parhit saris dharm nahi bhai par kahani
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”परहित सरिस धर्म नहिं भाई ।
पर पीड़ा सम नहिं अघमाई ।।”
उन्होंने ‘परहित’ अर्थात् परोपकार को मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म बताया है । वहीं दूसरी ओर दूसरों को कष्ट पहुँचाने से बड़ा कोई अधर्म नहीं है । परोपकार ही वह गुण है जिसके कारण प्रभु ईसा मसीह सूली पर चढ़े, गाँधी जी ने गोली खाई तथा गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने सम्मुख अपने बच्चों को दीवार में चुनते हुए देखा ।
सुकरात ने विष के प्याले का वरण कर लिया लेकिन मानवता को सच्चा ज्ञान देने के मार्ग का त्याग नहीं किया । ऋषि दधीचि ने देवताओं के कल्याण के लिए अपना शरीर त्याग दिया। इसके इसी महान गुण के कारण ही आज भी लोग इन्हें श्रद्धापूर्वक नमन करते हैं ।
परोपकार ही वह महान गुण है जो मानव को इस सृष्टि के अन्य जीवों से उसे अलग करता है और सभी में श्रेष्ठता प्रदान करता है । इस गुण के अभाव में तो मनुष्य भी पशु की ही भाँति होता ।
‘मैथिलीशरण गुप्त’ जी ने ठीक ही लिखा है कि:
“यह पशु प्रवृत्ति है कि आप आप ही चरे ।
वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे ।”
अत: वही मनुष्य महान है जिसमें परोपकार की भावना है । वह निर्धनों की सहायता में विश्वास रखता है । वह निर्बलों का सहारा बनता है तथा खुद शिक्षित होता है और शिक्षा का प्रकाश दूसरों तक फैलाता है । परोपकार की भावना से परिपूरित व्यक्ति ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ भावना को अपनाकर मानवता के कल्याण के लिए निरंतर अग्रसर रहता है ।
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