Hindi, asked by Sagargujjar, 1 year ago

परशुराम के उपदेश कविता में देशवासियों कप स्वाधीनता के लिए संघर्ष की प्रेरणा दी गयी है।आज के संदर्भ में क्या ये कैट प्रासंगिक है?सोदाहरण सिद्ध कीजिये।

Answers

Answered by cksharan
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महापुरूष किसी एक देश, एक युग, एक जाति या एक धर्म के नहीं होते। वे तो सम्पूर्ण मानवता की, समस्त विश्व की, समूचे राष्ट्र की विभूति होते हैं। उन्हें किसी भी सीमा में बांधना ठीक नहीं है। दुर्भाग्य से हमारे स्वातंत्र्योत्तर युग में महापुरूषों को स्थान, धर्म और जाति की बेड़ियों में जकड़ा गया है। विशेष महापुरूष विशेष वर्ग के द्वारा ही सत्कृत हो रहे हैं। एक समाज विशेष ही विशिष्ट व्यक्तित्व की जयंती मनाता है, अन्य जन उसमें रूचि नहीं दर्शाते, ऐसा प्रायः देखा जा रहा है। यह स्थिति दुभाग्यपूर्ण है। महापुरूष चाहे किसी भी देश, जाति, वर्ग, धर्म आदि से संबंधित हो, वह सबके लिए समान रूप से पूज्य है, अनुकरणीय है। इस संदर्भ में भगवान परशुराम जो उपर्युक्त बिडंबनापूर्ण स्थिति के चलते केवल ब्राह्मण वर्ग तक सीमित हो गए हैं, समस्त शोषित वर्ग के लिए प्रेरणा स्रोत क्रांति‍दूत के रूप में स्वीकार किए जाने योग्य हैं और सभी शक्तिधरों के लिए संयम के अनुकरणीय आदर्श हैं।
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