Hindi, asked by adityaahuja1710, 7 months ago

paropkar par anuched in 80-100 words

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Answered by ifrat
49

Answer:

जीवन में परोपकार का बहुत महत्व है। समाज में परोपकार से बढकर कोई धर्म नहीं होता । ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रही है। परोपकार प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाता है, नदी अपना पानी नहीं पीती है, सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है। परोपकार एक उत्तम आदर्श का प्रतीक है। पर पीड़ा के समान कुछ भी का अधम एवं निष्कृष्ट नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास ने परोपकार के बारे में लिखा है.

“परहित सरिस धर्म नहिं भाई।

पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।”

दूसरे शब्दों में, परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है। विज्ञान ने इतनी उन्नति कर ली है कि मरने के बाद भी हमारी नेत्र ज्योति और अन्य कई अंग किसी अन्य व्यक्ति के जीवन को बचाने का काम कर सकते है। इनका जीवन रहते

ही दान कर देना महान उपकार है। परोपकार के द्वारा ईश्वर की समीपता प्राप्त होती है। इस प्रकार यह ईश्वर प्राप्ति का एक सोपान भी है।

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Answered by soniatiwari214
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उत्तर:

परोपकार मनुष्य का सबसे महत्वपूर्ण मानवीय गुण है, जो मनुष्य और पशु के बीच भेद उत्पन्न करता है।

व्याख्या

  • परोपकार का अर्थ है स्वार्थ की भावना से रहित होकर दूसरों के भले के लिए कार्य करना। यह मनुष्य की ही प्रवृत्ति है कि वह अपना लाभ न सोच कर दूसरों के भले के लिए दौड़ जाता है। जो मनुष्य केवल अपने ही हित का सोचते हैं और अन्य व्यक्तियों को हानि पहुंचाते हैं सही अर्थ में वे पशुओं के ही समान है। क्योंकि परोपकार ही ऐसी भावना है जो मनुष्य को पशुओं से अलग करती है।
  • कहा भी गया है

वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर।

परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।।

इस प्रकार साधु सही है जो परहित के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर देता है। जिस मनुष्य को दूसरों की पीड़ा का अनुभव होता है, वही मनुष्य परोपकार के पास से संसार में सभी व्यक्तियों के काम आता है।

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