parivar balak ki pratham pathshala hai essay in hindi 250 words
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बालक की प्रथम पाठशाला है ‘‘परिवार’’बालक की प्रथम पाठशाला है ‘‘परिवार’’ कहा गया है कि बालक अपना प्रथम पाठ माँ के चुम्बन और पिता के प्यार से ही सीखता है। वस्तुतः परिवार ही बालक की प्रथम पाठशाला है। जहाँ अपने परिजनों की छाया तले बैठकर अपनी सुसुप्त क्षमता व प्रतिभा को उजागर करता है अतः माता अनुशासन, श्रमनिष्ठा तथा सम्मानभावना और रों में यह परम्परा विद्यमान है। बालक परिवार में को उजागर करने के लिए पर्याप्त अवसर व मार्गदर्शन प्रदान करे। बालक को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उसे श्रम कार्य हेतु प्रवृत्त करना जरुरी हैं। पारिवारिक जीवन में रहकर उसे व्यावसायिक बोध भी देना आवश्यक हैं। यदि माता पिता का उत्तम आचरण है, श्रेष्ठ जीवन शैली हैं, बच्चों के प्रति अगाध स्नेह और सम्मान भावना हैं तो बालक निश्चित रुप से प्रगतिशील बनेगा। जिस परिवार में अनैतिक आचरण, कुण्ठित व्यवहार, झगड़ालू दृश्य, बेईमानी, क्रूरता और अनैतिकता का वातावरण होगा उस परिवार के बच्चे बिगडे़ल होगें और आगे जाकर उनकी गणना असामाजिक तत्वों में होने लगेगी अतः माता पिता को अपने व्यवहार, आचरण तथा दिनचर्या में अपना आदर्श स्वरुप प्रस्तुत करना आवश्यक है जिसका सीधा प्रभाव बालकों के कोमल मन पर पड़ता है और वे प्रभावित होते है। बालक को कठिनाइयों का मुकाबला करना भी सिखाएं, उसे निडर बनाने का प्रयत्न करे। बेईमानी से दूर रखते हुए सफल जीवन जीने की शिक्षा दे ताकि आगे जाकर वह उत्तम मार्ग का अनुसरण कर सकेगा। अधिकाशतः देखा गया हैं कि जो सन्तान आगे जाकर चोरी, डकैती, गुण्डागर्दी और असामाजिक कार्यो में लिप्त होती हैं उनका पारिवारिक परिवेश अत्यधिक दूषिता होता है। ऐसे वातावरण में रहकर ही बालक दूषित प्रवृत्तियों को अपनाते हुए आगे जाकर असामाजिक बन जाता है। परिवार में रहकर बालक अपने माता पिता के श्री चरणों में बैठकर उत्तम कोटि के संस्कार अर्जित करता है। बालक को माता पिता की सेवा, ईश वन्दना, घर की साफ सफाई, रोगी सेवा, गरीबों के प्रति संवेदनशीलता, ईमानदारी, पारिवारिक कार्यो में भागीदारी, परिजनों का आज्ञापालन, बड़ों के प्रति सम्मान भाव तथा राष्ट्रीय महत्व के कार्यो में सलग्न होनें की सीख मिलती रहे तो कल का यह नागरिक श्रेष्ठ समाज सुधारक के रुप में प्रस्तुत होगा। परिवार में रहते हुए बालक को जनसंख्या नियन्त्रण, जल संग्रहण, पौधारोपण, भ्रूण हत्या, अशिक्षा, महिला उत्पीड़न और सरकारी योजनाओं की जानकारी मिल सके तो प्रसंगानुसार प्रयास करना चाहिए। यदि परिवार में ही बालक को उचित दिशा बोध मिलता रहेगा तो आगे जाकर विद्यालयी शिक्षा में भी वह अग्रगण्य रहेगा। उसे विद्यालय की गतिविधियों द्वारा अर्जित संस्कारों को प्रगाढ़ता मिलेगी और वह एक श्रेष्ठ विद्यार्थी के रुप में शिक्षा ग्रहण करने में सफलता अर्जित करते हुए कीर्तिमान स्थापित कर पायेगा। आज का युग वैज्ञानिक युग है सूचना और तकनीकी के क्षेत्र में काफी प्रगति हुई है। आज नन्हे बालक भी स्मार्ट फोन पर अपनी अगुंलिया थिरकाते नहीं थमते। कम्प्यूटर का प्रारम्भिक ज्ञान भी अधिकांशतः घर में मिल जाता है। जो परिवार साधन सम्पन्न है। उन्हे बच्चों को नवीनतम तकनीकी ज्ञान प्राप्ति के लिए प्रेरित करना चाहिए। वर्तमान शासन व्यवस्था में काफी फेरबदल हो रहा है। केशलेश लेदेनन पर बल दिया जा रहा है। राष्ट्र की लोक कल्याणकारी योजनाओ से भी परिचय मिल सके ऐसा प्रयत्न किया जाए तो बच्चों के भावी जीवन मे उपयोगी सिद्ध होगा। जो बालक सामान्य से हटकर विशेष ऊर्जावान होते है कभी कभी उनकी अपराध प्रवृत्ति से अभिभावक पीड़ित हो जाते है। इसके लिए उनकी असामान्य वृति का मार्गान्तरीकरण करना चाहिए। जिस प्रकार बाढ़ का अपार जल प्रवाह खेतों को नष्ट कर सकता है। यदि उस बाढ़ की राह को मोड़ कर नहरों के रुप में परिवर्तित कर दिया जाए तो वही बाढ़ का पानी उत्पादक बन सकता है। यही दशा अपराधी बालकों की हैं। उनकी अतिरिक्त ऊर्जा का सदुपयोग करने की आवश्यकता हैं। ऐसे बालक अधिक प्रतिभाशाली होते है। जिस परिवार में पूजा अर्चना संत्संग और आध्यात्म से परिपूर्ण वातावरण होगा उस परिवार के बालक विशेष रुप से सेवाभावी विनम्र, आज्ञाकारी और परोपकारी बनते हैं। क्योंकि उन्हे पारिवारिक परिवेश में ये बोध सुगम होता है। पौधशाला का संचालन, स्वच्छता के प्रति जागरुकता और अनुशासित जीवन यापन करने का अवसर बालकों को मिलना आवश्यक है अतः परिवार का वातावरण व पर्यावरण अनुकरणीय होना चाहिए। बालकों को खेलकूद में प्रवृत्त करने के लिए अवसर प्रदान करना चाहिए इससे बालक अनुशासित बनने के साथ ही उसमें आत्मविश्वास, निर्णय क्षमता, कार्य के प्रति समर्पण के भाव मजबूत होते है। बालकों की विशेष उपलब्ध्यिं पर उन्हे प्रशंसित भी करना चाहिए। पर्व और त्यौंहारो ंके आयोजन में बालकों को भागीदार बनाया जाए ताकि बालकों में सुसस्कारों का संचार हो और वे हमारी सांस्कृतिक विरासत के प्रति आस्थावान बन सके। ‘‘ आपके बच्चों के पास अच्छी बुद्धि है। बस इस बात से संतोष मत कर लेना उसे बुद्धि के साथ अच्छे संस्कारों से सिंचित कीजिए। बच्चों को सीखाओं नहीं करके दिखाओ। इससे वे जल्दी सीख जाते है। बच्चे वो नहीं करते जो आप करते है। चाह कर के भी आप अपने पैर बच्चों से नहीं छुआ सकते इसके लिए पहले आप स्वयं को अपने माता पिता के पैर प्रतिदिन छूने होंगे। जो बात जीभ से कही जाती है उसका प्रभाव कम पड़ता है जो सीख जीवन में करके दी जाती है उसका प्रभाव ज्यादा होता है। अच्छी बाते केवल चर्चा का विषय नहीं वो आचरण का विषय जरुर बने। आपमन में उचित विचार करना, सबसे सद्व्यवहार, परिश्रम में उत्साह, स्वच्छता, सादगी, व्यसनों से मुक्ति, शिष्टाचार आदि गुणों का बीजारोपण माता पिता के उचित संरक्षण में सम्भव हैं पारिवारिक परिवेश में ही बालक के चरित्र का निर्माण संभव है। शरीर और मन बलवान बनते है। बुद्धि बढ़ती है ंऔर बालक आत्म निर्भर बनता है’’ स्वामी विवेकानन्द
शीर्षक: परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है
प्रस्तावना: परिवार को बच्चों की प्रथम शाला कहा गया है। जब बालक छोटा होता है, तो माँ, दादा- दादी, नाना-नानी की कहानियों से ही वह पहला नैतिकता का पाठ सीखता है। आपस में एक-दूसरे से किए जाने वाले आचरण का प्रभाव ही बच्चों के व्यक्तित्व पर पड़ता है। और वह खुद भी वैसा ही आचरण करता है।
विषय विस्तार: बच्चों का व्यक्तित्व गीली मिटटी की तरह होता है, अगर उसकी परवरिश अच्छे सुशिक्षित परिवार में होती है, तो वह निश्चित ही बड़े हो कर एक ज़िम्मेदार और अच्छा नागरिक बनता है, वहीं अगर उसकी परवरिश ही गलत होगी तो वह बड़े होकर गलत काम ही करेगा। एक अंग्रेज लेखक ने कहा है- बालक पारिवारिक अनुकरण से ही अपने स्वभाव को निर्धारित और विकसित करता है। जिस परिवार में वरिष्ठ व्यक्ति अपने बड़ों का सम्मान नहीं करते हैं, उस परिवार के बच्चे भी बड़ों का आदर नहीं करेंगे। बच्चों को किस तरह आचरण करना है? कैसे बातें करनी है? इन सब बातों को हम उन्हें सीधे तौर पर नहीं सिखा सकते हैं, इन सब बातों की सीख परिवार से ही मिलती है। बच्चों को हम चाहे जिस ढाँचे में ढालना चाहें, ढाल सकते हैं। इसलिए यह परिवार की ही ज़िम्मेदारी होती है कि वे खुद अच्छा आचरण करें, बड़ों का सम्मान करें, ऐसा करके ही वे बच्चों को सही- गलत, अच्छा- बुरा यह सब समझा सकते हैं।
उपसंहार: परिवार के सदस्यों के अनुभव से उन्हें भी जीवन की सीख मिलती है। कुछ अच्छा करके, कुछ गलतियाँ करके, एक बच्चा परिवार में ही सब कुछ सीखता है। इसलिए परिवार ही बालक की प्रथम पाठशाला है।