parivartan jevan ka neyam,(speech)
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परिवर्तन सृष्टि का अटल नियम है। यहां स्थिर कुछ भी नहीं रहता। पल-पल, क्षण-क्षण बदलता रहता है सृष्टि में। इस परिवर्तन से हम कभी दुखी हो जाते हैं तो कभी सुखी। प्रकृति कभी देती है तो कभी छीनती है लेकिन मनुष्य बड़ा चालाक है वह अच्छे परिवर्तन को तो सहर्ष स्वीकार कर लेता है परंतु बुरे परिवर्तन के विरुद्ध खड़ा हो जाता है।
जीवन में परिवर्तन पर निबंध
महापुरुषों का कथन है कि मनुष्य को परिवर्तन को सहजता से स्वीकार कर लेना चाहिए क्योंकि वह हमेशा कल्याणकारी एवं लाभदायक होता है। कहावत है कि ईश्वर जो करता है अच्छा ही करता है यह बात दीगर है कि हम परिवर्तन के लाभ को समझने में चूक कर जाते हैं। कई बार हमें इस बात का एहसास काफी समय बाद होता है कि अमुक परिवर्तन हमारे लिए वरदान साबित हुआ है।
महात्मा बुद्ध कहते हैं कि इस जगत में धोखा इसलिए है क्योंकि हम इसे स्वीकार नहीं करते जिस भी बुरी अवस्था जा स्थिति को हम सभी कार्य कर लेते हैं वह स्थिति हमें दुख देना बंद कर देती है हम रोजमर्रा की जिंदगी में देखते हैं कि किसी की झोली में दुख भरा है तो किसी की झोली में सुख। मगर यह भी सत्य है कि हर सुख कभी ना कभी दुख से गुजरता है और दुख कभी ना कभी सुख की खबर लाता है। स्थिर कुछ भी नहीं रहता समय के साथ परिवर्तन चलता रहता है इसमें घबराने जैसा कुछ भी नहीं। वस्तुत: जीवन का दूसरा नाम परिवर्तन है परिवर्तन नहीं तो कुछ नहीं जीवन में।
हम देखते हैं कि जब लंबे समय तक हमारे जीवन में परिवर्तन नहीं होता तो हम ऊब जाते हैं हमें थकान लगती है तन – मन दोनों थकते हुए लगते हैं परिवर्तन हमारी थकान को दूर कर हमें हल्का-फुल्का कर देता है हमारी जड़ता को तोड़ने का काम करता। परिवर्तन से हम तरोताजा होने लगते हैं परिवर्तन से हमें ऊर्जा मिलती है जिसे प्राप्त कर हम नए उत्साह के साथ काम में फिर जुट जाते हैं ।
जब सागर में तूफान आता है तो जोर-जोर से लहरें उठती है परंतु कुछ समय बाद शांत हो जाती है और स्थिति सामान्य हो जाती है। गर्मी के दिनों में जब धरती उबल जाती है तो वहीं धरती रात के समय ठंडी हो जाती है।
कहने का तात्पर्य है कि जब किसी चीज की अति हो जाती है तो वह परिवर्तन चाहती है। या यूं कहे कि वह स्वयं परिवर्तन होने लगती है। फल जब पकने लगता है तो धीरे-धीरे ढाल से उसकी पकड़ ढीली होने लगती है। जहां से लोहा अधिक पिटता है वहां से मुड़ने लगता है परिवर्तन को हम सभी स्वीकार करें अथवा ना करें वह तो घटित होगा ही।
पानी भाप बनता है भाप बादल बनाते हैं, बादल वर्षा के रूप में पानी बनकर धरती पर पुन: लौटता है। सुबह शाम में शाम रात में और रात पुन: सुबह में परिवर्तित हो जाती है। बीज पौधे में पौधा अनाज में और फिर यही अनाज बीज में परिवर्तित हो जाता है। यह सृष्टि का अकाट्य नियम है। परिवर्तन ही है जो प्रकृति को नया रंग, नया रूप प्रदान करता है। पतझड़ में पेड़ से पत्ते झड़ जाते हैं और बसंत ऋतु में नए पत्ते पेड़ में लाकर उसे हरा-भरा बना देते हैं। अतः यह कहना समीचीन होगा के परिवर्तन ही एकमात्र उपाय है जो हमारे जीवन को रंगीन बना देता है परिवर्तन जीवन का अभिन्न अंग है इसीलिए इसका स्वागत करना चाहिए।
परिवर्तन मुख्यत: दो प्रकार के होते हैं एक तो वह परिवर्तन जो प्रकृति द्वारा किए जाते हैं और दूसरे प्रकार के परिवर्तन वह होते हैं जो हम करते हैं। प्राकृतिक परिवर्तन हमारे बस में नहीं होते जैसे बीमारी, दुर्घटना, मृत्यु आदि। लेकिन अनेकों परिवर्तन हम अपनी इच्छा से इसलिए करते हैं ताकि हमें सुख मिल सके कोई अपने पुराने साथी से ऊब जाता है, तो वह नए साथी की तलाश में लग जाता है। कोई अपने व्यवसाय से थक जाता है दो वह नया व्यवसाय आरंभ कर देता है कोई अपने पुराने वाहन से ऊब जाता है तो वह नया वाहन खरीद लेता है कोई अपने पुराने मकान को बेचकर नया मकान खरीद लेता है ताकि अधिक सुविधाएं जुटा सके इंसान जहां भी है वह वहां असंतुष्ट दिखाई देता है और यही असंतुष्टि उसके भीतर परिवर्तन की मांग करती है।
वस्तुत: मानव को हर पल हर समय सुख की चाहत है इसीलिए परिवर्तन का क्रम उसके जीवन में ही चलता रहता है। कई बार तो वह अपने सुख के लिए दूसरों को भी बदलने की कवायद में लग जाता है वह सोचता है कि दूसरा व्यक्ति बदल जाएगा तो उसका रुका हुआ दुख सुख में बदल जाएगा।
प्राय: हर व्यक्ति अपने को बदलने की उपेक्षा दूसरों को बदलने की आकांक्षा रखता है वह यह भूल जाता है कि जब वह अपने आप को नहीं बदल सकता तो दूसरा कैसे उसके कहने से या प्रयास करने से बदल सकता है। यदि यह बात उसके समझ में आ जाए तो इंसान जितनी उर्जा और समय दूसरे को बदलने में लगाता है उसके आधे श्रम में स्वयं को बदल सकता है और सुखी हो सकता है इसलिए ज्ञानीजन कहते है कि बदलना हो तो स्वयं को बदलो ताकि इज्जत , सुख और सुविधा की प्राप्ति हो सके
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hope it's helpful to you.