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laziness
in Hindi
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Explanation:
ऐसी मानसिक या शारीरिक शिथिलता जिसके कारण किसी काम को करने में मन नहीं लगता आलस्य है । कार्य करने में अनुत्साह आलस्य है । सुस्ती और काहिली इसके पर्याय हैं । संतोष की यह जननी है, जो मानवीय प्रगति में बाधक है । वस्तुत: यह ऐसा राजरोग है, जिसका रोगी कभी नहीं संभलता । असफलता, पराजय और विनाश आलस्य के अवश्यम्भावी परिणाम हैं ।
आलसियों का सबसे बड़ा सहारा ‘भाग्य’ होता है । उन लोगों का तर्क होता है कि ‘होगा वही जो रामरुचि रखा ।’ प्रत्येक कार्य को भाग्य के भरोसे छोड़कर आलसी व्यक्ति परिश्रम से दूर भागता है । इस पलायनवादी प्रवृत्ति के कारण आलसियों को जीवन में सफलता नहीं मिल पाती । वस्तुत: आलस्य और सफलता में 36 का आंकड़ा है ।
भाग्य और परिश्रम के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए सभी विचारकों ने परिश्रम के महत्व को स्वीकार किया है और भाग्य का आश्रय लेने वालों को मूर्ख और कायर बताया है । बिना परिश्रम के तो शेर को भी आहार नहीं मिल सकता । यदि वह आलस्य में पड़ा रहे, तो भूखा ही मरेगा ।
आलस्य की भर्त्सना सभी विद्वानों, संतों, महात्माओं और महापुरुषों ने की है । स्वामी रामतीर्थ ने आलस्य को मृत्यु मानते हुए कहा, ‘आलस्य आपके लिए मृत्यु है और केवल उद्योग ही आपका जीवन है । संत तिरूवल्लुवर कहते हैं, ‘उच्च कुल रूपी दीपक, आलस्य रूपी मैल लगने पर प्रकाश में घुटकर बुझ जाएगा ।’
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Explanation:
ऐसी मानसिक या शारीरिक शिथिलता जिसके कारण किसी काम को करने में मन नहीं लगता आलस्य है । कार्य करने में अनुत्साह आलस्य है । सुस्ती और काहिली इसके पर्याय हैं । संतोष की यह जननी है, जो मानवीय प्रगति में बाधक है । वस्तुत: यह ऐसा राजरोग है, जिसका रोगी कभी नहीं संभलता । असफलता, पराजय और विनाश आलस्य के अवश्यम्भावी परिणाम हैं ।
आलसियों का सबसे बड़ा सहारा ‘भाग्य’ होता है । उन लोगों का तर्क होता है कि ‘होगा वही जो रामरुचि रखा ।’ प्रत्येक कार्य को भाग्य के भरोसे छोड़कर आलसी व्यक्ति परिश्रम से दूर भागता है । इस पलायनवादी प्रवृत्ति के कारण आलसियों को जीवन में सफलता नहीं मिल पाती । वस्तुत: आलस्य और सफलता में 36 का आंकड़ा है ।
भाग्य और परिश्रम के सम्बन्ध में विचार व्यक्त करते हुए सभी विचारकों ने परिश्रम के महत्व को स्वीकार किया है और भाग्य का आश्रय लेने वालों को मूर्ख और कायर बताया है । बिना परिश्रम के तो शेर को भी आहार नहीं मिल सकता । यदि वह आलस्य में पड़ा रहे, तो भूखा ही मरेगाlअत: आलस्य को अपना परम शत्रु समझो और कर्तव्यपरायण बन परिस्थिति का सदुपयोग करते हुए उसे अपने अनुकूल बनाओ । कारण, कार्य मनोरथ से नहीं, उद्यम से सिद्ध होते हैं । जीवन के विकास-बीज आलस्य से नहीं, उद्यम से विकसित होते हैं ।
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