परम्परा विकास में बाधक है- इस कथन के पक्ष और विपक्ष में अपने विचार लिखिए। • प्रस्तावना - परम्परा से क्या तात्पर्य है ? • जीवन में परम्परा का महत्व • परम्परा विकास में सहायक होती है • उदहारण देकर प्राचीन परम्पराओं का उल्लेख • उपसंहार
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उपरोक्त सेमिनार में ‘परम्परा’ का कोई भी निश्चित अर्थ नहीं दिया गया, फिर भी स्थूल रूप से इसका क्षेत्र अवश्य बतलाया गया । परम्परा और आधुनिकता दोनों में ही विचारों की एक व्यवस्था, मूल्यों की एक व्यवस्था और संस्थाओं की व्यवस्था सम्मिलित है । ये विचार, मूल्य और संस्थायें परम्परा में अलग और आधुनिकता में अलग होते हैं ।
इस प्रकार परम्परा और आधुनिकता के जगत अलग-अलग है किन्तु कोई भी वास्तविक समाज न तो केवल परम्परागत है और न पूरी तरह से आधुनिक ही कहा जा सकता है इसलिए परम्परा और आधुनिकता का यह भेद केवल सैद्धान्तिक रूप से ही किया जा सकता है अन्यथा प्रत्येक समाज में परम्परा और आधुनिकता परस्पर मिले-जुले रूप में दिखलाई पड़ते हैं ।
डॉ. योगेन्द्र सिंह ने भारत में “परम्परा और आधुनिकता’ पर सेमिनार में अपना लेख प्रस्तुत करते हुए उसमें परम्परा की व्याख्या करने का प्रयास किया है । उनके अपने शब्दों में- “परम्परा समाज की एक सामूहिक विरासत है जो कि सामाजिक संगठन के सभी स्तरों में व्याप्त होती है, उदाहरण के लिए मूल्य-व्यवस्था सामाजिक संरचना और व्यक्तित्व की संरचना । इस प्रकार परम्परा सामाजिक विरासत को कहा जाता है इस सामाजिक विरासत के तीन तत्व हैं- मूल्यों की व्यवस्था, सामाजिक संरचना और उसके परिणामस्वरूप व्यक्तित्व की संरचना ।”
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