Hindi, asked by DasanPilla377, 1 year ago

Parishram ka fal meetha hota hai ispar aapka kya anubhav hai ?

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Answered by kirti9563
7

Ek Gaon Mein mansik naam ka ek Kisan rehta tha uske paas kai khet the vha Din Raat Ke kheto mai Laga rehta tha Uske Char bete the aur Sabhi aalsi the Mansingh jaby Khet Mein Haath batane ke liye Kehta tha waisa Bhi Koi Na Koi Bahana Bana Kar Chale Jate the Ek Din Gaon Ke Mandir Mein Ek Mahatma Ji Aaye unke Darshan ke liye gaon ke sabhi log Jaate the aur Unki Prasiddhi sunkar Mansingh bhi unke Paas Apne beto ki samasya Lekar Gaya Mahatma se apne bete Ke Uske baare mein Bataye Mahatma Ne Mansingh se kaha ki tum Chinta mat karo Tumhari bete Bhi Ek Din Sahi Marg par Chale gaenge Mahatma maan Singh ko ek upay Bataya Uske Agle din hi Mansingh ne apne bete se kaha ki hamhare people wale Khet Mein Khazana Gada Hua Itna sunte Hai Maan Singh Ke Charo Bete people wale Khet khodne Lage lekin wahan par Kuch Bhi Na Mila aur gusse se apne Pitaji se kahe ki Apne Humse bekar nahi mehant karwa dale us Waqt Mansingh kuch nahi ka lekin kuch dino baad vaah apne beto ko Khet par le gaya us varsh Barish bhi achi hui thi pura Khet Lahla Utha tha Mansingh Ne Kaha beta yahi to Khazana yadi Tum Har Saal Yun Hi mehnat Karoge To tumhe aisa hai Khazana Milega uske baad Se Uske bete Din Raat mehnat karne lage aur apne Pita ki Kaam hath butane Lage .

is Kahani se Hame Shiksha milti hai ki mehnat Ka Phal hardam Meetha Hota Hai isliye Hame har dam Parishram Karni chahiye .

plz mark as the brainlist


kirti9563: acha
kirti9563: I am 9th
kirti9563: aure
kirti9563: aur
Answered by student6389
7

एक गाँव में बहुत ही गरीब लड़का अपने माँ-बाप के साथ रहता था। माँ-बाप के बूढ़े होने के कारण घर का सारा बोझ उसी लड़के पर था, उसे अपने तथा परिवार के खाने के लिए भी बहुत संघर्ष करना पड़ता था। दो वक्त की रोटी भी उसे सही से नसीब नहीं हो पा रही थी। वो लड़का बहुत ही मेहनती था, बिना किसी के सहायता लिए वह अपने स्कूल की फीस जमा किया करता था। वह भले ही एक समय खाना न खाता पर अपने किताबें भी वह स्वयं ही खरीदता था।

स्कूल में उसके सारे साथी उससे बहुत ही ज्यादा जलते थे। एक दिन उनके मित्रों ने उस लड़के पर एक आरोप लगाना चाहा और उसे झूठे आरोप में फँसाने का उन्होंने फैसला किया। एक दिन स्कूल के प्रधानाचार्य अपने कक्ष में बैठे हुए थे तभी वे सब बच्चे उस लड़के की शिकायत लेकर वहाँ पहुँचे और प्रधानाचार्य जी से बोले- यह लड़का रोज कहीं से पैसे चुराता है और चुराए पैसों से अपने स्कूल का फीस जमा करता है। कृपया आप इसे सजा दें !

प्रधानाचार्य ने उस लड़के से पुछा- क्या जो ये सब बच्चे बोल रहे हैं वो सच है बेटे ?

लड़का बोला- प्रधानाचार्य महोदय, मैं बहुत निर्धन परिवार से हूँ, एक गरीब हूँ लेकिन मैंने आजतक कभी चोरी नहीं की.. मैं चोर नहीं हूँ !

प्रधानाचार्य ने उस लड़के की बात सुनी और उसे जाने के लिए कहा-

लेकिन सारे बच्चों ने, प्रधानाचार्य से निवेदन किया कि इस लड़के के पास इतने पैसे कहाँ से आते हैं इसका पता लगाने के लिए कृपया जाँच की जाये-

प्रधानाचार्य ने जब जाँच किया तो उन्हें पता चला कि वह स्कूल के खाली समय में एक माली के यहाँ सिंचाई का काम करता है और उसी से वह कुछ पैसे कमा लेता है जो उसके फीस भरने के काम आ जाता है।

अगले ही दिन प्राचार्य ने उस लड़के को और अन्य सभी बच्चों को अपने कक्ष में बुलाया और उस लड़के की तरफ देखकर उन्होंने उससे प्यार से पुछा – “बेटा! तुम इतने निर्धन हो, अपने स्कूल की फीस माफ क्यों नहीं करा लेते ?”

उस निर्धन बालक ने स्वाभिमान से उत्तर दिया- “श्रीमान ! जब मैं अपनी मेहनत से स्वयं को सहायता पहुंचा सकता हूँ, तो मैं अपनी गिनती असमर्थों में क्यों कराऊँ ? कर्म से बढ़कर और कोई पूजा नहीं होती, ये मैंने आपसे ही सिखा है !

छात्र के बात से प्रधानाचार्य महोदय का सिर गर्व से ऊँचा हो गया, और बाकि बच्चे जो उस लड़के को गलत साबित करने में लगे थे उनको भी बहुत पछतावा हुआ और उन्होंने उससे मांगी।

मेहनत करके अपने दम पर कमाने में विश्वास रखने वाला वह निर्धन बालक था – सदानंद चट्टोपाध्याय, बड़ा होने पर ठीक बीस वर्षों बाद इन्हें बंगाल के शिक्षा संगठन के डायरेक्टर का पद सौंपा गया था। उन्होंने एक बहुत अच्छी बात हम सबको सिखाई कि “मेहनती और सच्चे ईमानदार व्यक्ति हमेशा ही सफलता के ऊँचे शिखर पर चढ़ जाते हैं, और एक दिन अपने कठिन परिश्रम के बदौलत संसार भर में अपना नाम की छाप छोड़ जाते हैं।”

मित्रों, सफलता असफलता का अपना-अपना पड़ाव होता है, हम हमेशा इसी बात पर अपना ध्यान केंद्रित करें कि क्या हम पूरे मन से परिश्रम कर रहे हैं, जब तक हम कठिन परिश्रम नहीं करेंगे, धूप में नहीं तपेंगे, सर्दी में नहीं ठिठुरेंगे तब तक कोई भी मुकाम हमसे बहुत दूर होगा और यदि हमें अपने लक्ष्य के करीब पहुंचना है तो संघर्ष और मेहनत करने से कभी मत चूकिए, आप भी मेहनती बनिए, ईमानदार बनिए और सफलता के ऊंचे शिखर पर चढ़ जाइए।

WE SHOULD WORK HARD

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