Hindi, asked by biakhluachogthu5145, 1 year ago

Paropkar par long essay in hindi

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Answered by geetagupta11
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मानव जीवन में परोपकार का बहुत महत्व होता है। समाज में परोपकार से बद कोई धर्म नहीं होता है। ईश्वर ने प्रकृति की रचना इस तरह से की है कि आज तक परोपकार उसके मूल में ही काम कर रहा है। प्रोकर प्रकृति के कण-कण में समाया हुआ है। जिस तरह से वृक्ष कभी भी अपना फल नहीं खाती है , नदी अपना पानी नहीं पीती है , सूर्य हमें रोशनी देकर चला जाता है।

इसी तरह से प्रकृति अपना सर्वस्व हमको दे देती है। वह हमें इतना कुछ देती है लेकिन बदले में हमसे कुछ भी नहीं लेती है। किसी भी व्यक्ति की पहचान परोपकार से की जाती है। जो व्यक्ति परोपकार के लिए अपना सब कुछ त्याग देता है वह अच्छा व्यक्ति होता है। जिस समाज में दूसरों की सहायता करने की भावना जितनी अधिक होगी वह समाज उतना ही सुखी और समृद्ध होगा। परोपकार की भावना मनुष्य का एक स्वाभाविक गुण होता है।

परोपकार का अर्थ : परोपकार दो शब्दों से मिलकर बना होता है – पर+उपकार। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों का अच्छा करना। परोपकार का अर्थ होता है दूसरों की सहयता करना। जब मनुष्य खुद की या ‘स्व’ की संकुचित सीमा से निकलकर दूसरों की या ‘ पर’ के लिए अपने सर्वस्व का बलिदान दे देता है उसे ही परोपकार कहा जाता है। परोपकार की भावना ही मनुष्यों को पशुओं से अलग करती है नहीं तो भोजन और नींद तो पशुओं में भी मनुष्य की तरह पाए जाते हैं।

दूसरों का हित्त चाहते हुए तो ऋषि दधिची ने अपनी अस्थियाँ भी दान में दे दी थीं। एक कबूतर के लिए महाराज शिवी ने अपने हाथ तक का बलिदान दे दिया था। गुरु गोबिंद सिंह जी धर्म की रक्षा करने के लिए खुद और ब्छोंके साथ बलिदान हो गये थे। ऐसे अनेक महान पुरुष हैं जिन्होंने लोक-कल्याण के लिए अपने जीवन का बलिदान दे दिया था ।

मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म : मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ धर्म परोपकार होता है। मनुष्य के पास विकसित दिमाग के साथ-साथ संवेदनशील ह्रदय भी होता है। मनुष्य दूसरों के दुःख को देखकर दुखी हो जाता है और उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो जाती है। वह दूसरों के दुखों को दूर करने की कोशिश करता है तब वह परोपकारी कहलाता है।

परोपकार का संबंध सीधा दया , करुणा और संवेदना से होता है। हर परोपकारी व्यक्ति करुणा से पिघलने की वजह से हर दुखी व्यक्ति की मदद करता है। परोपकार के जैसा न ही तो कोई धर्म है और न ही कोई पुण्य। जो व्यक्ति दूसरों को सुख देकर खुद दुखों को सहता है वास्तव में वही मनुष्य होता है। परोपकार को समाज में अधिक महत्व इसलिए दिया जाता है क्योंकि इससे मनुष्य की पहचान होती है।

मरनेवाले मनुष्य के लिए यही समाज उसका कर्मक्षेत्र होता है। इसी समाज में रहकर मनुष्य अपने कर्म से आने वाले अगले जीवन की पृष्ठ भूमि को तैयार करता है। संसार में 84 लाख योनियाँ होती है। मनुष्य अपने कर्म के अनुसार ही इनमे से किसी एक योनी को अपने अगले जन्म के लिए इसी समाज में स्थापित करता है। भारतीय धर्म साधना में जो अमरत्व का सिद्धांत होता है उसे अपने कर्मों से प्रमाणित करता है।

लाखों-करोड़ों लोगों के मरणोपरांत सिर्फ वहीं मनुष्य समाज में अपने नाम को स्थायी बना पाता है जो इस जीवन काल को दूसरों के लिए अर्पित कर चुका होता है। इससे अपना भी भला होता है। जो व्यक्ति दूसरों की सहायता करते हैं वक्त आने पर वे लोग उनका साथ देते हैं। जब आप दूसरों के लिए कोई कार्य करते हैं तो आपका चरित्र महान बन

मनुष्य को जो सुख का अनुभव नंगों को कपड़ा देने में , भूखे को रोटी देने में , किसी व्यक्ति के दुःख को दूर करने में , और बेसहारा को सहारा देने में होता है वह किसी और काम को करने से नहीं होता है। परोपकार से किसी भी प्राणी को आलौकिक आनन्द मिलता है। जो सेवा बिना स्वार्थ के की जाती है वह लोकप्रियता प्रदान करती है। जो व्यक्ति दूसरों के सुख के लिए जीते हैं उनका जीवन प्रसन्नता और सुख से भर जाता है।

परोपकार का वास्तविक स्वरूप : आज के समय में मानव अपने भौतिक सुखों की और अग्रसर होता जा रहा है। इन भौतिक सुखों के आकर्षण ने मनुष्य को बुराई-भलाई की समझ से बहुत दूर कर दिया है। अब मनुष्य अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए काम करता है। आज के समय का मनुष्य कम खर्च करने और अधिक मिलने की इच्छा रखता है।

आज के समय में मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र को व्यवसाय की नजर से देखता है। जिससे खुद का भला हो वो काम किया जाता है उससे चाहे दूसरों को कितना भी नुकसान क्यों न हो। पहले लोग धोखे और बेईमानी से पैसा कमाते हैं और यश कमाने के लिए उसमें से थोडा सा धन तीरथ स्थलों पर जाकर दान दे देते हैं। यह परोपकार नहीं होता है।

ईसा मसीह जी ने कहा था कि जो दान दाएँ हाथ से किया जाये उसका पता बाएँ हाथ को नहीं चलना चाहिए वह परोपकार होता है। प्राचीनकाल में लोग गुप्त रूप से दान दिया करते थे। वे अपने खून-पाशिने से कमाई हुई दौलत में से दान किया करते थे उसे ही वास्विक परोपकार कहते हैं।

पुरे राष्ट्र और देश के स्वार्थी बन जाने की वजह से जंग का खतरा बना रहता है। आज के समय में चारों तरफ स्वार्थ का साम्राज्य स्थापित हो चुका है। प्रकृति हमे निस्वार्थ रहने का संदेश देती है लेकिन मनुष्य ने प्रकृति से भी कुछ नहीं सिखा है। हजारों-लाखों लोगों में से सिर्फ कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जो दूसरों के बारे में सोचते हैं।

परोपकार जीवन का आदर्श : जो व्यक्ति परोपकारी होता है उसका जीवन आदर्श माना जाता है। उसे कभी भी आत्मग्लानी नहीं होती है उसका मन हमेशा शांत रहता है। उसे समाज में हमेशा यश और सम्मान मिलता है।

वैसे तो पक्षी भी जी लेते हैं और किसी-न-किसी तरह से अपना पेट भर लेते हैं। लोग उसे ही चाहते हैं जिसके दिल के दरवाजे उनके लिए हमेशा खुले रहते हैं। समाज में किसी भी परोपकारी का किसी अमीर व्यक्ति से ज्यादा समान किया जाता है। दूसरों के दुखों को सहना एक तप होता है जिसमें तप कर कोई व्यक्ति सोने की तरह खरा हो जाता है। प्रेम और परोपकार एक व्यक्ति के लिए एक सिक्के के दो पहलु होते हैं।

Answered by MishtiChauhan
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Explanation:

समझ की परख...१. परोपकार

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