Hindi, asked by chhayaagarwal8, 10 months ago

Paropkar ke ooper ek accha essay 75 words
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Answered by sunidhi14357
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परोपकार

     परोपकार का महत्व – परोपकार अर्थात् दूसरों के काम आना इस सृष्टि के लिए अनिवार्य है | वृक्ष अपने लिए नहीं, औरों के लियेफल धारण करते हैं | नदियाँ भी पाना जल स्वयं नहीं पीतीं | परोपकारी मनुष्य संपति का संचय भी औरों के कल्याण के लिए करते हैं | साडी प्रकुर्ती निस्वार्थ समपर्ण का संदेश देती है | सूरज आता है, रोशनी देकर चला जाता है | चंद्रमा भी हमसे कुछ नहीं लेता, केवल देता ही देता है | कविवर पंत के शब्दों में –

 

हँसमुख प्रसून सिखलातेपलभर है, जो हँस पाओ |अपने उर की सौरभ से  जग का आँगन भर जाओ ||
परोपकार से प्राप्त आलौकिक सुख – परोपकार का सुख लौकिक नहीं, अलौकिक है | जब कोई व्यक्ति निस्वार्थ भाव से किसी छायल की सेवा करता है तो उस क्षण उसे पाने देवत्व के दर्शन होते हैं | वह मनुष्य नहीं, दीनदयालु के पद पर पहुँच जाता है | वह दिव्य सुख प्राप्त करता है | उस सुख की तुलना में धन-दौलत कुछ भी नहीं है |

परोपकार के विविध उदाहरन – भारत में परोपकारी महापुरषों की कमी नहीं है | यहाँ दधीची जैसे ऋषि हुए जिन्होंने अपने जाति के लिए अपने शरीरी की हड्डियाँ दान में दे दीं | यहाँ सुभाष जैसे महँ नेता हुए जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना तन-मन-धन और सरकारी नौकरी छोड़ दी | बुद्ध, महावीर, अशोक, गाँधी, अरविंद जैसे महापुरषों के जीवन परोपकार के कारण ही महान बन सके हैं |

     परोपकार में ही जीवन की सार्थकता – परोपकार दिखने में घाटे का सौदा लगता है | परंतु वास्तव में हर तरह से लाभकारी है | महात्मा गाँधी को परोपकार करने से जो गौरव और समान मिला ; भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ने से जो आदर मिला ; बुद्ध को राजपाट छोड़ने से जो ख्याति मिली, क्या वह एक भोगी राजा बन्ने से मिल सकती थी ? कदापि नहीं | परोपकारी व्यक्ति सदा प्रसन्न, निर्मल और हँसमुख रहता है | उसे पश्चाताप या तृष्णा की आग नहीं झुलसाती | परोपकारी व्यक्ति पूजा के योग्य हो जाता है | उसके जीवन की सुगंध सब और व्याप्त हो जाती है | अतः मनुष्य को चाहिए की वह परोपकार को जीवन में धारण करें | यही हमारा धर्म है |

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Answered by Brainly9b78
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Essay:

मानव जीवन में परोपकार का बहुत महत्व होता है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है।

इसी तरह से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। वह हमें इतना कुछ देती है लेकिन बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती है। किसी भी व्यक्ति की पहचान परोपकार से की जाती है। जो व्यक्ति परोपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है वह अच्छा व्यक्ति होता है। जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा। परोपकार की भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है।


Yashpapa88888: apne vidyalaya mein huye cricket ke aayojan par prativedan likhiye
Yashpapa88888: please write answer
buddy1811: your essay is good
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