परशुराम पर 100 शब्दो में अनुच्छेद लिखिए
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भगवान परशुराम वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन अवतरित हुए भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। इन्हें विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है क्योंकि इनके क्रोध की कोई सीमा नहीं थी। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध स्वरूप इन्हें हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध करने व उनका समूल नाश करने के लिये जाना जाता है। अपने पिता की आज्ञा का पालन करने के लिये इन्होंने अपनी माता सहित अपने सभी भाईयों का शीष धड़ से अलग कर दिया था। हालांकि उन्हें पुनर्जीवित करने का वरदान भी बाद में पिता जमदग्नि से मांगा। इन्हीं परशुराम को भगवान विष्णु के दसवें अवतार जो कि कल्कि के रूप में अवतरित होंगे का गुरु भी माना जाता है। भगवान रामायण से लेकर महाभारत तक भगवान परशुराम के शौर्य की गाथा बहुत ही रोमांचक है। परशुराम जयंती पर आइये जानते हैं उनसे जुड़ी पौराणिक कथाएं। सदियों नहीं युगों पुरानी बात है कि कन्नौज में गाधि नाम के राजा राज्य किया करते थे। उनकी कन्या रूपगुण से संपन्न थी जिसका नाम था सत्यवती। विवाहयोग्य होने पर सत्यवती का विवाह भृगु ऋषि के पुत्र ऋषिक के साथ हुआ। विवाहोपरांत जब ऋषि भृगु ने अपनी पुत्रवधु को वरदान मांगने के लिये कहा तो सत्यवती ने अपनी माता के लिये पुत्र की कामना की। भृगु ऋषि ने दो चरु पात्र देते हुए कहा कि इन दोनों पात्रों में से एक तुम्हारे लिये है और दूसरा तुम्हारी माता के लिये जब तुम दोनों ऋतु स्नान कर लो तो पुत्र इच्छा लेकर पीपल के वृक्ष से तुम्हारी मां आलिंगन करें और तुम गूलर के वृक्ष से। तत्पश्चात अपने-अपने चरु पात्र का सावधानी से सेवन करना। तुम्हारी कामना पूर्ण होगी। सत्यवती की मां को जब पता चला कि उत्तम संतान प्राप्ति के लिये भृगु ने सत्यवती को चरु पात्र दिये हैं तो उसके मन में पाप आ गया और उसने सत्यवती के पात्र से अपना पात्र बदल दिया।
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भगवान परशुराम वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन अवतरित हुए भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। इन्हें विष्णु का आवेशावतार भी कहा जाता है क्योंकि इनके क्रोध की कोई सीमा नहीं थी। अपने पिता की हत्या के प्रतिशोध स्वरूप इन्हें हैहय वंशी क्षत्रियों के साथ 21 बार युद्ध करने व उनका समूल नाश करने के लिये जाना जाता है।