परमात्मा समाज द्वारा तिरस्कृत लोगो के साथ कैसा व्यवहार करते है ?
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उपासना विकास की प्रक्रिया है। संकुचित को सीमा रहित करना, स्वार्थ को छोड़कर परमार्थ की ओर अग्रसर होना, ''मैं'' और मेरा छुड़ाकर 'हम' और 'हमारे' की आदत डालना ही मनुष्य के आत्म-तत्व की ओर विकास की परम्परा है। यह तभी सम्भव है. जब सर्वशक्तिमान परमात्मा को स्वीकार कर लें, उसकी शरणागति की प्राप्ति हो जाय।
- जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही महारास है। गोपी का अर्थ गो यानी इंद्रियां और पी यानि कृष्ण रस का पान करना ही गोपी साध का नाम है।
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उपासना विकास की प्रक्रिया है। संकुचित को सीमा रहित करना, स्वार्थ को छोड़कर परमार्थ की ओर अग्रसर होना, ''मैं'' और मेरा छुड़ाकर 'हम' और 'हमारे' की आदत डालना ही मनुष्य के आत्म-तत्व की ओर विकास की परम्परा है। यह तभी सम्भव है. जब सर्वशक्तिमान परमात्मा को स्वीकार कर लें, उसकी शरणागति की प्राप्ति हो जाय।
जीवात्मा और परमात्मा का मिलन ही महारास है। गोपी का अर्थ गो यानी इंद्रियां और पी यानि कृष्ण रस का पान करना ही गोपी साध का नाम है।