Hindi, asked by deepakyevle, 5 months ago

paryavaran pradushan essay​

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Answered by anjisingh12211816
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Explanation:

पर्यावरण प्रदूषण से पहले हमें यह समझना होगा कि प्रदूषण क्या होता है। दूषित पदार्थो के कारण प्रकृति में जो समस्या उत्पन्न होती है, उसे प्रदूषण कहते हैं। और जब पर्यावरण के सभी घटक यथा वायु, जल, मृदा आदि प्रदूषित होने लगते हैं तो वे पर्यावरण प्रदूषण की श्रेणी में आ जाते हैं। पर्यावरण प्रदूषण आज की सबसे बड़ी समस्या है। जिसके लिए सभी का जागरुक होना अति आवश्यक है।

जलवायु परिवर्तन के कारण हरितगृह (ग्रीनहाउस) प्रभाव और वैश्विक ताप में वृध्दि, ओजोन परत का क्षय होना, अम्लीय वर्षा होना, भूस्खलन, मृदा का क्षरण आदि चीजें होती हैं, जिसे पर्यावरण का प्रदूषित होना कहते हैं। मनुष्य ने अपने और पर्यावरणीय स्वास्थ्य की कीमत पर प्रकृति के धन का दोहन किया है। इसके अलावा, जो प्रभाव अब तेजी से उभर रहा है, वह सब सैकड़ों या हजारों वर्षों से मनुष्यों की गतिविधियों के कारण है।

इन सबसे ऊपर, अगर हम पृथ्वी पर जीवित रहना और अपना जीवन जारी रखना चाहते हैं, तो हमें उपाय करने होंगे। ये उपाय हमारी अगली पीढ़ी के भविष्य के साथ-साथ हमें सुरक्षित बनाने में मदद करेंगे।

पर्यावरण का अर्थ

पर्यावरणीय प्रदूषण को समझने से पूर्व यह समझना जरुरी है कि, पर्यावरण क्या है और हमें कैसे प्रभावित करता है। ‘‘हर्षकोविट्स’’ के शब्दों में-

‘‘पर्यावरण संपूर्ण वाह्य परिस्थितियों एवं प्रभावों का जीवधारियों पर पड़ने वाला सम्पूर्ण प्रभाव है जो उनके जीवन विकास एवं कार्य को प्रभावित करता है।’’

पर्यावरण प्रदूषण आज हमारे ग्रह पर मानवता और अन्य जीवन रूपों का सामना करने वाली सबसे गंभीर समस्याओं में से एक है। पर्यावरण प्रदूषण को पृथ्वी / वायुमंडल प्रणाली के भौतिक और जैविक घटकों के संदूषण के रुप में परिभाषित किया जाता है। सामान्य पर्यावरणीय प्रक्रियाएं प्रतिकूल रूप से प्रभावित होती हैं। प्रदूषक प्राकृतिक रूप से पदार्थ या ऊर्जा हो सकते हैं, लेकिन अधिक मात्रा में होने पर उन्हें दूषित माना जाता है। प्राकृतिक संसाधनों की किसी भी दर का उपयोग प्रकृति द्वारा स्वयं को पुनर्स्थापित करने की क्षमता से अधिक होने पर वायु, जल और भूमि के प्रदूषण का परिणाम हो सकता है।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार

प्रदूषण के प्रभाव निस्संदेह कई और व्यापक हैं। प्रदूषण के अत्यधिक प्रभाव से मानव स्वास्थ्य, पशु स्वास्थ्य, उष्णकटिबंधीय वर्षा-वन आदि को नुकसान पहुंच रहा है। वायु, जल, मिट्टी प्रदूषण आदि सभी प्रकार के प्रदूषणों का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। निम्नलिखित मुख्य प्रकार हैं-

वायु प्रदुषण

जल प्रदूषण

भूमि प्रदूषण (मृदा प्रदूषण) -

उपसंहार

मानव ने आधुनिकता और वैज्ञानिकता के नाम पर प्रकृति का अत्यधिक दोहन किया है। परिणामस्वरुप हमारी धरती प्रदूषित हो गयी है। आज पूरी की पूरी आबोहवा ही प्रदूषित हो गयी है। न ही पीने के लिए साफ पानी है और न ही सांस लेने के लिए शुध्द हवा। और इसका जिम्मेदार और कोई नहीं केवल और केवल मनुष्य है। मनुष्य प्रजाति ने पेड़ो को काटकर अपने लिए ही समस्या उत्पन्न नहीं की है, अपितु अन्य पशु-पक्षियों से भी उनका निवास छीन लिया है।

पृथ्वी हमें हमारे स्वास्थ्य और विकास के लिए बहुत सारे प्राकृतिक संसाधन प्रदान करती है। लेकिन, जैसे-जैसे समय बीत रहा है, हम अधिक स्वार्थी होते जा रहे हैं और अपने पर्यावरण को प्रदूषित करते जा रहे हैं। हम नहीं जानते कि यदि हमारा पर्यावरण अधिक प्रदूषित हो जाता है, तो यह अंततः हमारे स्वास्थ्य और भविष्य को ही प्रभावित करेगा। पृथ्वी पर आसानी से जीवित रहना हमारे लिए संभव नहीं होगा।

पर्यावरण प्रदूषण के कारण और स्रोत

औद्योगिक गतिविधि :

दुनिया भर के उद्योग भले ही वे संपन्नता और समृद्धि लाए हैं लेकिन पारिस्थितिक संतुलन को लगातार बिगाड़ रहे हैं और जीवमंडल का नाश कर रहें है। वैज्ञानिक प्रयोगों का प्रक्षेपण, धुएं का गुबार, औद्योगिक अपशिष्ट और विषैली गैसें पानी और हवा दोनों को दूषित करते है। औद्योगिक कचरे का अनुचित निपटान जल और मृदा प्रदूषण दोनों का स्रोत बन गया है। विभिन्न उद्योगों से निकलने वाले रासायनिक कचरे से नदियों, झीलों, समुद्रों और धुएं के छोड़े जाने के माध्यम से मिट्टी और हवा में प्रदूषण फैल रहा है।

वाहन :

डीजल और पेट्रोल का उपयोग करने वाले वाहन विषैली गैसों को वायुमंडल में लीन करते हैं और कोयले को पकाने से जो धुआं निकलता है वह भी सीधे हमारे पर्यावरण में जाकर उसको प्रदूषित करता है। जिसमें हम सांस लेते हैं। इन विभिन्न वाहनों का धुआं काफी हानिकारक है और वायु प्रदूषण का प्राथमिक कारण है। ये वाहन वायु प्रदूषण तो करते ही है

तीव्र औद्योगीकरण और शहरीकरण :

शहरीकरण की तेजी और औद्योगीकरण की व्यापकता भी पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख कारण हैं क्योंकि वे पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे सामूहिक रुप से जानवरों, मनुष्यों और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंच रहा हैं।

जनसंख्या अतिवृद्धि :

विकासशील देशों में तेजी से जनसंख्या में वृद्धि हुई है। बुनियादी भोजन और आश्रय की मांग बढ़ रही है। उच्च मांग के कारण, जनसंख्या की बढ़ती संख्या और मांग को पूरा करने के लिए वनों की कटाई तेज हो गई है।

जीवाश्म ईंधन दहन :

जीवाश्मों के ईंधनों का लगातार दहन कार्बन मोनोऑक्साइड जैसी विषैली गैसों के माध्यम से मिट्टी, हवा और पानी के प्रदूषण का स्रोत है।

कृषि अपशिष्ट :

कृषि के दौरान उपयोग किए जाने वाले कीटनाशक और उर्वरक पर्यावरण प्रदूषण के प्रमुख स्रोत हैं।

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