परवत प्रदेश मे पावस कविता के आधार पर परवत के रूप-स्वरूप का चत्रण किजिए answer it i need the answer fast
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पर्वत प्रदेश में पावस’ कविता पर्वतीय सौंदर्य को व्यक्त करने वाली कविता है। प्रकृति का यह सौंदर्य वर्षा में और भी बढ़ जाता है। वर्षा काल में प्रकृति में क्षण-क्षण होने वाला परिवर्तन देखकर लगता है कि प्रकृति सजने-धजने के क्रम में पल-पल अपना वेश बदल रही है। विशाल आकार वाला मेखलाकार पर्वत है जिस पर फूल खिले हैं। पर्वत के पास ही विशाल तालाब है जिसमें पर्वत अपना सौंदर्य निहारता है और आत्ममुग्ध होता है। तालाब का जल इतना स्वच्छ है जैसे दर्पण हो। पर्वतों से गिरते झरने सफ़ेद मोतियों की लड़ियों जैसे लगते हैं। अचानक बादल उमड़ते हैं। बादलों में पर्वत और झरने अदृश्य हो जाते हैं। ऐसा लगता है जैसे पर्वत विशालकाय पक्षी की भाँति पंख फड़फड़ाकर उड़ जाते हैं। मूसलाधार वर्षा आरंभ हो जाती है। शाल के पेड़ भयभीत होकर धरती में धंसने से लगते हैं। तालाब से धुआँ उठने लगता है। ऐसा लगता है जैसे इंद्र अपनी जादूगरी दिखा रहा है।Read more on Sarthaks.com - https://www.sarthaks.com/487444/