parvat sa ham Kay seektha hi
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पर्वत कहता शीश उठाकर, तुम भी ऊँचे बन जाओ। सागर कहता है लहराकर, मन में गहराई लाओ। समझ रहे हो क्या कहती हैं उठ-उठ गिर-गिर तरल तरंग भर लो भर लो अपने दिल में मीठी-मीठी मृदुल उमंग! ।
पंक्ति: “पर्वत कहता शीश झुकाकर..” इस पंक्ति में पर्वत हमें क्या संदेश दे रहा है?
भावार्थ:- पर्वत मनुष्य को शिक्षा देता है कि वह भी महान बने और पर्वत सी ऊँचाई प्राप्त करें।
पंक्ति: “सागर कहता है लहराकर..” सागर से हमें क्या सीख मिलती है?
भावार्थः- प्रस्तुत पंक्ति से हमें यश सीख मिलती है कि हमारे मन और विचारों में गहराई होनी चाहिए।
पंक्ति: “समझ रहे हो क्या कहती हैं..” तरंगें हमें क्या सीख देती हैं?
भावार्थ:- ह्रदय में उल्लास और उमंग की भावना के साथ जीवन जीने की प्रेरणा देती हैं।
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