Paragraph on Vikasshil Bharat
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2017 का भारत 1950 के भारत से बहुत भिन्न प्रतीत होता है। हमने कृषि के क्षेत्र में बहुत अच्छी प्रगति की है। हरित क्रांति हो चुकी है और हम खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बन चुके हैं। कृषि के अतिरिक्त जीवन के अन्य क्षेत्रों को भी नियोजन से लाभ पहुंचा है। शैक्षिक सुविधाओं का काफी विस्तार हुआ है। स्कूलों¸ कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की संख्या काफी बढ़ गई है। साक्षरता का प्रतिशत भी काफी बड़ा है। चिकित्सीय सुविधाएं भारत के दूरस्थ क्षेत्रों में पहुंच गई है। सैकड़ों हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी स्थापित की गई है और औषधियों का भारत में ही निर्माण हो रहा है। भारत में विज्ञान भी प्रगति के पथ पर है। सैकड़ों प्रयोगशालाएं और अनुसंधान केंद्र विभिन्न प्रकार के विषयों पर कार्य करने के लिए स्थापित किए हैं। भारत में औद्योगीकरण तेजी से बढ़ रहा है। भारत उद्योगों द्वारा निर्मित बहुत सी चीजों के बारे में आत्मनिर्भर होता जा रहा है। नाभिकीय एवं अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में हमारी प्रगति ने विश्व में हमारी प्रतिष्ठा को ही नहीं बनाया है बल्कि हमारे विकास और आर्थिक प्रगति के रास्ते खोल दिए हैं। प्रतिरक्षा के साज-समान और तकनीकी में हाल ही में हुए विकास के परिणाम स्वरूप सैनिक दृष्टि से हमने विश्व की बड़ी ताकतों में से एक का स्थान प्राप्त कर लिया है।
बहुत सी बहुउद्देशीय परियोजनाओं की स्थापना भारत के लिए वरदान साबित हुई है। संवाद वाहन और यातायात के साधनों में क्रांति आई है और उन्होंने भारत के जीवन में भी क्रांति मचा दी है। इन उपायों के कारण भारत ने अपने को अविकसित की दशा से निकालकर विकासशील अर्थव्यवस्था में प्रवेश किया है। उसकी संपूर्ण राष्ट्रीय आय (जी एन पी) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इन सब के अतिरिक्त सरकार ने गाँवों से गरीबी दूर करने के लिए कदम उठाए हैं। एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम¸ ट्राईसम¸ स्पेशल कंपोनेंट प्लान¸ प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम और अन्य बहुत से कार्यक्रमों जिनका उद्देश्य रोजगार प्रदान करना और जनता के रहन-सहन के स्तर को ऊंचा उठाना है¸ ने ग्रामीण निर्धन¸ पद-दलित एवं निराश लोगों को एक नयी आशा प्रदान की है।
हाल ही में बेशुमार समृद्धि बहुत से लोगों को मिली है इतनी तीव्र गति से समृद्धि का आना पहले कभी नहीं देखा गया था। नवीन धनाढ्य लोगों के एक वर्ग का उदय हुआ जोकि उच्च स्तर का रहन सहन का स्तर बनाए हुए है। वह भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के समय साइकलों का आयात करता था। अब बहुत ही जटिल प्रकार की सामग्री अपने उद्योगों में बना रहा है। अनेक प्रकार की विलासिता युक्त कारें प्रत्येक सड़क पर देखी जा सकती हैं। बड़ी बड़ी आवासीय इमारतें प्रत्येक कस्बें और शहर में दर्शकों में भय और विस्मय पैदा करती हैं। बहुत से लोगों के लिए वायु यात्रा एक सामान्य सी बात हो गई है जबकि 1950 में राजनीतिज्ञ और बड़े उद्योगपति ही वायुयान से यात्रा करते थे। सभी क्षेत्रों में भारत उन्नत देशों के साथ सहज प्रतियोगिता कर रहा है जिसका श्रेय नियोजन को है।
ये सब हमारी बहुत अच्छी उपलब्धियां हैं जिनके लिए हमें गर्व महसूस हो सकता है किंतु जब सतह से नीचे देखते हैं तो जो तस्वीर हमें नजर आती है वह बड़ी ही निराशाजनक है। नियोजन से समस्त देश को लाभ नहीं पहुंचा है। आम जनता की दशा अभी वहीं की वहीं है। हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग अभी भी गरीबी की रेखा के नीचे से जीवन यापन कर रहा है। जनसंख्या का एक अंश ऐसा है जिसको दिन में पेट भर भोजन भी नहीं मिल पाता है। भारत के कुछ हिस्सों में तो करोड़ों की संख्या में लोग अति निर्धनता¸ गंदगी और बीमारी का जीवन जीते हैं। अर्ध पोषित¸ दुबले और भूखे लोगों को अभी देखा जा सकता है। ऐसा क्यों है? इसका पहला कारण यह है कि हमारे नियोजन में असमानताओं को दूर करने की दिशा में बहुत कम काम किया गया है। अमीर और अधिक अमीर हो गए हैं। निर्धन और अधिक निर्धन हो गए हैं। सरकार ने जो योजनाएं गरीबों के लाभ के लिए चलाईं उनसे अमीरों को फायदा पहुंचा है क्योंकि निर्धन साधनहीन और कमजोर है। बहुत से निर्धन लोग तो यह भी नहीं जानते कि सरकार उनके लिए कुछ कर रही है इसलिए विभिन्न योजनाओं से मिलने वाले लाभ अमीरों द्वारा हथिया लिए जाते हैं। भारत के 80% संसाधनों को 10% अमीर लोग हड़प कर जाते हैं और शेष 20% भाग 90% निर्धन जनता में बंटता है जोकि अत्यंत ही अपर्याप्त अंश है। देश में व्यापक निरक्षरता है जिसकी वजह से सामाजिक और सांस्कृतिक पिछड़ापन बहुत अधिक है। हमारी बहुत सी जनसंख्या को तो अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान नहीं है। वे अब भी दासता की स्थिति में है क्योंकि वे अमीरों और शक्तिशालियों से अपना हक मांगने का साहस भी नहीं कर सकते।
वास्तव में बड़ी दुखद स्थिति है कोई राष्ट्र तभी मजबूत बनता है जबकि इसकी आम जनता शारीरिक¸ मानसिक¸ आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो। बहुत ही अल्प संख्या के लोगों का विकास भारत को महान नहीं बनाएगा। हमें तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए भले कार्य करना है। हमें ऐसा साधन और व्यापक नियोजन करना है कि प्रत्येक व्यक्ति के हितों का ध्यान रखा जा सके। आवश्यकता इस बात की भी है कि विकेंद्रीयकरण को और अधिक बढ़ाया जाए जिससे योजनाओं का लाभ सामान्य जनता तक पहुंच सके। हमें वास्तविक निर्धनों की तलाश करनी है और उनके हितों की चिंता करनी है। आय की असमानताओं को शीघ्रातिशीघ्र कम किया जाना चाहिए। गरीबों की शैक्षिक¸ चिकित्सीय एवं अन्य सुविधाएं निःशुल्क उपलब्ध करानी चाहिए। व्यक्ति पर आधारित नियोजन ही व्यक्ति तक पहुंचने और उनकी दशा सुधारने का सुनिश्चित एवं सर्वोत्तम साधन है।
बहुत सी बहुउद्देशीय परियोजनाओं की स्थापना भारत के लिए वरदान साबित हुई है। संवाद वाहन और यातायात के साधनों में क्रांति आई है और उन्होंने भारत के जीवन में भी क्रांति मचा दी है। इन उपायों के कारण भारत ने अपने को अविकसित की दशा से निकालकर विकासशील अर्थव्यवस्था में प्रवेश किया है। उसकी संपूर्ण राष्ट्रीय आय (जी एन पी) में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इन सब के अतिरिक्त सरकार ने गाँवों से गरीबी दूर करने के लिए कदम उठाए हैं। एकीकृत ग्रामीण विकास कार्यक्रम¸ ट्राईसम¸ स्पेशल कंपोनेंट प्लान¸ प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम और अन्य बहुत से कार्यक्रमों जिनका उद्देश्य रोजगार प्रदान करना और जनता के रहन-सहन के स्तर को ऊंचा उठाना है¸ ने ग्रामीण निर्धन¸ पद-दलित एवं निराश लोगों को एक नयी आशा प्रदान की है।
हाल ही में बेशुमार समृद्धि बहुत से लोगों को मिली है इतनी तीव्र गति से समृद्धि का आना पहले कभी नहीं देखा गया था। नवीन धनाढ्य लोगों के एक वर्ग का उदय हुआ जोकि उच्च स्तर का रहन सहन का स्तर बनाए हुए है। वह भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के समय साइकलों का आयात करता था। अब बहुत ही जटिल प्रकार की सामग्री अपने उद्योगों में बना रहा है। अनेक प्रकार की विलासिता युक्त कारें प्रत्येक सड़क पर देखी जा सकती हैं। बड़ी बड़ी आवासीय इमारतें प्रत्येक कस्बें और शहर में दर्शकों में भय और विस्मय पैदा करती हैं। बहुत से लोगों के लिए वायु यात्रा एक सामान्य सी बात हो गई है जबकि 1950 में राजनीतिज्ञ और बड़े उद्योगपति ही वायुयान से यात्रा करते थे। सभी क्षेत्रों में भारत उन्नत देशों के साथ सहज प्रतियोगिता कर रहा है जिसका श्रेय नियोजन को है।
ये सब हमारी बहुत अच्छी उपलब्धियां हैं जिनके लिए हमें गर्व महसूस हो सकता है किंतु जब सतह से नीचे देखते हैं तो जो तस्वीर हमें नजर आती है वह बड़ी ही निराशाजनक है। नियोजन से समस्त देश को लाभ नहीं पहुंचा है। आम जनता की दशा अभी वहीं की वहीं है। हमारी जनसंख्या का एक बहुत बड़ा भाग अभी भी गरीबी की रेखा के नीचे से जीवन यापन कर रहा है। जनसंख्या का एक अंश ऐसा है जिसको दिन में पेट भर भोजन भी नहीं मिल पाता है। भारत के कुछ हिस्सों में तो करोड़ों की संख्या में लोग अति निर्धनता¸ गंदगी और बीमारी का जीवन जीते हैं। अर्ध पोषित¸ दुबले और भूखे लोगों को अभी देखा जा सकता है। ऐसा क्यों है? इसका पहला कारण यह है कि हमारे नियोजन में असमानताओं को दूर करने की दिशा में बहुत कम काम किया गया है। अमीर और अधिक अमीर हो गए हैं। निर्धन और अधिक निर्धन हो गए हैं। सरकार ने जो योजनाएं गरीबों के लाभ के लिए चलाईं उनसे अमीरों को फायदा पहुंचा है क्योंकि निर्धन साधनहीन और कमजोर है। बहुत से निर्धन लोग तो यह भी नहीं जानते कि सरकार उनके लिए कुछ कर रही है इसलिए विभिन्न योजनाओं से मिलने वाले लाभ अमीरों द्वारा हथिया लिए जाते हैं। भारत के 80% संसाधनों को 10% अमीर लोग हड़प कर जाते हैं और शेष 20% भाग 90% निर्धन जनता में बंटता है जोकि अत्यंत ही अपर्याप्त अंश है। देश में व्यापक निरक्षरता है जिसकी वजह से सामाजिक और सांस्कृतिक पिछड़ापन बहुत अधिक है। हमारी बहुत सी जनसंख्या को तो अपने अधिकारों और कर्तव्यों का ज्ञान नहीं है। वे अब भी दासता की स्थिति में है क्योंकि वे अमीरों और शक्तिशालियों से अपना हक मांगने का साहस भी नहीं कर सकते।
वास्तव में बड़ी दुखद स्थिति है कोई राष्ट्र तभी मजबूत बनता है जबकि इसकी आम जनता शारीरिक¸ मानसिक¸ आर्थिक एवं सांस्कृतिक रूप से मजबूत हो। बहुत ही अल्प संख्या के लोगों का विकास भारत को महान नहीं बनाएगा। हमें तो प्रत्येक व्यक्ति के लिए भले कार्य करना है। हमें ऐसा साधन और व्यापक नियोजन करना है कि प्रत्येक व्यक्ति के हितों का ध्यान रखा जा सके। आवश्यकता इस बात की भी है कि विकेंद्रीयकरण को और अधिक बढ़ाया जाए जिससे योजनाओं का लाभ सामान्य जनता तक पहुंच सके। हमें वास्तविक निर्धनों की तलाश करनी है और उनके हितों की चिंता करनी है। आय की असमानताओं को शीघ्रातिशीघ्र कम किया जाना चाहिए। गरीबों की शैक्षिक¸ चिकित्सीय एवं अन्य सुविधाएं निःशुल्क उपलब्ध करानी चाहिए। व्यक्ति पर आधारित नियोजन ही व्यक्ति तक पहुंचने और उनकी दशा सुधारने का सुनिश्चित एवं सर्वोत्तम साधन है।
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