परशुराम ने सेवक किसे कहा हैh
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परशुराम जी क्रोधित होकर बोले-सेवक वह कहलाता है, जो सेवा का काम करता है। मेरे प्रिय आराध्य का धनुष तोड़ने वाले ने शत्रु का काम किया है इसलिए उससे लड़ाई करनी चाहिए। वे आगे कहते हैं कि आराध्य देव शिव का यह धनुष जितने भी तोड़ा है, वह सहस्त्रबाहु के समान मेरा शत्रु है।
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परशुराम ने सेवक उसे कहा है जो सेवा का कार्य करता है ।
- जब सीता के स्वयंवर में श्री राम ने शिवजी का धनुष तोड़ा तब परशुराम बड़े क्रोधित हुए।
- वे क्रोधित होकर पूछने आए कि शिवजी का धनुष किसने तोड़ा?, कहां है राम ? इस पर लक्ष्मण ने उनसे कहा कि आप इतना क्रोधित क्यों हो रहे हो? बच्चों जैसा व्यवहार कर रहे है । लक्ष्मण ने उन्हें अहंकारी कहा। लक्ष्मण ने कहा कि वे राम का नाम आदर से ले व उन्हें श्रीराम कहें।
- इस पर परशुराम ने लक्ष्मण को उद्धंड बालक कहा।
- श्रीराम ने उनका क्रोध शांत करने का प्रयत्न करते हुए कहा कि आप कृपया शांत हो जाइए , मै तो आपका सेवक हूं। इस पर परशुराम ने कहा कि सेवक वह होता है जो सेवा का कार्य करे न कि शत्रुओं जैसा कार्य करे। तुमने शिवजी का धनुष तोड़कर शिवजी के शत्रु होने का कार्य किया है।
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