Hindi, asked by cuteangel2811, 1 year ago

Parvat Pradesh Mein pavas Kavita mein manvikaran kis Prakar Kiya gaya hai

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Answered by shailajavyas
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Answer:      "पर्वत प्रदेश में पावस "सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी हुई कविता है | सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के चतुर -चितेरे  हैं  | इस कविता में शब्दों की चित्रमयी भाषा के द्वारा उन्होंने पाठक को अपनी ओर आकर्षित किया है तथा मानवीकरण अलंकार का प्रयोग जगह-जगह  पर किया है जिसके कारण प्रकृति सजीव प्रतीत हो रही है | जैसे ----  पर्वत अपनी हजारों सुमन रूपी आंखों से फाड़ -फाड़ कर नीचे जल में अपने बृहद आकार को देख रहे हैं |-- जैसे -१)मेखला कार पर्वत अपार  

               अपने सहस्त्र द्रव्य सुमन फाड़

         अवलोक रहा है बार-बार"

२) "गिरी का गौरव गाकर झर - झर"- -- यहां झरने गा - गा पर्वत का गौरव -गान कर रहे हैं । झरनों का गाना मानवीकरण है।

3 )   " उच्च आकांक्षाओं से तरुवर  

      है झांक रहे नीरव  नभ पर "

      पहाड़ों के ह्रदय से उठ -उठ कर विविध पेड़ ऊंचा उठने की मंशा लिए सतत टकटकी लगाए एक टक दृष्टि से स्थिर होकर शांत आकाश की ओर देख रहे हैं तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे वे किसी चिंता में डूबे हुए हैं । इन पंक्तियों में पेड़ों के झांकने में मानवीकरण अलंकार प्रयुक्त किया गया है मानो कोई व्यक्ति झांक रहा हो ।"

Answered by kbanerji17
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 "पर्वत प्रदेश में पावस "सुमित्रानंदन पंत द्वारा लिखी हुई कविता है | सुमित्रानंदन पंत प्रकृति के चतुर -चितेरे  हैं  | इस कविता में शब्दों की चित्रमयी भाषा के द्वारा उन्होंने पाठक को अपनी ओर आकर्षित किया है तथा मानवीकरण अलंकार का प्रयोग जगह-जगह  पर किया है जिसके कारण प्रकृति सजीव प्रतीत हो रही है | जैसे ----  पर्वत अपनी हजारों सुमन रूपी आंखों से फाड़ -फाड़ कर नीचे जल में अपने बृहद आकार को देख रहे हैं |-- जैसे -१)मेखला कार पर्वत अपार  

              अपने सहस्त्र द्रव्य सुमन फाड़

        अवलोक रहा है बार-बार"

२) "गिरी का गौरव गाकर झर - झर"- -- यहां झरने गा - गा पर्वत का गौरव -गान कर रहे हैं । झरनों का गाना मानवीकरण है।

3 )   " उच्च आकांक्षाओं से तरुवर  

     है झांक रहे नीरव  नभ पर "

     पहाड़ों के ह्रदय से उठ -उठ कर विविध पेड़ ऊंचा उठने की मंशा लिए सतत टकटकी लगाए एक टक दृष्टि से स्थिर होकर शांत आकाश की ओर देख रहे हैं तो ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे वे किसी चिंता में डूबे हुए हैं । इन पंक्तियों में पेड़ों के झांकने में मानवीकरण अलंकार प्रयुक्त किया गया है मानो कोई व्यक्ति झांक रहा हो ।"

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