परम्परा की विशेषताएँ बताइए।
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रघुकुल की परंपरा की क्या विशेषताएं
प्राण चले जाए पर किसी दिया हुआ वचन ना जाए, वचन पूरा करना ही करना है।
रघुकुल की परंपरा में मर्यादा को अहमियत दी जाती थी।
रघुकुल की परंपरा में सत्यवचन बोले जाते थे।
रघुकुल की परंपरा में वचनों का पालन किया जाता था।
रघुकुल में चरित्र, त्याग, तप, ताप व शौर्य का प्रतीक रहा है
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परम्परा की विशेषताएँ:
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परम्परा की विशेषताएँ:
1 परम्पराओं का प्रत्येक समाज में अधिक महत्त्व होता है। परम्परा, जैसा कि हम ऊपर लिख चुके हैं हमारे व्यवहार के ढंगों का पता चलाते है। परम्पराएँ वह निर्धारित करती हैं कि हमें किस समय, ऊपर लिख चुके हैं, हमारे व्यवहार के तरीकों की द्योतक है, अर्थात् परम्परा के आधार पर हम किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। व्यवहार के ये तैयार प्रतिमान (readymade patterns of behaviour) हमें बचपन से ही, समाजिकरण की प्रक्रिया के माध्यम से, अन्य लोगों से. आप से आप प्राप्त हो जाते हैं। यही कारण है कि सामाजिक जीवन से सम्बन्धित अनेक परिस्थितियों में हमें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए, यह हमें सोचना नहीं पड़ता और परम्पररा की सहायता से सारा काम आप से आप चलता रहता है। परम्पराओं के कारण ही अनेक सामकजिक परिस्थितियाँ हमें नई नहीं लगती । अतः स्पष्ट है कि परम्परा सामाजिक व्यवहार को सरल बनाती है और उसे एक निश्चित दिशा देती है।
2. परम्परा सामाजिक जीवन में व वैयक्तिक व्यवहार में एकरूपता उत्पन्न करती है। परम्परा हस्तान्तरित होती है; पर, यह नहीं होता है कि व्यक्ति को एक परम्परा के रूप में मिले तो दूसरे को वही किसी दूसरे रूप में। परम्परा का रूप सबके लिए समान होता है; और जब परम्परा के अनुसार समाज के सदस्य समान रूप में व्यवहार करते हैं तो सामाजिक जीवन वा व्यवहार में एकरूपता उत्पन्न हो जाती है।
3. परम्पराओं के बल पर समाज -
नवीन परिरस्थितियों, समस्याओं तथा संकटों का सामना अपेक्षाकृत अधिक सरलता तथा सफलतापूर्वक कर सकता है। यह सच है कि नवीन परिस्थितियों तथा संकटों का सामना करने के लिए नवीन तरीकों व नवीन ज्ञान पर आधारित होते है। यही नहीं, इस विषय में परम्परा या भूतकाल की देन वर्तमान से अधिक होती है। इसीलिए डा० मैकडूगल ने लिखा है कि हम जीवितों की अपेक्षा मृतकों से अधिक सम्बन्धित होते हैं। समस्याओं को सुलझाने या परिस्थितियों का सामना करने के पुराने ढ़गों की नींव पर ही जीवन की नवीन प्रणालियों को विकसित किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त नवीन परिस्थितियों, समस्यों तथा संकटों का सामना करने के लिए जिस धैर्य, साहस तथा आत्मविश्वास की अपेक्षा होती है, वह हमें 'परम्परा' के अनुभवों से ही प्राप्त हो सकता है।
3.परम्परा व्यक्ति में सुरक्षा की भावना पनपती है।
परम्परा अनुभवसिद्ध व्यवहारों का संग्रह होती है । हमारे पूर्वज, बहुत प्रयास के बाद, विभिन्न परिस्थितियों में जिन व्यवहारों या क्रियाओं के ढ़गों को सफल पाते है, उचित समझते हैं, वही हमें परम्परा के रूप में प्राप्त होते हैं। इस रूप में परम्परा पूर्वजों द्वारा व्यावहारिक ढ़ग से परीक्षित व्यवहार के सफल व उपयोगी तरीकों का ही दूसरा नाम है। इसीलिए इन तरीकों के सम्बन्ध में हमारे मन में दुविधा नहीं होती, और हम अपने अन्दर विभिन्न परिस्थितियों में एक सुरक्षा की भावना को स्वत: ही विकसित कर लेते है। कारण यह है कि हमें पहले से ही यह पता होता है कि किस परिस्थिति में हमें किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए।