paryavaran ke mulyankan ke mahatva ki vivechna Karen
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पर्यावरण शिक्षा का मूल उद्देश्य मानव-पर्यावरण के अंतर्संबंधों की व्याख्या करना तथा उन संपूर्ण घटकों का विवेचन करना है जो पृथ्वी पर जीवन को परिचालित करते हैं इसमें मात्र मानव जीवन ही नहीं अपितु जीव-जंतु एवं वनस्पति भी सम्मिलित हैं ।
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पर्यावरण, वन एवं मौसम परिवर्तन मंत्रालय ने हाल ही में सन् 2006 में बनाए गए एन्वायरमेन्ट इम्पैक्ट एसेसमैन्ट में कुछ सुधार करने के लिए एक प्रारूप तैयार किया है।
इसके अनुसार इस कानून का उल्लंघन करने वाले लोग इन्वायरमेन्ट सप्लीमेन्ट प्लान के अंतर्गत अपना कार्य जारी रख सकते हैं। मंत्रालय का यह कदम पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को बचाने की कोशिश में लगे तमाम कानूनों एवं प्रयासों के लिए बड़ा धक्का है।
क्या है एन्वायरमेन्ट इम्पैक्ट एसेसमैन्ट (EIA)
इसकी शुरूआत सन् 1992 के रिओ सममेलन में तब हुई थी, जब लगभग 170 से अधिक देशों ने पर्यावरणीय संतुलन एवं आर्थिक जरूरतों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई थी। भारत में इसकी शुरूआत सन् 1996 से की गई और इसे पर्यावरण अनुमोदन प्रक्रिया के रूप में भी जाना गया।
इस कानून का उद्देश्य किसी भी योजना को कार्यान्वित करने से पहले उसकी गहराई में जाकर यह पता लगाना था कि योजना किसी भी प्रकार से पर्यावरण को नुकसान तो नहीं पहुँचाएगी। योजना के अध्ययन में उसे मंत्रालय या राज्य सरकार के पास विशेषज्ञों द्वारा अनुमोदन के लिए भेजने से पहले, उससे जुड़ी स्थानीय जनता के कथनों को जानना-समझना भी आवश्यक माना गया।
इसके लागू होने के बाद से ई आई ए भूमि एवं जलस्त्रोतों के लिए एक ऐसा मंच बना, जहाँ इनके मूल स्वरूप को बनाए रखने के लिए जगह मिली। अन्यथा विभिन्न बिजली संयंत्र, बहुमंजिला भवन निर्माण, खान एवं बंदरगाह बनाने आदि के अधिक से अधिक निर्माण के लिए वन, सार्वजनिक भूमि, तटीय क्षेत्र एवं स्वच्छ जल की झीलों वगैरह की आसानी से बलि चढ़ा दी जाती थी। ई आई ए कानून के कारण योजनाओं पर लगने वाले बंधनों की वजह से इसे ‘हरित बाधा’ आदि अनेक विशेषण दिए गए।