Paropkar poem in hindi
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परोपकार
मैंने एक वृक्ष से पूछा
तुम तो धूप में तपते हो
दूसरों को छाया देते हो,
आखिर ऐसा क्यों करते हो ?
मैंने एक नदी से पूछा
तुम तो भागती रहती हो
दूसरों की प्यास बुझाती हो
आखिर ऐसा क्यों करती हो ?
मैंने फिर चाँद से पूछा
खुद तो अँधेरे में रहते हो
दूसरों को रोशनी देते हो
आखिर ऐसा क्यों करते हो ?
आगे जाकर देखा मैंने
एक ठंड से काँपता व्यक्ति
तत्काल उसे उड़ाया कंबल
और मन को मिली शांति
तीन प्रश्नों का उत्तर पाया
तब मुझको समझ में आया
क्या है परोपकार ?
दया, धर्म और दूसरों से प्यार।
मैंने एक वृक्ष से पूछा
तुम तो धूप में तपते हो
दूसरों को छाया देते हो,
आखिर ऐसा क्यों करते हो ?
मैंने एक नदी से पूछा
तुम तो भागती रहती हो
दूसरों की प्यास बुझाती हो
आखिर ऐसा क्यों करती हो ?
मैंने फिर चाँद से पूछा
खुद तो अँधेरे में रहते हो
दूसरों को रोशनी देते हो
आखिर ऐसा क्यों करते हो ?
आगे जाकर देखा मैंने
एक ठंड से काँपता व्यक्ति
तत्काल उसे उड़ाया कंबल
और मन को मिली शांति
तीन प्रश्नों का उत्तर पाया
तब मुझको समझ में आया
क्या है परोपकार ?
दया, धर्म और दूसरों से प्यार।
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