परतंत्रता एक अभिशाप पर अनुच्छेद
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वास्तव में पराधीनता एक अभिशाप है। पराधीन मनुष्य की जिंदगी उसी तरह हो जाती है, जैसे-पिंजरे में बंद पक्षी। ऐसा जीवन जीने वाला मनुष्य सपने में भी सुखी नहीं हो सकता है। उसे दूसरों का गुलाम बनकर अपनी इच्छाएँ और मन मारकर जीना होता है।
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रथथथथददणबडणथमभबढढतचगडबभतथक्षभ
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