Hindi, asked by gopi66, 11 months ago

pariksha ka bhay in hindi in easy

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Answered by kumaresh2912
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पऱईच्छाः- यानि कि दूसरों की ईच्छा। परीक्षा में हमेशा दूसरे व्यक्ति की ईच्छा का ही महत्व होता है। बच्चे साल भर मेहनत करते हैं, उनके लिए पेपर कोई और बनाता है और मेहनत का आंकलन भी ऐसा व्यक्ति करता है जो उन्हें नहीं जानता। यही तो है असली परीक्षा। परीक्षा का भय तो ऐसा है कि जैसे-जैसे परीक्षा करीब आती है बड़े-बड़े व्यक्ति भी इससे भागते हैं। परीक्षार्थी के मन में सदैव यही सताल होता है कि कैसे कोई एक नियत समय में पूरे साल भर की मेहनत को सिर्फ तीन घन्टे में लिख सकता है और जाॅचने वाला तो उससे भी कम समय में उसकी परीक्षा का फल दे देता है। परीक्षा के दिनों में विधार्थियों का दबाव में होना स्वभाविक है। परीक्षार्थी हमेशा इसी डर से तनाव में रहते हैं कि क्या वे परीक्षा में प्रश्नों का सही-सही उत्तर दे पाएंगे। इस समय जरूरी होता है कि बच्चे अपना आत्मविश्वास बनाए रखे और एकदम शांत और संतुलित रहकर परीक्षा की तैयारी करें। परीक्षा अब जो हमारे इतने करीब आ चुकी है और कुछ ही दिन ही शेष रह गए हैं तो प्रत्येक छात्र के मन में यही आशंका रहती है कि पूरे साल मेहनत की और अब हताश हो रहे हैं कि पता नहीं परीक्षा में क्या होगा? छात्रों के भीतर तनाव, घबराहटें, आशंकाएं घर कर जाती हैं। लेकिन हमें इससे भागना नहीं है ऐसी परिस्थितियों का मुकाबला करना है। जब एक मोटरचालक के पास कम वक्त बचा हो और दूरी अधिक रहती है तब मोटरचालक अपने वाहन की गति तेज कर लेता है लेकिन सावधानी से अन्यथा वह दुर्घटना के कारण मोटर चलाने के योग्य भी नहीं रहता । ऐसा ही परीक्षा के साथ होता है जब समय कम हो और कोर्स अधिक हो । तब हमें सोचना चाहिए कि ऐसे में हम क्या करें और क्या न करें? लेकिन एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि जितनी आपकी क्षमता है उसी के अनुकूल कार्य करें। मेरी समझ में परीक्षा का भय एक प्रकार से सकारात्मक भी है यह हमेशा बुरा नहीं होता। यदि परीक्षा का भय हमें पढ़ाई करने के लिए ले जाए तो वह डर बुरा नहीं होता। यह भय ही तो है जो हमें कुछ करने के लिउ प्रेरित करता है। लेकिन डर नकारात्मक नहीं होना चाहिए, नकारात्मक डर बुरा होता है ऐसा डर हमें परीक्षा से दूर भागने को कहता है। लेकिन हमें ऐसा डर मन में नहीं लाना है हमें अपने ऊपर विश्वास होना चाहिए कि हम कठिन से कठिन कार्य भी कर सकते हैं। डर हमारे विश्वास को कम करता है। हमारे देश के विद्वान दयानंद सरस्वती का कथन है कि ‘‘जहां डर होता है वहां विश्वास कभी नहीं पनपता।’’ मुझे आज भी याद है कि स्कूल के दिनों की बात करूँ तो अगर परीक्षा को हटा दिया जाए तो सिर्फ 25फीसद ही पढ़ाई होती थी। बाकी सब परीक्षा के दौरान ही होती थी। परीक्षा हमें पढने के लिए फोर्स करती है। पढ़ने से हमें ज्ञान मिलता है और यही ज्ञान और जानकारी हमें आत्मविश्वास देता है। जो हमें परीक्षा में मदद करता है। अगर परीक्षा ना होती तो मै क्या कोई भी नहीं पढ़ता? परीक्षा हमें सिखाती है कि दबाव में कैसे काम किया जाता है और कैसे परेशानी का सामना किया जाता है? यह हमें आंतरिक मजबूत और सक्षम कर देता है कि कैसे प्रतिकूल परिस्थिति में कार्य कर सकते है। परीक्षा हमें समय का महत्व बताती है कि जहां हम पूरे साल टाइम बर्बाद करते रहते हैं वहीं परीक्षा के समय हम टाइम मैनेज करना सीख जाते हैं। परीक्षा योग्यता की परख का उत्तम तरीका है। परीक्षा बताती है कि जो व्यक्ति मेहनत करता है व सक्षम है वही इसे पास कर सकता है। जिसने इसके लिए मेहनत नहीं की वह अयोग्य व्यक्ति परीक्षा को उत्तीर्ण नहीं कर सकता। कहते हैं कि शिक्षा सब डिग्रीयों का खेल है, इसमें सिर्फ किताबी बातें होती हैं। कोई अनुभव नहीं होता है। मैं मानता हूॅ कि अनुभव जीवन में बहुत जरूरी है इसे नकारा नहीं जा सकता। 
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