परलौकिक सही है या पारलोकिक सही है??? कृपया इसका आंसर ऑथेंटिक प्रफ़ु के साथ देना
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Answer:
हिन्दू धर्मग्रंथों में दो तरह की विद्याओं का उल्लेख किया गया है- परा और अपरा। धर्म में उल्लेखित यह परा और अपरा ही लौकिक और पारलौकिक कहलाती है। दुनिया में ऐसे कई लोग हैं, जो इन विद्याओं को किसी न किसी रूप में जानते हैं। वे इन विद्याओं के बल पर ही भूत, भविष्य का वर्णन कर देते हैं और इसके बल पर ही वे जादू और टोना करने की शक्ति भी प्राप्त कर लेते हैं।
वेदों से लेकर पुराणों तक इन विद्याओं के बारे में बहुत विस्तार से बताया गया है। खासकर उपनिषदों और योग ग्रंथों में इन विद्याओं के संबंध में विस्तार से जानकारी मिलेगी। मुंडकोपनिषद अनुसार परा यौगिक साधना है और अपरा अध्यात्मिक ज्ञान है। जिस विद्या से 'अक्षरब्रह्म' का ज्ञान होता है, वह 'परा' विद्या है और जिससे ऋग, यजु, साम, अथर्व, शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छंद और ज्योतिष का ज्ञान होता है, वह 'अपरा' विद्या है।
परा प्राकृतिक शब्द उन व्यक्तियों, वस्तुओं या घटनाओं के लिए प्रयुक्त होता है जिसे कुछ लोग वास्तविक मानते हैं, लेकिन जो प्रकृति का भाग नहीं होते या सामान्य प्रकृति से परे होते हैं। 'अलौकिक' या 'पारलौकिक' शब्द भी इसके लिए प्रयुक्त होता है। पराशक्ति या अलौकिक शक्तिसंपन्न व्यक्ति को चमत्कारिक व्यक्ति माना जाता है, जो भूत, वर्तमान और भविष्य की घटनाओं का ज्ञान रखता है और जो कभी भी किसी भी प्रकार का चमत्कार करने की क्षमता रखता है।