paribhashik shabd of club
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प्राचीन भारत में ही दर्शन, ज्योतिष, गणित, आयुर्वेद आदि कुछ विषयों में प्रचुर भारतीय शब्दावली उपलब्ध थी। स्थापित हो चुके पारिभाषिक शब्दों के लिए पर्याय निश्चित करने एवं मानक भाषा विकसित करने का वास्तविक कार्य भारत में नागरी प्रचारिणी सभा (काशी), हिन्दी साहित्य सम्मेलन (प्रयाग), बंगाल साहित्य परिषद, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय (हरिद्वार), उस्मानिया विश्वविद्यालय, हिंदुस्तानी कल्चर सोसाइटी आदि के माध्यम से संभव हो सका। सन् 1898 ई. में नागरी प्रचारिणी सभा ने 'हिन्दी साइंटिफिक ग्रासरी' नामक पारिभाषिक कोश को तैयार करना प्रारंभ कर दिया था, जो सन् 1901 ई. में सम्पन्न हो गया था।[1] इस दिशा में डॉ॰ सत्यप्रकाश (विज्ञान परिषद, इलाहाबाद) तथा डॉ॰ रघुवीर के कार्य विशेष उल्लेखनीय हैं। उसके बाद लगभग चार दशक बाद सन् 1940 ई. में सुखसंपतिराय भंडारी (अजमेर) का 'ट्वेंटिएथ सेंच्युरी इंग्लिश-हिन्दी डिक्शनरी' छपकर लोगों के सामने आया और आजादी के बाद सन् 1951 ई.में डॉ॰ रघुवीर का ‘अ कोम्प्रिहेंसिव इंग्लिश-हिन्दी डिक्शनरी’ प्रकाशित हुआ।
डॉ॰ रघुवीर के कोश कार्य की एक ओर अत्यधिक प्रशंसा हुई, दूसरी ओर अत्यधिक आलोचना. वस्तुत: यह प्रशंसनीय कार्य था, जिसको अत्यधिक श्रम से वैज्ञानिक आधार पर प्रस्तुत किया गया। संपूर्णत: संस्कृत पर आधारित होने के कारण इसकी व्यावहारिकता पर संदेह किया जाने लगा. उन्होंने सर्वप्रथम भाषा-निर्माण में यांत्रिकता तथा वैज्ञानिकता को स्थान दिया। उपसर्ग तथा प्रत्ययों के धातुओँ के योग से लाखों शब्द सहज ही बनाये जा सकते हैं:
पारिभाषिक शब्दावली
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पारिभाषिक शब्दावली या परिभाषा कोश, "ग्लासरी" (glossary) का प्रतिशब्द है। "ग्लासरी" मूलत: "ग्लॉस" शब्द से बना है। "ग्लॉस" ग्रीक भाषा का glossa है जिसका प्रारंभिक अर्थ "वाणी" था। बाद में यह "भाषा" या "बोली" का वाचक हो गया। आगे चलकर इसमें और भी अर्थपरिवर्तन हुए और इसका प्रयोग किसी भी प्रकार के शब्द (पारिभाषिक, सामान्य, क्षेत्रीय, प्राचीन, अप्रचलित आदि) के लिए होने लगा। ऐसे शब्दों का संग्रह ही "ग्लॉसरी" या "परिभाषा कोश" है।
ज्ञान की किसी विशेष विधा (कार्य क्षेत्र) में प्रयोग किये जाने वाले शब्दों की उनकी परिभाषा सहित सूची पारिभाषिक शब्दावली (glossary) या पारिभाषिक शब्दकोश कहलाती है। उदाहरण के लिये गणित के अध्ययन में आने वाले शब्दों एवं उनकी परिभाषा को गणित की पारिभाषिक शब्दावली कहते हैं। पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग जटिल विचारों की अभिव्यक्ति को सुचारु बनाता है।
महावीराचार्य ने गणितसारसंग्रहः के 'संज्ञाधिकारः' नामक प्रथम अध्याय में कहा है-
न शक्यतेऽर्थोबोद्धुं यत्सर्वस्मिन् संज्ञया विना।
आदावतोऽस्य शास्त्रस्य परिभाषाभिध्यास्यते।।
( विना संज्ञा (नाम या शब्दावली) के किसी भी विषय का अर्थ समझाना सम्भव नही है। (अतः) इस शास्त्र के आरम्भ में ही परिभाषा दी जा रही है।)
इसके बाद उन्होने लम्बाई, क्षेत्रफल, आयतन, समय, सोना, चाँदी एवं अन्य धातुओं के मापन की इकाइयों के नाम और उनकी परिभाषा (परिमाण) दिया है। इसके बाद गणितीय संक्रियाओं के नाम और परिभाषा दी है तथा अन्य गणितीय परिभाषाएँ दी है।
द्विभाषिक शब्दावली में एक भाषा के शब्दों का दूसरी भाषा में समानार्थक शब्द दिया जाता है व उस शब्द की परिभाषा भी की जाती है।
अर्थ की दृष्टि से किसी भाषा की शब्दावली दो प्रकार की होती है- सामान्य शब्दावली और पारिभाषिक शब्दावली। ऐसे शब्द जो किसी विशेष ज्ञान के क्षेत्र में एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, वह पारिभाषिक शब्द होते हैं और जो शब्द एक निश्चित अर्थ में प्रयुक्त नहीं होते वह सामान्य शब्द होते हैं।
प्रसिद्ध विद्वान आचार्य रघुवीर बड़े ही सरल शब्दों में पारिभाषिक और साधारण शब्दों का अन्तर स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
पारिभाषिक शब्द का अर्थ है जिसकी सीमाएं बांध दी गई हों। .... और जिनकी सीमा नहीं बांधी जाती, वे साधारण शब्द होते हैं।
पारिभाषिक शब्दों को स्पष्ट करने के लिए अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से परिभाषाएं निश्चित करने का प्रयत्न किया है। डॉ॰ रघुवीर सिंह के अनुसार -
पारिभाषिक शब्द वह होता है जिसका प्रयाग किसी विशेष अर्थ में संकेत रूप से होता है।
डॉ॰ भोलानाथ तिवारी 'अनुवाद' के सम्पादकीय में इसे और स्पष्ट करते हुए कहते हैं-
पारिभाषिक शब्द ऐसे शब्दों को कहते हैं जो सामान्य व्यवहार की भाषा के शब्द न होकर भौतिकी, रसायन, प्राणिविज्ञान, दर्शन, गणित, इंजीनियरी, विधि, वाणिज्य, अर्थशास्त्र, मनोविज्ञान, भूगोल आदि ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के विशिष्ट शब्द होते हैं और जिनकी अर्थ सीमा सुनिश्चित और परिभाषित होती है। क्षेत्र विशेष में इन शब्दों का विशिष्ट अर्थ होता है।