parishram ke mahathwu par tittani leekhem
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परिश्रम अथवा कार्य ही मनुष्य की वास्तविक पूजा-अर्चना है । इस पूजा के बिना मनुष्य का सुखी-समृद्ध होना अत्यंत कठिन है । वह व्यक्ति जो परिश्रम से दूर रहता है अर्थात् कर्महीन, आलसी व्यक्ति सदैव दु:खी व दूसरों पर निर्भर रहने वाला होता है। परिश्रमी व्यक्ति अपने कर्म के द्वारा अपनी इच्छाओं की पूर्ति करते हैं ।
santhoshv553083:
thank you
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