Hindi, asked by bhisham1960, 4 months ago

parivar ke mahatv par nibandh​

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Answered by anserifatema27
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Explanation:

परिवार वह होता है जो एक ही छत के नीचे बैठकर एक ही चूल्हे पर खाना बनाया जाता है इसे परिवार कहते है। व्यक्ति का परिवार ही उसका संसार होता है। कुछ बदनसीब लोग भी होते है जिनका कोई परिवार नहीं है। हमारा परिवार बहुत बड़ा परिवार है। मेरा परिवार संयुक्त परिवार मे आता है।

मेरे परिवार से मुझे हर समय सहयोग तथा प्यार मिलता रहता है। हमारा पहला समाज परिवार होता है। मेरा परिवार बहुत बड़ा परिवार है। मेरे परिवार मे हम 20 लोग रहते है हम एक साथ बैठकर प्यार से खाना खाते है। हमारा परिवार बहुत सुखी और स्वस्थ है हम सभी शांति पूर्ण तरीके से रहते है। तथा बड़ो का आदर तथा उनके निर्देशों का पालन करते है। मेरे परिवार बहुत अच्छा परिवार है। इसमे रहकर मे बहुत खुशी महसूस करता हूँ।

हम अपने परिवार मे रहकर नागरिकता का पहला पाठ पढ़ते है। हमारे माता पिता बचपन से हमारा पालन पोषण करते है। हमे पढ़ा लिखा के हमे एक वयस्क तथा शिक्षित वयस्क बनाते है। वो हमारा हर काम पूरा करते है। जिस व्यक्ति का परिवार नहीं होता है।तो उसे अनाथ माना जाता है।

किसी भी देश के निर्माण के लिए परिवार का होना जरूरी है। वैसे देखे तो संसार मे परिवार बहुत छोटी इकाई है। परंतु परिवार मिलकर समाज तथा समाज मिलकर राष्ट्र तथा राष्ट्र मिलकर संसार का निर्माण कर सकते है। इसलिए कहा जाता है। कि ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ कहने का भाव ये है। कि सम्पूर्ण संसार ही हमारा परिवार है। सरकार ने परिवार के महत्व को समझते हुए। प्रतिवर्ष 15 मई को 'अंतर्राष्ट्रीय परिवार दिवस' मनाया जाता है। इससे हम अंदाजा लगा सकते है कि परिवार का कितना महत्व होता है। व्यक्ति का संसार अपना परिवार होता है।

Answered by HardikGupta2007
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Answer:

Explanation:

हमारी स्वयं अपनी स्वतंत्र पहचान होते हुए भी हम समाज के एक स्वतंत्र जीव मात्र नहीं हैं. हमारा जीवन भावनाओं, संस्कारों, परम्पराओं, जीवन मूल्यों, सहजीवन की जरूरतों के कारण अनेक बन्धनों में बंधा होता हैं.

सम्बन्ध ऐसे ही कुछ बंधन हैं जिनसे हम किसी कारण बंधे होते हैं. सम्बन्ध, जिम्मेदारी, प्रतिबद्धता व लगाव का प्रतिरूप हैं. कुछ सम्बन्ध नैसर्गिक होते हैं. तो कुछ सम्बन्ध जीवन की गति के साथ बनते जाते हैं.

 

सम्बन्धों में जहाँ कुछ स्थायी भाव  और प्रकृति के सम्बन्ध  हैं तो कुछ  सम्बन्ध समय और परिस्थतियों के साथ बदलते भी रहते हैं. हमें सम्बन्धों की गहनता व गंभीरता को समझते हुए अपनी पहचान की तटस्थता रखना भी जरुरी हैं.

हम सभी जानते  है कि हमारे स्वयं की पहचान आदते, स्वभाव, पसंद और रुचियाँ आदि हमारे परिवार अर्थात माता-पिता भाई बहन दादा दादी नाना नानी आदि ससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ी हुई हैं. ये सम्बन्ध जहाँ हमें कुछ जन्मजात स्वभावगत आदते देते है तो दूसरी ओर जन्म से लेकर आज तक इन सभी रिश्तों से प्रभावित होकर कुछ न कुछ सीखते हैं.

किशोरावस्था तक आते आते हम अपने आपकों बड़ा व परिवार का जिम्मेदार सदस्य मानने लगते हैं. हमारे माता-पिता की भी हमसे अपेक्षाएं बढ़ने लगती हैं. पढाई था भविष्य निर्माण के दवाब में कभी मानसिक व भावनात्मक उथल पुथल के कारण तो कभी लापरवाही से हम माता पिता की इन अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाते हैं.

कई बार देखने में आता हैं कि एक दूसरे की इच्छाओं, आवश्यकताओं तथा अपेक्षाओं के प्रति हमारी हमारी लापरवाही के कारण परिवार में तनाव व अशांति का वातावरण बनता हैं. इसके कुछ तुरंत व कुछ दूरगामी प्रभाव पड़ते हैं. दूसरी ओर, परिवार में एक दूसरे के प्रति सकारात्मक व सहयोगात्मक दृष्टिकोण अपनाने के कई लाभ होते हैं.

सर्वप्रथम सभी सदस्य अपनी ऊर्जा तथा समय का सदुपयोग रचनात्मक  कार्यों में कर सकते हैं. दूसरा स्वस्थ व शांत वातावरण में सम्प्रेष्ण अपेक्षित व प्रभावशाली बन जाता हैं. यह भी देखने में आया है कि कई प्रकार की मानसिक परेशानियां जैसे तनाव, कुंठा, द्वंद्व, डर, चिंता, निराशा आदि का मुख्य कारण पारिवारिक वातावरण होता हैं.

अक्सर किशोर किशोरी अपनी बात बेहिचक नहीं कह पाते तथा अनजाने डर व भंतियाँ पालते रहते हैं. ऐसी स्थतियाँ तब पैदा होती हैं. जब माता पिता हमारे बीच संवेदनहीनता की स्थिति आ जाती हैं. एक तरफ माता पिता हमारे द्वारा किये गये निर्णयों को कभी कभी नकारते हैं तो दूसरी ओर हम अपने माता पिता से कुछ कार्यों को छुपाना चाहते हैं.

 

यहाँ कोई भी एक पक्ष दोषी नहीं हैं. दोषी तो स्थतिया या घटनाएं हैं. सामाजिक और वैचारिक परिवर्तन के कारण दो पीढ़ियों के मध्य अंतर् होना स्वाभाविक हैं. हमारे खान पान रहन सहन व सोचने समझने  की आदतों पर सिनेमा, मित्र, फैशन आदि का भी व्यापक असर पड़ता हैं.

कई बार पीढ़ी अंतराल व सोच के अंतर् के कारण माता पिता हमारी नविन जीवन शैली को नापसंद करते हैं. तथा परिवार में तालमेल नही रह जाता हैं. ऐसी स्थिति से बचने के लिए हमें माता पिता व अन्य बड़ो का पक्ष भी समझना चाहिए. तथा प्रत्यक्ष विरोध करने की जगह शांति से अपनी बात कहनी चाहिए.

माता पिता तथा अन्य सम्बन्धियों के साथ हम जितना अधिक  वार्तालाप करते हैं उतना ही उनके अनुभवों तथा विचारों का हम लाभ उठा सकते हैं.

स्थिर भाव और परिवर्तन गति और विराम दो पुर्णतः विपरीत पक्ष हैं जब किसी गति को विराम अथवा रुकावट मिलती हैं तो स्वभावतः ही एक धक्का लगता हैं. प्रचलन एक निरन्तरता का प्रतीक हैं. प्रचलन में बदलाव अंतर्विरोध को जन्म देता हैं. इसी बात को सामने रख कर हम पारिवारिक सम्बन्धों को वैचारिक मतभेद से उठे विरोध को समझ सकते हैं.

दो पीढ़ियों में वैचारिक भिन्नता को विरोध के रूप में न लेकर एक तार्किक संवाद की प्रक्रिया द्वारा हल किया जाना चाहिए. हमारे माता पिता हमारी दैनिक जीवन की आवश्यकताओं, हमारे स्वास्थ्य व सुखद भविष्य के प्रति चिंतासुर तथा संमर्पित रहते हैं.

उनकी इच्छाओं अपेक्षाओं व आवश्यकताओं पर उतनी गंभीरता से हम विचार नहीं करते. हमें माता पिता का गुस्सा या रोक टोक तो दिखाई देते हैं. किन्तु उनके पीछे छिपा उनका प्यार उनका प्रेम व स्नेह हम नहीं देख पाते. यदि हम कुछ छोटी छोटी क्रियाओं के माध्यम जैसे छोटे बड़े भाइयों का ध्यान रखकर अपने घर व घर के बाहर की अपनी भूमिका के प्रति सजग रहकर घर के कुछ छोटे बड़े काम करके हम अपने माता पिता व अन्य सदस्यों को आराम व ख़ुशी दे सकते हैं तो हमारे परिवार का पूरा परिदृश्य ही बदल जाता हैं.

 

अतः हमें परिवार मे सुख और शांत वातावरण बनाएं रखने के लिए सकारात्मक और सहयोगात्मक योगदान करना चाहिये. परिवार समाज की एक महत्वपूर्ण कड़ी हैं. व्यक्तियों से परिवार बनता हैं. व परिवारों से समाज का निर्माण होता है इसी प्रकार समाज व्यापक रूप में राष्ट्र का निर्माण करता हैं.

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