Paryavaran sankat par lakh likhiye
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पर्यावरणीय संकट
परिवर्तन प्रकृति की मूलभूत प्रक्रिया है। परिवर्तन शनैः-शनैः भी हो सकते हैं, जैसे स्थलाकृतियों का उद्गम; यह तीव्र एवं अचानक भी हो सकते हैं जैसाकि भूकंप, ज्वालामुखी उद्गार, सुनामी, चक्रवात और टॉरनेडो में होता है। हम उन्हें प्राकृतिक या पर्यावरणीय संकट के तौर पर मान सकते हैं, प्राकृतिक पर्यावरण में वे तत्व और परिस्थितियां जिनमें लोगों या संपति को नष्ट करने की क्षमता होती है। महासागरों में जलधाराएं या विपरीत जलवायु दशाएं संकट/आपद होते हैं। थार की गर्म मरुस्थलीय जलवायु और कश्मीर में शीतल मरुस्थलीय जलवायु प्राकृतिक आपद हो सकते हैं।
पर्यावरणीय संकट ऐसे भूभौतिक घटनाक्रम हैं, जो बड़े स्तर पर आर्थिक परिसम्पतियों के विनाश, भौतिक क्षति एवं मानव जीवन के लिए खतरे का कारण बन सकते हैं। इन घटनाओं का प्रभाव भी समय-समय पर भिन्न होता है और उनके विस्तार की मात्रा एवं संबद्ध पर्यावरण की प्रकृति पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, सघन जनसंख्या वाले क्षेत्रों में विनाश, विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों की तुलना में अधिक होता है। कुछ सामान्य पर्यावरण संकटों या प्राकृतिक आपदाओं में भूकंप, ज्वालामुखी उद्गार, बाढ़, सूखा और चक्रवात शामिल हैं। पी. मे (P.May) द्वारा, 1996 में ओजोन परत के क्षरण तथा समुद्री जलस्तर में वृद्धि को भी पर्यावरण संकट के अंतर्गत शामिल किया गया।
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