Parmanu electron ka grahan AVN unka ka tyag kyon karte hain
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Explanation:
प्राचीन भारतीय एवं ग्रीक दार्शनिक द्रव्य के अज्ञात एवं अदृश्य रूपों में सदैव चकित होते रहे। पदार्थ की विभाज्यता के मत के बारे में भारत में बहुत पहले, लगभग 500 ईसा पूर्व विचार व्यक्त किया गया था।
भारतीय दार्शनिक, महर्षि कणाद ने प्रतिपादित किया था कि यदि हम द्रव्य (पदार्थ) को विभाजित करते जाएँ तो हमें छोटे-छोटे कणों से प्राप्त कण को पुन: विभाजित नहीं किया जा सकेगा अर्थात् वह सूक्ष्मतम कण अविभाज्य रहेगा। इस अविभाज्य सूक्ष्मजात कण को उन्होंने परमाणु कहा। एक अन्य भारतीय दार्शनिक पकुध कात्यायन ने इस मत को विस्तृत रूप से समझाया तथा कहा कि ये कण सामान्यत: संयुक्त रूप में पाए जाते हैं, जो हमें द्रव्यों के भिन्न-भिन्न रूपों को प्रदान करते हैं। लगभग इसी समय ग्रीक दार्शनिक, डेमोक्रिटस एवं लियुसीपस ने सुझाव दिया था कि यदि हम द्रव्य को विभाजित करते जाएँ, तो एक ऐसी स्थिति आएगी जब प्राप्त कण को पुनः विभाजित नहीं किया जा सकेगा। उन्होंने इन अविभाज्य कण को परमाणु (अर्थात् अविभाज्य) कहा था। ये सभी सुझाव दार्शनिक विचारों पर आधारित थे। इन विचारों की वैधता सिद्ध करने के लिए 18वीं शताब्दी तक कोई अधिक प्रयोगात्मक कार्य नहीं हुए थे।
18वीं शताब्दी के अंत तक वैज्ञानिकों ने तत्वों एवं यौगिकों के बीच भेद को समझा तथा स्वाभाविक रूप से यह पता करने के इच्छुक हुए कि तत्व कैसे तथा क्यों संयोग करते हैं? जब तत्व परस्पर संयोग करते हैं, तब क्या होता है? वैज्ञानिक, आंतवां एल. लवाइजिए ने रासायनिक संयोजन के दो महत्वपूर्ण नियमों को स्थापित किया जिसने रसायन विज्ञान को महत्वपूर्ण आधार प्रदान किया।