Social Sciences, asked by sudhasharma620235498, 24 days ago

paryavaran ke sanrakshan ke sath sath vartaman maanviya jaruraton ko pura karte hue aane wali bhavi pirhiyon ki aavyasaktao ko pura karna kya kehlata hai

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Answered by niraliparmar2685
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Answer:

वर्षाजल के संचयन के लिये भारत में विभिन्न पारिस्थितिकीय क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न पद्धतियाँ विकसित की गई हैं जिनमें प्राचीन काल से वर्षाजल का संचयन किया जाता रहा है। इनमें संचित जल को घरेलू तथा सिंचाई कार्यों में उपयोग में लिया जाता कश्मीर में 12वीं सदी में सिंचाई व्यवस्था पूर्ण विकसित थी। पूर्वोत्तर राज्यों में 200 वर्ष पूर्व पथरीली भूमि से बांस की नलियों द्वारा जल संरक्षण की पद्धतियाँ अपना ली गई थी जो वर्तमान समय में भी विद्यमान है।

पश्चिमी भारत में कुंड, कुंई, टांके, तालाब, बावड़ियाँ आदि 500 वर्ष पूर्व विद्यमान थी जिनमें वर्षा के पानी को संरक्षित करके उपयोग में लाया जाता रहा है। पूर्वी घाट को पहाड़ियों में लोगों ने मध्य पूर्व की तकनीकी के अनुसार पहाड़ियों में नीचे कुओं तक सुरंगे बनाई जिनसे जल अंतःस्पंदित होकर कुओं को पूरित करता है। इसी प्रकार पूर्वी पहाड़ियों में वर्तमान बूँद-बूँद सिंचाई प्रणाली की तरह, ही पान के बागानों में सिंचाई हेतु बांस की नालियों द्वारा विकसित की हैं जहाँ पर कोई विकल्प नहीं है वहाँ वर्षा के पानी को तालाबों में एकत्रित करके सिंचाई करते हैं जिसे मध्य प्रदेश में हवेली कहते हैं।

10.5 वर्षाजल को संग्रहित करने के लिये विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में परंपरागत जल स्रोतों में सुधार के लिये सिफ़ारिशें

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