Parimal ke ve din yaad ate hai se kya ashay hai
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'परिमल' एक साहित्यिक संस्था थी जिसका गठन लेखक, फ़ादर बुल्के और उनके साथियों ने मिलकर किया था। लेखक को 'परिमल' के दिन इसलिए याद आते थे, क्योंकि उसमें सभी एक पारिवारिक रिश्ते कि तरह बँधे थे और उसमें जेष्ठ फ़ादर बुल्के ही थे, जो उस संस्था के सभी सदस्यों के साथ निर्लिप्त भाव से सम्मिलित होकर सबका पथ प्रदर्शन करते थे।
फ़ादर बुल्के 'परिमल' की गोष्ठियों में गंभीर बहस करते थे तथा लेखक और उसके साथियों की रचनाओं पर अपनी स्पष्ट व बेबाक राय व्यक्त करते थे । वे उन लोगों को सुझाव देते, उनके पारिवारिक उत्सवों और संस्कार में बड़े भाई या पुरोहित की भांति सम्मिलित होकर उन्हें ढेरों आशीर्वाद से भर देते थे। लेखक को फादर बुल्के का सानिध्य किसी देवदार वृक्ष की छत्रछाया की तरह प्रतीत होता था |
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