमीशन के खोजकर्ताओं ने पता लगाया कि “ग्रीस के हर 10 लाख में से 690 लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं जबकि स्वीडन में सिर्फ 120.”

ट्रैफिक जाम से एक और मुसीबत उठ रही है जो कुछ सालों से चर्चा का विषय बनी हुई है। वह है ड्राइवरों का एक-दूसरे पर भड़ास निकालना। आज ऐसे वाकये आम हो गए हैं जिनमें एक ड्राइवर दूसरे ड्राइवर पर अपना गुस्सा उतारता है। अमरीका के ‘राष्ट्रीय राजमार्ग यातायात सुरक्षा प्रबंधन’ के किए एक सर्वे के मुताबिक, ड्राइवरों ने बताया कि उनके आग-बबूला होने का एक कारण है, “ट्रैफिक जाम की बढ़ती समस्या।”

एक आर्थिक महामारी

ट्रैफिक जाम से पैसे भी बरबाद होते हैं। एक अध्ययन ने दिखाया कि अकेले कैलिफॉर्निया के लॉस एन्जलस शहर में एक साल में ट्रैफिक जाम की वजह से 4 अरब लीटर ईंधन बरबाद होता है। इससे और भी कई तरह के नुकसान होते हैं, जैसे बिज़नेस में तरक्की के मौके हाथ से निकल जाना, प्रदूषण की वजह से बीमार पड़ने पर इलाज का खर्चा सो अलग, साथ ही सड़क दुर्घटनाओं के बढ़ने से होनेवाला नुकसान।

ट्रैफिक जाम से होनेवाले ये सभी तरह के नुकसान साथ मिलकर देशों की आर्थिक हालत को कमज़ोर कर देते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक, अगर ट्रैफिक जाम में सिर्फ ईंधन और समय की बरबादी को लें, तो इससे अमरीका के लोगों को हर साल करीब 68 अरब डॉलर (46 खरब रुपए) खर्च करने पड़ते हैं। दूर पूरब के देशों के बारे में फिलीपीन स्टार नाम के अखबार की एक रिपोर्ट ने कहा: “जैसे टैक्सी का मीटर दौड़ता है, वैसे ही यहाँ के देशों को ट्रैफिक जाम की वजह से हर साल अरबों पेसोस (मुद्रा) का जो घाटा होता वह लगातार बढ़ता जा रहा है।” यूरोप में करीब 100 खरब रुपए खर्च होने का अंदाज़ा लगाया गया है।

आज ट्रैफिक कितना होगा?

ट्रैफिक की समस्या हल करने की लाख कोशिशों के बावजूद यह बदतर ही होती गयी है। अमरीका के ‘टैक्सस यातायात संस्थान’ ने अपने देश के 75 शहरी इलाकों का जब सर्वे लिया, तो पाया कि सन्‌ 1982 में ट्रैफिक जाम की वजह से पूरे साल के दौरान लोगों के औसतन 16 घंटे बेकार गए थे, मगर इसके बाद से हर साल यह गिनती बढ़ती गयी और सन्‌ 2000 तक 62 घंटे हो गए। दिन-भर में पहले 4.5 घंटे तक ट्रैफिक जाम हुआ करता था मगर अब 7 घंटे तक होता है। रिपोर्ट कहती है कि “सर्वे जब से शुरू हुआ है, तब से लेकर आज तक इन सभी इलाकों में ट्रैफिक जाम की समस्या बढ़ती गयी है। अब ट्रैफिक जाम का वक्‍त पहले से बढ़ रहा है, पहले से ज़्यादा सड़कें इसकी चपेट में आ रही हैं और पहले से ज़्यादा आवाजाही की वजह से ट्रैफिक बढ़ रहा है।”

दूसरे देशों से भी कुछ ऐसी ही रिपोर्टें मिली हैं। यूरोपियन कमीशन की निगरानी में काम कर रहे खोजकर्ता इस नतीजे पर पहुँचे हैं: “अगर हम अपने यातायात के तरीके में भारी बदलाव नहीं करेंगे, तो अगले दस साल के अंदर यह हाल होगा कि पूरे-के-पूरे शहर सड़क पर खड़े-खड़े बेकार में इंतज़ार करते नज़र आएँगे।”

एशियाई देशों का भी कुछ यही हाल है। टोक्यो तो ट्रैफिक जाम के लिए बदनाम है ही, अब जापान के दूसरे शहर भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। फिलीपींस में कुछ ऐसी रिपोर्टें आम हैं, जैसे मनिला बुलेटिन अखबार की यह रिपोर्ट: “काम पर जाने और घर लौटने के समय के दौरान, सड़कों पर ट्रैफिक की मानो बाढ़ आ जाती है, हज़ारों यात्री बेसब्री से इंतज़ार की घड़ियाँ गिनते नज़र आते हैं।”

यह कहना वाजिब होगा कि फिलहाल लगता है कि ट्रैफिक की समस्या का पूरी तरह हल नहीं होगा। ट्रैफिक में फँसना—काम से आते-जाते वक्‍त ट्रैफिक जाम (अँग्रेज़ी) किताब का लेखक ऐन्थनी डाउन्ज़ इस नतीजे पर पहुँचा: “भविष्य में होनेवाले ट्रैफिक जाम से निपटने के लिए चाहे किसी भी तरह के नियम बनाए जाएँ, फिर भी दुनिया के तकरीबन सभी हिस्सों में इस समस्या के और भी बढ़ने की गुंजाइश है। इसलिए मेरी यही सलाह है: इसकी आदत लगा लीजिए।”

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