parchuram ki visheshta
class 10 hindi ch 2
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परशुराम त्रेता युग (रामायण काल) के एक ब्राह्मण हैं। उन्हें विष्णु का छठा अवतार भी कहा जाता है[1]। पौराणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म भृगुश्रेष्ठ महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को हुआ था। वे भगवान विष्णु के छठे अवतार थे। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम, जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से सारंग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया।
राजा रवि वर्मा द्वारा परशुराम जी का चित्र।
वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचचत्वारिंशनाम स्तोत्र" भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-"ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नोपरशुराम: प्रचोदयात्।" वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है।